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विश्वविद्यालयों में बढ़ती हुई रैगिंग की विकराल समस्या, समझ और समाधान

विश्वविद्यालयों में बढ़ती हुई रैगिंग की विकराल समस्या, समझ और समाधान

किसी भी समस्या को दूर करने के लिए उसे पहचानना, मानना और उसके जड़ तक जाना बहुत ज़रूरी है। देश के उच्च शिक्षण संस्थानों की एक बड़ी समस्या रैगिंग है, जिससे वहां पढ़ने वाले विद्यार्थियों को रोज़ाना इससे दो-चार होना पड़ता है।

कई बार यह समस्या विश्वविद्यालयों, कॉलेजों में व्यापक रूप से सामने आती है तो कई बार यह एक या दो विद्यार्थियों तक ही सिमटी हुई दिखाई पड़ती है। साल 2009 के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार, यूजीसी रैगिंग को लेकर सख्त है और इसकी शिकायत के लिए विद्यार्थियों हेतु हेल्पलाइन नंबर और मेल आईडी दोनों मौजूद हैं।

इस प्रक्रिया में शिकायतकर्ता की पहचान भी गोपनीय रखी जाती है लेकिन कॉलेज या विश्वविद्यालय को पीड़ित की पहचान हो जाए और प्रशासन सावधानी ना बरतें फिर पीड़ित की पहचान उजागर होने पर उसे कई और दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। 

विश्वविद्यालयों में बढ़ती रैंगिंग की विकराल समस्या

हालांकि UGC पीड़ित की पहचान उजागर करने की इजाजत प्रशासन को नहीं देता है। हाल ही की कुछ घटनाओं का जिक्र करें तो साल 2019 में यूपी के सैफई मेडिकल कॉलेज में रैंगिंग के नाम पर लगभग 200 छात्रों के बाल मुंडवाने और उन्हें कॉलेज में सर झुका कर चलने पर मज़बूर किया गया था। वहीं दूसरी एक ऐसी ही घटना मुंबई में घटी जहां एक मेडिकल कॉलेज में दूसरे वर्ष की छात्रा पायल तड़वी ने तथाकथित उच्च जाति की अपनी सहपाठियों की रैगिंग से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी।

देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में भी रैगिंग का मामला इसी वर्ष दर्ज़ किया गया आखिर क्या वजह है कि रैगिंग की परंपरा आज भी विश्वविद्यालयों में बदस्तूर जारी है? हां, यह बात ज़रूर है कि इसमें पहले की अपेक्षा वर्तमान समय में कमी आई है। 

बिहार की राजधानी पटना में स्थित पूरब का ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले पटना विश्वविद्यालय (पटना कॉलेज) के एक विद्यार्थी ने बताया कि रैगिंग की समस्या यहां भी है बस यहां प्रताड़ना का स्तर वह नहीं है, जिसे यह समाज रैगिंग मानता है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट और यूजीसी के द्वारा दी गई रैगिंग की परिभाषा पढ़ने से पता चलता है कि यह किसी भी वर्ष के विद्यार्थी के साथ हो सकता है। कोई भी वैसा कृत्य जो छात्र के साथ अशिष्ट, मानसिक या आर्थिक दबाव का बोध कराएं उसे प्रताड़ित करे, उसे रैगिंग ही माना जाएगा।

किसी छात्र को जबरन गुड मॉर्निंग बोलने के लिए मज़बूर करना, उसके कपड़ों पर टीका-टिप्पणी करना भी रैगिंग का ही एक हिस्सा है और बारीक रूप से रैगिंग की परिभाषा antiragging की बेवसाइट पर दर्ज़ है। हमें ज़रूरत है इसे अच्छे से पढ़ने की और अपने जीवन में समझदारी से आत्मसात करने की।

रैगिंग को लेकर विश्वविद्यालयों की उदासीनता

साल 2019 में पटना कॉलेज का ही एक मामला एंटी रैगिंग हेल्पलाइन में दर्ज़ किया गया था। इस मामले में रैगिंग का कारण था, यूजीसी द्वारा विद्यार्थियों में जागरूकता के उद्देश्य से जारी किए वीडियो को वहां के एक विद्यार्थी द्वारा फेसबुक ग्रुप में पोस्ट करना, जो कुछ छात्रों समेत विश्वविद्यालय प्रशासन को नागवार गुज़रा और उन्होंने विद्यार्थी पर उसे डिलीट करने का अनुचित दबाव बनाया।

पटना कॉलेज

छात्र ने बातचीत में बताया कि उसने कई बार आपत्ति का कारण पूछने का प्रयास किया लेकिन उसे कोई ठोस जवाब नहीं मिला और उस पोस्ट को हटाने का दबाव लगातार प्रशासन द्वारा जारी रहा इस कारण उसे एंटी रैगिंग हेल्पलाइन की मदद लेनी पड़ी। इसका नतीजा यह हुआ कि कॉलेज प्रशासन को फटकार मिली और रैगिंग की परिभाषा पढ़ने की हिदायत भी दी गई और उसमें शामिल छात्रों को पीड़ित छात्र से लिखित रूप में माफी मांगनी पड़ी।

रैगिंग जैसे संवदेनशील विषय पर पटना कॉलेज के प्रोफेसर के अनुभव

इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए पटना कॉलेज हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष शरदेंदु कुमार कहते हैं  “हमारे समय भी रैगिंग होती थी लेकिन रैगिंग के नाम पर मानसिक प्रताड़ना या गुंडागर्दी अब बढ़ गई है। वहीं दूसरी ओर विद्यार्थी और अभिभावक दोनों इसको लेकर सतर्क हुए हैं। वे इसे पसंद नहीं करते, अब कॉलेज प्रशासन भी इस तरह के मामले संज्ञान में आने पर इन्हें बड़ी गंभीरता से लेता है। यूजीसी द्वारा शिकायत की सूचना मिलने पर उसे गंभीरता से लेने और जांच कर रिपोर्ट सौंपने की अनिवार्यता हो जाती है। अब पहले वाली बात नहीं है, जो कॉलेज ऐसे मामलों को अनदेखा कर दिया करते थे। ”

पटना कॉलेज हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष शरदेंदु कुमार

हालांकि, अक्सर ऐसा देखा गया है कि उच्च शिक्षण संस्थान अपना नाम खराब होने के डर से मामले की लीपापोती करने का प्रयास करते हैं और इसके साथ ही कई मामलों में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय पीड़ित पक्ष को काउंसलिंग के नाम पर प्रताड़ित भी करते हैं।

पटना कॉलेज भी इसका एक ज्वलंत उदाहरण रहा है। आज हमें ज़रूरत है इस समस्या के प्रति जागरूक होने की और इस पर विद्यार्थियों के साथ खुलकर चर्चा करने की और हां, ज़रूरत पड़ने पर स्वजनों को घटना की जानकारी देने के साथ हिम्मत और बुद्धि का परिचय देते हुए antiragging helpline में शिकायत दर्ज़ करने की। 

नोट- आकाश, YKA राइटर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम सितंबर-नवंबर 2021 बैच के इंटर्न हैं। इन्होंने इस आर्टिकल में, वर्तमान में विश्वविद्यालयों में बढ़ती हुई रैगिंग की विकराल समस्या और उसके समाधानों की ओर प्रकाश डाला है।

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