Site icon Youth Ki Awaaz

“बिना एनेस्थेसिया दिए ही झोला छाप डॉक्टर ने मेरे बेटे का सर्कमसीज़न कर दिया था”

ट्रिगर वॉर्निंग- आर्टिकल में सर्जरी का ज़िक्र है।


सर्कमसीज़न को लेकर प्राय: ज़्यादातर पैरेन्ट्स में चिंता रहती है। पैरेन्ट्स के तौर पर हमारे छोटे बच्चे को लेकर हमारी भी चिंताएं बढ़नी शुरू हुईं। बच्चे के जन्म के बाद हमने नोटिस किया कि पेनिस के बाहरी हिस्से के चमड़े में ओपनिंग बहुत कम है, जिस कारण उसे यूरिन डिस्पोज़ करने में काफी परेशानी होती थी।

हम ठहरे ग्रामीण परिवेश के लोग! हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में यह समझ लीजिए कि स्वास्थ्य संबंधित परेशानियों में अगर कोई ईश्वर की तरह काम करते हैं, तो वे हैं झोला छाप डॉक्टर्स। बेटे को जब ज़्यादा समस्याएं होने लगीं, तो हम पहुंचे हमारे गाँव के झोला छाप डॉक्टर के पास!

डॉक्टर के लिए यह सब बहुत आसान था मगर एक पिता के तौर पर मुझे अंदाज़ा था कि मेरे बेटे के साथ कुछ बहुत ही अमानवीय कृत्य होने वाला है। क्रंदन और चित्कार की आवाज़ों के बीच मेरे बेटे के हाथ और पैर को कसकर पकड़ा गया, ताकि सर्कमसीज़न के दौरान वो स्थिर रह पाए।

डॉक्टर साहब ने बगैर एनेस्थेसिया दिए ही ऑपरेट कर दिया। घर के सदस्यों की रोने की आवाज़ें कम नहीं हो रही थीं। बेटा अलग ही ट्रॉमा में था। लगभग 2 महीने तक ज़ख्म रहा, फिर धीरे-धीरे ठीक हो गया।

मेरा सवाल झोलाछाप डॉक्टरों के साथ-साथ देश के तमाम उन डॉक्टरों से है, जो छोटी- मोटी सर्जरी से लेकर कई दफा कॉम्पलीकेटेड मामलों में भी एनेस्थेसिया का प्रयोग नहीं करते हैं। आखिर वे इतने क्रूर कैसे हो सकते हैं?

पाइल्स, फिशर और फिस्च्युला जैसी बीमारियों की तो बात ही छोड़ दीजिए साहब!

मैंने कई ऐसे मामले देखे हैं, जब गाँव में झोला छाप डॉक्टर्स, इन बीमारियों में भी बिना एनेस्थेसिया दिए ही सर्जरी कर देते हैं।

झारखंड के ही एक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र जब मेरा एक दोस्त एक्सीडेंट के बाद गया, तो ड्रेसिंग करने वाले शख्स ने कहा, “टांका देना होगा।” आप विश्वास नहीं कीजिएगा कि बिना सुन्न करने वाला इंजेक्शन दिए ही सूई से टांका दे दिया गया।

अभी हाल ही में एक डॉक्टर के सीनियर कंपाउंडर से मेरी बात हुई। वो कहते हैं, “आमतौर पर सर्जन को देखकर लोग डर जाते हैं। सोचते हैं कि छोटे मोटे घाव में भी ये सर्जरी कर देते हैं मगर आज की तारीख में भी डॉक्टर साहब हम कंपाउंडर्स को भी सलाह देते हैं कि नॉर्मल ड्रेसिंग के वक्त भी ‘स्प्रे एनेस्थेसिया’ का प्रयोग हम करें।

खैर, आज के समय बेहद ज़रूरी है कि सरकार इस बारे में कोई पहल करे। निर्देश जारी हो कि सर्जरी चाहे छोटी-मोटी हो या बड़ी, बिना एनेस्थेसिया के ऑपरेट करना ही नहीं है। यह एक अपराध है। इस तरह की घटनाओं को हमें कतई हल्के में नहीं लेना चाहिए।

एक जागरुक नागरिक के तौर पर हमें भी ग्रामीण क्षेत्रों के झोलाछाप डॉक्टरों को टोकना शुरू करना होगा। दर्द मतलब दर्द ही होता है, उसका कोई विकल्प नहीं हो सकता है और यह बात झोला छाप डॉक्टरों को समझने की ज़रूरत है।

चलिए आप सभी को ‘वर्ल्ड एनेस्थेसिया डे’ की बधाई!


नोट: नाम ना बताने की शर्त पर YKA यूज़र, आज ‘वर्ल्ड एनेस्थेसिया डे’ के मौके पर डॉक्टर द्वारा बिना एनेस्थेसिया का प्रयोग किए अपने बेटे का सर्कमसीज़न करने के बारे में लिख रहे हैं।

Exit mobile version