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क्या आपको मालूम है मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे पर बात करना कितना ज़रूरी है?

क्या आप जानते हैं मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे पर बात करना कितना ज़रूरी है?

10 अक्टूबर को विश्व मानिसक स्वास्थ्य दिवस था। वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ यानि विश्व मानसिक स्वास्थ्य संगठन द्वारा मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के खिलाफ दुनिया भर में जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिवर्ष 10 अक्टूबर को इस दिन को मनाने की शुरुआत की गई थी।

वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ सबसे पहली बार 10 अक्टूबर, 1992 को वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ के उपमहासचिव रिचर्ड हंटर की पहल पर इस दिन को मनाया गया था।

वर्ष 1994 में संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव यूजीन ब्रॉडी ने एक थीम तय कर इस दिवस को मनाने की सलाह दी, तब से प्रतिवर्ष इस दिन को मनाने के लिए एक थीम का निर्धारण किया जाता है। इस साल 2021 की विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस थीम है ‘एक असमान दुनिया में मानसिक स्वास्थ्य।’ 

आपको बता दें कि वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ (WFMH) 150 से अधिक सदस्य देशों वाला एक वैश्विक मानसिक स्वास्थ्य संगठन है। दरअसल, दुनिया तेज़ी से ध्रुवीकृत हो रही है। अमीर लोग और भी अमीर बन रहे हैं, जबकि गरीब लोग लगातार गरीबी और मंहगाई की मार झेलने के लिए मज़बूर हैं। 

‘कठोर’ राजनीतिक इच्छाशक्ति सहित तमाम जनकल्याणकारी योजनाओं एवं प्रशासनिक प्रयासों के बावजूद देश में सामाजिक तथा आर्थिक विषमता हर रोज़ बढ़ती जा रही है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। इसी वजह से इस मुद्दे पर बात करना और भी ज़रूरी हो जाता है।

हर आठ में से एक व्यक्ति है मानसिक रोगी

वर्ष 2015-16 में हुए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार, भारत में हर 8 में से एक व्यक्ति यानि करीब 17.5 करोड़ लोग किसी एक तरह कि मानसिक बीमारी  से प्रभावित हैं।

इनमें से 2.5 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो गंभीर बीमारियों से प्रभावित हैं, जिन्हें मनोचिकित्सक द्वारा नियमित इलाज की ज़रूरत है और बाकी बचे 15 करोड़ लोग, जिन्हें गंभीर मानसिक बीमारियां नहीं हैं, उन्हें भी मज़बूत और सुचारू आम स्वास्थ्य सेवाओं से इसका फायदा मिल सकता है।

मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे पर मुखर बातचीत है ज़रूरी

दरअसल, मानसिक स्वास्थ्य एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर हमारे देश में आम दिनों में शायद ही कभी कोई बात करने को उत्सुक होता है, जबकि आज जिस तेज़ी से लोगों में मानसिक तनाव, बैचेनी, अनिश्चतता, निराशा, अवसाद और कुंठा बढ़ती जा रही है। उसे देखते हुए इस विषय पर ज़्यादा-से-ज़्यादा बातचीत करना और इस बारे में विचार करना ज़रूरी हो गया है, ताकि सही समय पर उचित उपाय किए जा सकें।

मानसिक स्वास्थ्य की ज़रूरत को इसी आधार पर समझा जा सकता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2020 तक दुनिया भर में 10-19 वर्ष उम्र के कुल 12 करोड़ किशोर हो जाएंगे, जिनमें से करीब 13 फीसदी मानसिक बीमारियों से ग्रस्त होंगे।

सड़क दुर्घटना, टीबी और आपसी संघर्ष के बाद बढ़ते अवसाद के कारण आत्महत्या करना 10 से 19 वर्ष के किशोरों की मौत की पांचवीं सबसे मुख्य वजह है, जबकि 15-19 वर्ष के किशोर-किशोरियों की मौत की चौथी बड़ी वजह है। 

मानसिक क्षुब्धता का मतलब ‘पागलपन’ नहीं

मानसिक रोगों के निदान के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा यह है कि ज़्यादातर लोग किसी भी तरह की मानसिक परेशानी को सीधे ‘पागलपन’ से जोड़ देते हैं।

यह सही नहीं है कि आज जिस तरह दिन-ब-दिन जीवन की दुश्वारियां बढ़ती जा रही हैं। हर एक स्तर पर बढ़ती प्रतिस्पर्धा और कम समय में अधिकाधिक पा लेने की होड़ लोगों के दिल और दिमाग पर हावी होती जा रही है। उनकी यही सोच तनाव एवं अवसाद का मुख्य कारण है, खासकर उन लोगों के लिए, जो दिमाग से नहीं दिल से सोचते हैं।

वो लोग, जो संवेदनाशून्य होती इस दुनिया में भी दिल के किसी कोने में थोड़ी बहुत संवेदनशीलता और भावनात्मकता को बचाए रखे हैं, उन लोगों के मानसिक रूप से क्षुब्ध होने के आसार अधिक होते हैं। वैसे पूर्णतः असंवेदनशील होना भी एक प्रकार की असामान्यता ही है। हम सभी सजीव हैं यानि मानव हैं, इस नाते हम सबका जीवन की विभिन्न परिस्थितियों से प्रभावित होना स्वाभाविक है।

हमें बस ख्याल इस बात का रखना है कि इन परिस्थितियों अथवा इनसे जुड़ी भावनाओं को खुद पर इतना हावी ना  होने दें, जिससे कि हमारा जीवन ही अस्त-व्यस्त हो जाए। कभी आपको कोई बात परेशान कर रही हो, तब अपनी परेशानी को किसी के साथ शेयर ज़रूर करें।

अगर कभी आप अपने आसपास ऐसे किसी शख्स के विषय में जाकर पूछ लें, उसकी तकलीफ बांट लें लेकिन ये तभी संभव है, जब वो आपको बताना चाहे। मनोविज्ञान में कहा भी गया है ‘Sharing Is The Best Therapy’

मतलब याद रखें! पूर्ण मानसिक स्वास्थ्य का लक्ष्य तभी संभव है, जब हम और आप बेहतर रूप से पहले यह समझ जाएं कि मानसिक क्षुब्धता और मानसिक रोग में अंतर क्या है। उसके बाद ही हम अपने या किसी अन्य के व्यवहार में अनुकूल बदलाव लाने में कामयाब हो सकते हैं।

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