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कैसे जलवायु परिवर्तन यमुना खादर के बुज़ुर्ग किसान के जीवन को कर रहा है प्रभावित

पूरा विश्व इस समय जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से गुज़र रहा है, जो चिंता का विषय बना हुआ है। साथ ही प्रकृति की स्थिति को ह्वास की ओर ले जा रहा है। जलवायु शब्द से तात्पर्य किसी स्थान की कई वर्षों की सामान्य मौसम स्थितियों से है। जलवायु परिवर्तन औसत मौसम की स्थिति का एक महत्वपूर्ण बदलाव है। कई दशकों या उससे अधिक समय में गर्म, गीला, या शुष्क होने वाली स्थितियां हैं।

यह दीर्घकालिक प्रवृत्ति है, जो प्राकृतिक मौसम परिवर्तनशीलता से जलवायु परिवर्तन को अलग करती है। जबकि “जलवायु परिवर्तन” और “ग्लोबल वॉर्मिंग” को अक्सर एक दूसरे के स्थान पर उपयोग किया जाता है जो सम्पूर्ण रूप से सार्थक प्रतीत नहीं होता। ग्लोबल वॉर्मिंग, पृथ्वी की सतह के पास वैश्विक औसत तापमान में हालिया वृद्धि-जलवायु परिवर्तन का सिर्फ एक पहलू है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के बहुत से आयाम हैं, जो विश्व में कृषि और अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करते हैं।

जलवायु परिवर्तन का क्या कारण है?

विभिन्न प्रकार के कारक, प्राकृतिक और मानव दोनों ने पृथ्वी की जलवायु प्रणाली को प्रभावित किया है। जलवायु परिवर्तन में योगदान देने वाली शक्तियों में सूर्य की गर्मी की तीव्रता, ज्वालामुखी विस्फोट और प्राकृतिक रूप से होने वाली ग्रीन हाउस गैस सांद्रता में परिवर्तन शामिल हैं।

मनुष्य और विशेष रूप से, हमारे द्वारा उत्पन्न ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन, पृथ्वी की तेजी से बदलती जलवायु का प्रमुख कारण हैं। ग्रीन हाउस गैसें ग्रह को रहने के लिए पर्याप्त गर्म रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

जलवायु परिवर्तन मनुष्यों को कैसे प्रभावित करता है?

जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन वैश्विक पारिस्थितिक तंत्र को बदल देता है, यह हमारे रहने की जगहों से लेकर हमारे पीने के पानी से लेकर हवा में सांस लेने तक सब कुछ प्रभावित करता है।

तापमान का उच्च होना और तूफान, बाढ़, सूखे सहित कई प्रकार की आपदाओं की आवृत्ति बढ़ जाती है। इन घटनाओं के विनाशकारी और तकलीफ भरे परिणाम हो सकते हैं। यहां तक कि स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति भी चिंता का विषय बनी हुई है।

एक कृषि प्रधान देश में जर्जर होती कृषि

किसी भी देश की जलवायु वहां की रहन-सहन और कृषि, अर्थव्यवस्था आदि के निर्धारण में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका का निर्माण करती है। अगर हम अपने देश की बात करें तो भारत में 60% लोग अपना जीवन-यापन कृषि के द्वारा ही करते हैं।

जलवायु परिवर्तन की वजह से पर्यावरण में तापमान में बढ़ोतरी, बारिश की कमी और हवाओं की दिशा में एकरूपता ना होना आदि हम देख सकते हैं।

जलवायु परिवर्तन के कृषि पर पड़ते नकरात्मक प्रभाव

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

सबसे पहले जलवायु परिवर्तन का सीधा असर मिट्टी की उर्वरकता पर असर दिखाता है। भारत एक कृषि प्रधान देश है और साथ ही साथ यहां पर कई विभिन्नताएं देखी जाती हैं, जो एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। जिसमें सबसे उपर्युक्त उदाहरण है मिट्टी। मिट्टी की उर्वरकता कृषि में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। वहीं, यदि तापमान बढ़ेगा तो मिट्टी की नमी और उसकी कार्यक्षमता नकरात्मक तौर पर प्रभावित होगी साथ ही साथ मिट्टी में लवणता की मात्रा बढ़ती जाएगी और जैव विविधता घटती जाएगी। जलवायु परिवर्तन से बाढ़ की स्थिति में मिट्टी का क्षरण होगा और सूखे के कारण मिट्टी बंजर होती जाएगी।

जलवायु परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण आयाम है कीटों और जानवरों एवं मनुष्यों में बीमारियों का बढ़ता प्रभाव। गर्म जलवायु में कीट और उनकी प्रजनन क्षमता विकसित होती है, जिससे ज़मीन में कीट पतंगों की वृद्धि होगी और इन्हीं कीट पतंगों को हटाने के लिए मानव कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल करेगा, जिससे इंसानों और जानवरों में बीमारी बढ़ने का खतरा और भी बढ़ जाएगा। कीटनाशक दवाओं से मनुष्य के ऊपर कैंसर जैसी घातक बीमारी का खतरा और अधिक प्रभावशाली तरह से धावा बोल सकता है।

जलवायु परिवर्तन के कारण जल संसाधनों पर भी बहुत घातक प्रभाव पड़ सकता है। जल की आपूर्ति की भयावह समस्या उतपन्न होगी और सूखे तथा बाढ़ आने के आंकड़ों में पूरी तरह से इज़ाफा होगा। शुष्क क्षेत्रों में मौसम से नमी नदारद रहेगी और शुष्कता उड़ान पर होगी, जिसका सीधा असर फसल की उत्पादकता पर पड़ेगा।

वहीं, वर्षा की अनिश्चितता भी फसलों के उत्पाद पर ग्रहण लगा सकती है। जल स्रोतों के अधिक अनियंत्रित उपयोग से जल के स्रोतों पर संकट के बादल मंडराने लगेंगे। तापमान के बढ़ने और बारिश की कमी से भौम जल का इतना अनियंत्रित उपयोग किया जाएगा कि भू-जल इतना नीचे चला जाएगा, जिससे उसको ऊपर लाना एक बहुत ही खर्चीला सौदा साबित होगा।

भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी कृषि

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

मानव जाति के सामने प्रमुख चुनौतियों में से एक चुनौती है वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक समान जीवन स्तर प्रदान करना! पर्याप्त भोजन, पानी, ऊर्जा, सुरक्षित आश्रय और एक स्वस्थ वातावरण इनमें शामिल हैं लेकिन वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दे, जैसे- जलवायु परिवर्तन भूमि क्षरण, जैव विविधता की हानि, समतापमंडलीय ओजोन रिक्तीकरण के साथ-साथ मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन, बुनियादी मानवीय ज़रूरतों को पूरा करने की हमारी क्षमता के लिए खतरा हैं।

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की तीसरी आकलन रिपोर्ट (टीएआर) इस बात की पुष्टि करती है कि जलवायु इस तरह से बदल रही है कि प्राकृतिक परिवर्तनशीलता के कारण इसका हिसाब नहीं दिया जा सकता है।

जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता का गरीबी से गहरा संबंध है, क्योंकि गरीबों के पास कम वित्तीय और तकनीकी संसाधन हैं। वे कृषि और वानिकी जैसे जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों पर बहुत अधिक निर्भर हैं। वे अक्सर सीमांत भूमि पर रहते हैं और उनकी आर्थिक संरचना नाज़ुक होती है। यह भारत जैसे विकासशील देश के लिए सोचने का विषय है, जहां कृषि अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है।

कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि का लगभग 27% योगदान है और देश की लगभग दो-तिहाई आबादी को रोज़गार देता है। कृषि निर्यात देश के कुल वार्षिक निर्यात का 13 से 18% हिस्सा है। हालांकि, यह देखते हुए कि 62% फसल क्षेत्र अभी भी वर्षा पर निर्भर हैं, भारतीय कृषि मूल रूप से मौसम पर निर्भर है।

कृषक समाज कई पीढ़ियों से अच्छी फसल और खेती के लिए मौसमी बरसात पर ही निर्भर रहा है

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

जलवायु परिवर्तन का कृषि पर आर्थिक प्रभाव पड़ेगा, जिसमें कृषि लाभप्रदता, कीमतों, आपूर्ति, मांग और व्यापार में परिवर्तन शामिल हैं। इस तरह के जलवायु-प्रेरित परिवर्तनों का परिमाण और भौगोलिक वितरण जनसंख्या को खिलाने के लिए आवश्यक खाद्य उत्पादन का विस्तार करने की हमारी क्षमता को प्रभावित कर सकता है। इस प्रकार जलवायु परिवर्तन का राष्ट्रों के बीच व्यापार के पैटर्न, विकास और खाद्य सुरक्षा पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

कृषि मौसम में अल्पकालिक परिवर्तनों और जलवायु में मौसमी, वार्षिक और दीर्घकालिक परिवर्तनों के प्रति बहुत नाज़ुक दौर से गुज़र रही है। मिट्टी, बीज, कीट और रोग, उर्वरक और कृषि संबंधित प्रथाओं जैसे- पैरामीटर फसल की उपज पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय समस्याओं के साथ-साथ बढ़ती जनसंख्या कृषि उत्पादकता बढ़ाने और ग्रामीण गरीबों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक सीमित कारक साबित हो रही है।

देश का कृषक समाज कई पीढ़ियों से अच्छी फसल और खेती के लिए मौसमी बरसात पर ही निर्भर रहा है लेकिन अब जब ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ रही है और जलवायु परिवर्तन की वजह से देश की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ किसानों को भी नुकसान उठाने पड़ रहे हैं, ऐसे में देश में फसल के उत्पादन में उतार-चढ़ाव का मुख्य कारण कम वर्षा, अत्यधिक वर्षा, अत्यधिक नमी और फसलों पर कीड़े लगना है। साथ ही साथ बेमौसम बारिश, बाढ़ व सूखा और ओलावृष्टि आदि मुख्य हैं। बीते कुछ सालों से मौसम के चक्र ने हमें चौंकाने के साथ-साथ परेशान करने का जो सिलसिला शुरू किया है, वह हमारे लिए और खेती के लिए मुसीबत बन गया है।

आज विश्व में बाढ़, चक्रवात और सुखाड़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती आवर्त्ति से यह स्पष्ट हो जाता कि भारत जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित देशों में से एक है और अब तक जितने भी अनुभवों तथा अध्ययनों में यह पाया गया है कि जहां समग्रता थी, वहां जलवायु परिवर्तन से नुकसान का प्रतिशत कम रहा है, जबकि जहां एकल फसलें अथवा केवल पशुओं पर निर्भरता थी, वहां नुकसान ज़्यादा हुआ।

क्या कहते हैं यमुना खादर के किसान?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

बालश्री, जो उत्तर प्रदेश के इटावा से आते हैं और यमुना खादर में बट्टे पर किसानी करते हैं, वो अपनी बात साझा करते हुए बताते हैं कि मैं यहां पिछले 25 सालों से किसानी कर रहा हूं। पहले मैं अक्षरधाम मंदिर की ज़मीन पर काम किया करता था, जहां मौसमी सब्ज़ियां उगाता था। फिर जब मालिक ने ज़मीन सरकार को दे दी, तो हम यहां खादर में आ गए।

वो आगे कहते हैं, “हर साल कुछ ना कुछ होता ही रहता है। सन् 2013 में सर्दियों के दिनों में रात 2 बजे सारे खादर वालों को पुलिस ने जमा किया और बतलाया 2 घंटे में खाली कर के ऊपर चले जाओ। हथिनी कुंड बैराज से पानी छोड़ा गया है, जो सुबह 4 बजे तक यहां आ जाएगा। अब ऐसे में हम सिर्फ बिस्तर और अपने मवेशियों को लेकर ऊपर आ पाए थे, बाढ़ आ चुकी थी। सारा अनाज, जुड़ा हुआ घर, हमारा पुछना और लत्ते सब कुछ बह गया। हम 2 हफ्ते तक गन्दा पानी पी कर गुज़ारा करने लगे।”

बालश्री कहते हैं, “पानी का बस एक ही टैंकर आता था। धीरे-धीरे पानी 7 दिनों के भीतर उतर गया। जब हम घर को गए, तो कुछ भी नहीं बचा था। जो हमने पोटली में गेहूं मिट्टी में दबाया था, बस वही हमको मिल पाया। इसके अलावा खेत-खलिहान भी उजड़ चुके थे। कुछ मवेशी मारे जा चुके थे। खाने की ऐसी किल्लत थी कि हमको उन मवेशियों के सड़े-गाले मांस खाने पड़े। मरते क्या ना करते! भगवान से बस दुहाई लगाते हैं कि बेमौसम बरसात ना हो।”

उपरोक्त जो भी समस्याएं बालश्री जी ने बताईं, इसकी सीधी वजह है प्राकृतिक असंतुलन और जलवायु परिवर्तन। वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटना एक कठिन कार्य है, जो अंतरराष्ट्रीय सहमति के साथ-साथ समुदायों और व्यक्तियों के प्रयासों से संभव है।


नोट: इमरान खान की यह स्टोरी YKA क्लाइमेट फेलोशिप के तहत प्रकाशित की गई है।

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