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“गर्भनिरोधक गोलियों के लगातार उपयोग से मैं मानसिक अवसाद में रहने लगी थी”

"गर्भनिरोधक गोलियों के लगातार उपयोग से मैं मानसिक अवसाद में रहने लगी थी"

फेसबुक पर अचानक देखे गए एक वीडियो ने सारिका को झकझोर कर रख दिया था। अब उसे समझ आ रहा था कि क्यों उसे हमेशा अवसाद और अकेलेपन की भावना घेरे रखती है, क्यों वो हमेशा चिड़चिड़ी रहती है और क्यों उसे पीसीओडी इतना परेशान करता है तो ऐसा क्या देख लिया सारिका ने?

लक्षणों का विश्लेषण

मैं चार सालों से गर्भ निरोधक गोली ले रही थी और शायद वही मेरी बेचैनी और चिड़चिड़ेपन का कारण बन चुकी थी। ऐसा अक्सर मेरे पीरियड्स के एक हफ्ते के आसपास होता था। मैंने गोली लेना बंद किया तो मेरे व्यवहार में भी काफी बदलाव आ गया। यह सब मुझे, तब समझ आया जब मैं एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ से मिली।

मुझे पीसीओडी था और इसीलिए डॉक्टर ने मुझे फिर से गर्भ निरोधक गोली लेने को कहा लेकिन एक दूसरी कंपनी की। मैंने एक बार फिर से गोली लेनी शुरू की तो चिड़चिड़ापन और बेचैनी फिर से शुरू हो गई और इस बार तो हालात पहले से भी बदतर थे।

कई दिन ऐसे होते थे कि मुझे बिस्तर से उठने तक के लिए भी खासी मशक्कत करनी पड़ती थी। ऐसा लगता था जैसे किसी ‘बड़े प्रोजेक्ट’ पर काम कर रही हूं लेकिन कुछ दिन ऐसे भी थे कि वे हंसते-खेलते निकल जाता था कि पता ही नहीं चलता था कि कब रात हो गई। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मेरे साथ क्या हो रहा था?

कैसे सुलझी मेरे जीवन की गुत्थी?

एक दिन मैंने फेसबुक पर एक वीडियो देखा, जो गर्भनिरोधक गोलियों के दुष्प्रभावों के बारे में था और बस सुलझ गई मेरे जीवन की सबसे बड़ी गुत्थी। उस वीडियो को देखने के बाद मुझे एहसास हुआ कि यह सब इसी गोली का किया-धरा है।

अपने दोस्तों से विचार-विमर्श (मतलब उनके प्रोत्साहित करने के बाद) करने के बाद और थोड़ा बहुत रोने-घबराने के बाद मैंने फैसला कर लिया था कि मैं कल से गोली नहीं लूंगी। गोली के बिना तीन दिन गुज़ारने के बाद मैं और अधिक स्वस्थ महसूस कर रही थी। चौथा दिन तो शुरुआत से ही खुशनुमा और सूरज की पहली किरण जैसा ताज़ा लग रहा था। मैं बहुत सालों बाद खुद को ‘खुद के जैसा’ महसूस करने लगी थी।

अब तो हालात इतने बदल चुके हैं कि आप खुद ही देख ही सकते हैं कि मैं कहां किसी को यह सब बताने में भी घबराहट महसूस करती थी और कहां आज मैं सब के सामने अपनी कहानी लेकर आ गई हूं। ऐसा लग रहा है जैसे मैं गहरी नींद से जागी हूं।

मैं यह नहीं कह रही हूं कि सब कुछ ठीक हो गया है लेकिन कम-से-कम अब मुझे लगता है कि मैं इन सब समस्याओं से लड़ने के लिए तैयार हूं। मैं अपने आप और अपने शरीर पर दोबारा विश्वास करना चाहती हूं और मुझे पता है कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा।

खुशी के लिए निराशा का चुनाव?

मुझे पता है कि निराशा और अवसाद इन गोलियों का सबसे मुख्य ‘दुष्प्रभाव’ है लेकिन फिर भी कई डॉक्टर बिना सोचे-समझे इसे मेरे जैसी कई महिलाओं को इन्हें लेने के लिए कह देते हैं।

‘मेरे शरीर पर मेरा अधिकार है’ अच्छी बात है और मैं इस के लिए हमेशा लड़ने के लिए तैयार हूं कि ‘गर्भावस्था और गर्भनिरोध’ का निर्णय केवल महिलाओं के पास होना चाहिए लेकिन यह कैसा अधिकार है जिसे पाने के लिए मदहोशी और निराशा की ज़िंदगी जीनी पड़े।

अगर पुरुष कोई ऐसी दवा लेते हों, जिसमें गर्भनिरोधक गोलियों के दुष्प्रभावों वाली सूची में से केवल दो भी दुष्प्रभाव हों तो मुझे पूरा विश्वास है कि उस पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाएगा लेकिन चूंकि यह हम महिलाओं के लिए है तो सब चलता है। 

क्या सच में कोई और रास्ता नहीं है? महिलाएं महीने में केवल छह दिनों के उर्वर रहती हैं लेकिन पुरुष तो रोज़ ही उर्वर रहते हैं, तो क्यों ना अनियोजित गर्भधारण का भार पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान हो? खासकर तब जब गोलियां खाना ही एकमात्र समाधान हो।

(निजता की सुरक्षा के लिए नाम बदल दिए गए हैं।)

नोट- क्या आपके पास गर्भनिरोधक गोलियों के दुष्प्रभावों के बारे में ऐसी ही कोई कहानी हैहमारे फेसबुक पेज पर लव मैटर्स (एलएम) के साथ उसे साझा करें। अगर आपके पास कोई विशिष्ट प्रश्न हैतो कृपया हमारे चर्चा मंच पर एलएम विशेषज्ञों से पूछें। 

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