Site icon Youth Ki Awaaz

आंतरिक कलह और कमज़ोर नेतृत्व से ‘कॉंग्रेस’ खतरे में है

आंतरिक कलह और कमज़ोर नेतृत्व से 'कॉंग्रेस' खतरे में है

हम जब भी केंद्र की मौजूदा सरकार की मज़बूती की ओर निहारते हैं, तब हमारा ध्यान कमज़ोर विपक्ष की ओर अनिवार्य रूप से जाता है।

आज विपक्षी दलों में सबसे बड़ी और राष्ट्रीय पार्टी कॉंग्रेस अपनी बची-खुची उपलब्धियों को भी संभाल पाने में अक्षम दिखाई दे रही है। ऐसा लगता है कि सबसे पुरानी पार्टी ने ठान लिया है कि लाख मुश्किलें हों पर वह अपनों के बीच हो रहे दंगल में ही मस्त रहेगी।

अब यह भी स्पष्ट होता जा रहा है कि देश की कॉंग्रेस का नेतृत्व अपने ताने-बाने में हर तार को पिरोए रखने की दस्तकारी भूल चुका है। उसमें अब वह शक्ति नहीं बची है कि अपने सारे नेताओं की महत्वाकांक्षाओं की लगाम अपने हाथों में रख सके।

इसका कारण कोई बहुत अबूझ नहीं है। कॉंग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी यानि समूचे गांधी खानदान में अब वोट आकर्षित करने की ताकत ना रह जाने की दलीलें भी पुरानी पड़ चुकी हैं, अब तो अपनी पार्टी की मुश्किलों को सुलझाने के उनके प्रयास भी और जोरदार उलझन पैदा कर हैं।

पार्टी की इस बीमारी से लग रहा है कि उसके और विपक्ष के 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को चुनौती देने के मंसूबे भी मुश्किल में पड़ सकते हैं। इसके कोलाहल भरे नमूने पंजाब और छत्तीसगढ़ में दिखे, जहां दिन बीतने के साथ गुत्थी और उलझती जा रही है जबकि राजस्थान के अलावा ये दो राज्य हैं, जहां पार्टी की स्थिति मज़बूत है। इस समय छत्तीसगढ़ कॉंग्रेस में आंतरिक कलह चरम पर है।

कयास, कलह और प्रतीक्षा इन दिनों छत्तीसगढ़ में कॉंग्रेस पार्टी इसी में उलझी हुई है। इसमें भी दिलचस्प बात यह है कि नेताओं की महत्वाकांक्षाएं और कॉंग्रेस केंद्रीय नेतृत्व की विभिन्न धड़ों में सुलह कराने में नाकामी और टालमटोल का रवैया ही इसकी बड़ी वजह है।

प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बनाम वित्त और स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव की लड़ाई के महीनों बीतने के बाद भी नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों पर विराम नहीं लग पाया है। अब इन दोनों दिग्गज नेताओं के समर्थक भी अलग-अलग दिखने लगे हैं लेकिन आलाकमान की ओर से समाधान की जादुई पुड़िया अब तक नहीं खोली गई है।

दो महीने में भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बदले जाने की बात को कई बार खारिज कर चुके हैं। मगर उनके समर्थक विधायकों की बार-बार दिल्ली दौड़ उनकी शंकाओं को बखूबी रेखांकित करती है। दूसरी ओर सिंहदेव जाहिर कर चुके हैं कि उन्हें केंद्रीय नेतृत्व के फैसले का इंतज़ार है। वे पंजाब की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में भी बदलाव की बाट जोह रहे हैं।

बघेल और सिंहदेव के बीच सत्ता के लिए संघर्ष शीर्ष पर शांत हो गया प्रतीत होता है, मगर पार्टी में निचले स्तर पर झगड़ा बहुत अधिक दिखाई देता है।

पार्टी के भीतर मतभेद रविवार को फिर से खुलकर सामने आए, जब जशपुर ज़िले में पार्टी कार्यकर्ताओं के एक सम्मेलन के दौरान भाषण देने के दौरान राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव के समर्थक माने जाने वाले एक पार्टी नेता को कथित तौर पर रोका गया और उससे धक्कामुक्की की गई।

इस मौके पर एआईसीसी के छत्तीसगढ़ प्रभारी सचिव सप्तगिरी उलाका भी मौजूद थे। इस कथित घटना के वीडियो में जशपुर ज़िले के पूर्व कॉंग्रेस अध्यक्ष पवन अग्रवाल को मंच से समारोह को संबोधित करते हुए दिखाया गया है। अचानक एक अन्य नेता, इफ्तिखार हसन, अग्रवाल से माइक छीनने और उसे दूर धकेलने की कोशिश करते हुए दिखाई देते हैं।

अग्रवाल ने कहा कि जब उन्होंने अपने भाषण के दौरान कथित सत्ता-साझाकरण समझौते के मुताबिक, टीएस सिंहदेव को मुख्यमंत्री के रूप में पदोन्नत करने में देरी पर सवाल उठाया तो हसन और अन्य लोगों ने उन्हें कथित रूप से रोका और उनके साथ हाथापाई की।

पिछले महीने बिलासपुर में कॉंग्रेस की एक स्थानीय इकाई ने पार्टी के एक विधायक के निष्कासन की मांग की थी, क्योंकि उन्होंने सिंहदेव के करीबी नेता के खिलाफ पुलिस मामला दर्ज़ करने का विरोध किया था।

कॉंग्रेस आलाकमान की ओर से फैसले में देरी से लगता है कि डेढ़ दशक बाद छत्तीसगढ़ में आई कॉंग्रेस की कलह दूर करने का उपाय शीर्ष नेतृत्व के पास नहीं है, जबकि बघेल और सिंहदेव दोनों की निगाहें केंद्रीय नेतृत्व के फैसले पर टिकी हुई हैं।

आपको बता दें कि जून 2021 में मुख्यमंत्री के रूप में बघेल के ढाई साल पूरे होने के बाद छत्तीसगढ़ में नेतृत्व परिवर्तन की मांग तेज़ हुई है। सिंहदेव खेमे ने दावा किया है कि 2018 में आलाकमान ने सरकार का आधा कार्यकाल पूरा करने के बाद उन्हें पद सौंपने की बात कही थी।

कॉंग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने विवाद सुलझाने के लिए अगस्त में बघेल और सिंहदेव दोनों को दिल्ली बुलाया था। उसके बाद कई बार दोनों नेताओं की दिल्ली भी आवाजाही हो चुकी है, मगर दिल्ली दरबार से विलंब के अलावा कुछ भी हासिल होता दिखाई नहीं दे रहा है।

Exit mobile version