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‘तेरी माँ की, बहन की, बेटी की’ जैसी गालियां देने वाले स्त्री विरोधी समाज को नवरात्रि की शुभकामनाएं”

भारत में जहां देवियों की पूजा होती है, वहां लिंग जांच करवाकर अजन्मी बच्चियों को मारा जाता है। ऐसे कुकृत्य को अंजाम देने वाले को नवरात्रि की शुभकामनाएं।

बेटी के जन्म पर मुंह लटकाने वाले और बेटा के जन्म पर उत्सव मनाने वाले परिवार को भी नवरात्रि की शुभकामनाएं। बेटा को प्राइवेट स्कूल में और बेटी को गवर्मेंट स्कूल में भेजने वाले परिवार को भी नवरात्रि की शुभकामनाएं।

बेटी को पढ़ाने की जगह दहेज के लिए पैसा सहेजने वाले परिवार को भी नवरात्रि की शुभकामनाएं। अपने स्वेच्छा से जीवनसाथी चुनने पर अन्य जाति या धर्म के लड़के से प्रेम विवाह करने पर ऑनर किलिंग करने वाले परिवार को भी नवरात्रि की शुभकामनाएं।

दहेज के लिए घर की बहू को प्रताड़ित करने वाले परिवार को भी नवरात्रि की शुभकामनाएं। एक ही परिवार में परवरिश में लड़का और लड़की के बीच भेदभाव किया जाता है, उन्हें भी नवरात्रि की शुभकामनाएं।

तेरी माँ की… बहन की…बेटी की… जैसी गालियां देने वाले स्त्री विरोधी समाज को भी नवरात्रि की शुभकामनाएं।

तीन दिन की मासूम बच्ची हो या सत्तर साल की बुज़ुर्ग महिला, बलात्कार करने वाले लोगों को भी नवरात्रि की शुभकामनाएं।

हरेक घृणित हिंसा के बाद लड़की के हंसने-बोलने से लेकर पहने जाने वाले कपड़े तक पर सवाल खड़ा करके दोषी को शह देने वाले बेशर्म समाज को भी नवरात्रि की शुभकामनाएं।

घर हो या बाहर, टैक्सी हो या ट्रेन, स्कूल हो या दफ्तर, हॉस्पिटल हो या हॉस्टल, होटल हो या बार, मंदिर हो या मज्जार, हर जगह महिलाओं के बलात्कार को अंजाम देने वाले लोगों को भी नवरात्रि की शुभकामनाएं।

काबिल बन जाने के बाद अपनी बूढ़ी माँ से मुंह मोड़ लेने वाले मतलबी बेटा-बहू को भी नवरात्रि की शुभकामनाएं। लड़का और लड़की में भेद करके जेंडर इक्वालिटी को मज़ाक का मसला समझे जाने वाले देश में हरेक उस इंसान को नवरात्रि की विशेष शुभकामनाएं, जो महिला विरोधी हिंसा को अंजाम नहीं भी देते हैं लेकिन खामोश रहकर हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं।

सोचिए ज़रा, बढ़-चढ़कर मिट्टी से बनी मूरत को देवी मानकर पूजने वाले समाज में कोख से कब्र तक सबसे ज़्यादा महिलाओं के प्रति हिंसा को अंजाम दिया जाता है। ऐसे संवेदनहीन समाज को नवरात्रि की शुभकामनाएं।

दो साल पहले शारदीय नवरात्रि के दौरान लिखे थे, अब भी जब हर रोज़ महिला विरोधी घटनाओं को सुनते हैं, तो बस यही लगता है कि किस तरह की देवी उपासना करने वाला है हमारा समाज? कोख से कब्र तक जहां महिलाओं के साथ-साथ घृणित अपराध की घटनाओं में रोज़ इजाफा हो रहा है, वहां क्या फायदा नवरात्रि, बसंत पंचमी, कालरात्रि और धनतेरस आदि जैसे उत्सव मनाने का?

सबसे ज़्यादा महिला विरोधी हिंसा को अंजाम देने वाले हमारे देश में ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता’ कहना बेईमानी सा लगता है। अपने समाज की महिलाओं को देवी मत समझें लेकिन उन्हें इंसान होने के कारण समाज में बराबर का दर्ज़ा ज़रूर दें।

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