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“पति के देहान्त के बाद किसी तरह ठेला लगाकर मैं अपना घर चलाती हूं”

अक्सर गरीबी उन्मूलन की बहुत सारी बातें होती हैं, सरकार भी मंचों के ज़रिये वादों के साथ बड़ी-बड़ी हुंकार भरती है और गरीबी दूर करने के लिए अलग-अलग योजनाएं लाती हैं। जैसे- मनरेगा, उज्ज्वला योजना, पीएम आवास योजना और पीएम किसान योजना आदि।

आखिर इतनी योजनाओं के बाद भी हम गरीब देशों की गिनती में क्यों आ रहे हैं? भारत में दिन-ब-दिन गरीबी का दायरा बढ़ता ही जा रहा है। प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, महामारी के दौरान दुनियाभर में गरीब हुए लोगों में 60 प्रतिशत भारतीय हैं।

भारत में 3.2 करोड़ लोग मध्यम वर्ग की श्रेणी में आ गए हैं और गरीब लोगों की संख्या में 7.5 करोड़ की बढ़ोतरी हुई है।

जबकि, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट 2020 के अनुसार, भारत में किसी गरीब परिवार को मध्यम वर्ग में आने के लिए 7 पीढ़ियों का समय लग जाता है। इसका मतलब है कि भारत 45 वर्षों के बाद फिर “सामूहिक गरीबी का देश” कहलाने की स्थिति में वापस आ गया है।

हाल ही में ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिर्पोट 2021 जारी की गई है, जिसमे भारत की रैंकिंग 116 देशों में से 101वें स्थान पर है। जबकि 2020 में भारत 107 देशों में 94वें स्थान पर था। केवल 15 देश ही भारत के नीचे हैं। इस रिर्पोट के बाद हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि हमारा कितना विकास हुआ है और हम विश्व में किस पायदान पर खड़े हैं?

क्यों गहरा रहा है भूखमरी का संकट?

विश्व की सबसे बड़ी मुफ्त भोजन और सस्ता अनाज योजना गरीबों के लिए भारत सरकार कई वर्षों से चला रही है, जिसमें सरकार के 1.80 लाख करोड़ रुपये हर वर्ष खर्च हो रहे हैं। सवाल यह है कि इसके बावजूद भी हमारे देश में भूखमरी का संकट क्यों बढ़ रहा है?

अगर हम ग्रामीण भारत की बात करें तो आज भी उनकी स्थिति बहुत दयनीय है। भारत की 60 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, जहां ना उनके पास कोई रोज़गार है, ना बेहतर शिक्षा और ना ही समुचित स्वास्थ्य व्यवस्था है।

उनका जीवन कृषि पर निर्भर रहता है लेकिन कुछ वर्षों से पानी की कमी के कारण कई लोगों को खेती-बाड़ी छोड़कर मज़दूरी करनी पड़ रही है। सरकार की महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना के तहत मनरेगा योजना लागू की गई, जिसमे कहा गया कि गरीबी से निजात मिलेगी, लोगों की बेहतर ज़िंदगी होगी मगर ज़मीनी स्तर पर चीज़ें उतनी अच्छी नहीं हैं।

बीपीएल के द्वारा गरीबी रेखा के नीचे वाले लोगों को राशन भी दिया जाता है मगर आज की तारीख में भी वे जीवन-यापन के लिए संघर्ष करते नज़र आते हैं।

हेमन्त सरकार की धोती-साड़ी योजना कैसी है?

झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने गरीबों के लिए एक खास योजना शुरू की है, जिसे सोना-सोबरन धोती साड़ी योजना नाम दिया है। इस योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवारों को एक साड़ी और एक धोती या लुंगी दी जा रही है। इसके लिए BPL परिवारों को सिर्फ 10 रुपये देने होंगे। यानि कि लुंगी और साड़ी मिलाकर 20 रुपये खर्च करने होंगे।

लेकिन इसके बाद भी गरीबी कम हो गई, यह मत समझिएगा। सरकार अपने गुणगान करती थकती नहीं है लेकिन हकीकत तो कुछ और ही है, जो नैशनल और इंटरनैशनल डेटा बता ही रहे हैं।

क्या कहती है ग्लोबल मल्टी डायमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स?

2019 में ग्लोबल मल्टी डायमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स ने बताया कि भारत ने 2006 और 2016 के बीच 271 मिलियन नागरिकों को गरीबी से बाहर निकाला। जबकि 2020 की स्थिति के साथ इसकी तुलना करें तो भारत में सबसे अधिक वैश्विक गरीबी वृद्धि हुई।

गरीबी किस तरह लोगों को मारती है, इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है। हर दिन हम सोशल मीडिया, टीवी, अखबार में देखते हैं महंगाई में एक गरीब के लिए एक वक्त की रोटी भी कितनी मुश्किल हो गई है। गैस सिलेंडर की बढ़ती कीमतों ने लोगों को वापस उसी धुएं में धकेल दिया है, जहां से निकालने के लिए सरकार ने कई योजनाएं चलाई थीं।

दैनिक भास्कर की एक रिर्पोट है, उत्तर भारत के एक गांँव में किसी माँ ने अपनी बीमारी और गरीबी के करण अपनी नौ माह की बच्ची को 1500 रुपये में बेच दिया था। यह पहली घटना नहीं है, बल्कि ऐसे कई मामले सामने आते रहे हैं। गरीबी के कारण कई किशोरियों को चंद पैसों के लिए अनैतिक काम करने वाले लोगों के हवाले कर दिया जाता है।

यह बेहद शर्म की बात है हमारे लिए कि गरीबी के कारण एक माँ को अपनी ममता को मारना पड़ा। बच्चों को अपना बचपन खोना पड़ रहा है।

महामारी की मार भी सबसे अधिक गरीब लोगों पर!

महामारी की मार सबसे अधिक गरीब तबके के लोगों पर पड़ी है। श्रमिक वर्ग को रोज़गार से हाथ धोना पड़ा। घर चलाना मुश्किल हो गया था। लॉकडाउन के बाद कई लोगों का शहरों से गाँवों की तरफ पलायन हो रहा था, जिसमें कई लोगों की जान भी गई। जो लोग गाँव में वापस जा बसे, उनके पास अब कोई रोज़गार नहीं है। महामारी के कारण ग्रामीण ही नहीं, बल्कि शहरों में भी बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा के नीचे आ गए।

रोज़गार ना होने के कारण देश में गरीबों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। पढ़े-लिखे युवा घर बैठे हैं। घर चलाने के दबाव के कारण कई लोग मानसिक बीमारी का शिकार भी हुए हैं। जब लोगों का ही विकास नहीं होगा, तो देश का कैसे होगा? मंदिर बनाने व हिन्दू राष्ट्र के नारे लगाने मात्र से देश का विकास नहीं हो जाता है।

सरकार अपने भाषणों में कहती है गरीबों के कल्याण के लिए हम योजनाएं लाते है ताकि उनका कल्याण हो एक नजर सरकार की योजनाओं के बारे में आंकड़े क्या कहते है।

सीएमआईई के आंकड़े बताते हैं कि भारत में बेरोज़गारी दर 11.6 फीसदी है, जो कि ग्रामीण भारत में 10.60 फीसदी है। वहीं, शहरी क्षेत्रों में यह 13.9 फीसदी है।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय बेरोज़गारी दर 7.97 प्रतिशत पहुंच गई है। यह आंकड़ा शहरी क्षेत्रों में 9.78 प्रतिशत है। जबकि ग्रामीण स्तर पर बेरोज़गारी दर 7.13 प्रतिशत है। साल 2020-21 के GDP ग्रोथ के आंकड़े के साथ भारत 194 देशों की रैंकिंग में 142वें नंबर पर आ गया है।

गरीबी में जीवन-यापन करने वाले लोगों का क्या कहना है?

रूप सिंह कहती हैं, “कोरोना में हमारे पास खाने के लिए कुछ नही था। तीन बच्चे हैं, उनका पेट भरना बहुत मुश्किल हो गया था। 10 से 15 दिन तक गर्म पानी में चाय की पत्ती डालकर गुज़ार कर रहे थे, उससे ही पेट भरा। हमें किसी तरह का कोई राशन नही मिला, ना कहीं कोई रोज़गार। जब हमारे पास गैस सिलेंडर भी खत्म हो गया, तो 4 से 5 दिन तक बिना खाए दिन गुज़ारे। लॉकडाउन खुलने के बाद मैंने रिक्शा चलाना शुरू किया। लोगों के तरह-तरह के तानों को सुना मगर क्या करें, यह पेट की भूख इंसान से सब काम करवा देती है।”

सरजीत कहते हैं, “सरकार की योजना एक चुनावी व्यवस्था है, हमें किसी योजना का पूरी तरह लाभ नहीं मिला है। जब वोट चहिए होते हैं, तो हम गरीब याद आते हैं। जीतने के बाद हमें किसी की शक्ल तक नहीं दिखती।”

मंजू कहती हैं, “मेरे पति के मरने के बाद मेरे पास कुछ नहीं था। मेरे 4 बच्चे हैं, ठेला लगाकर मैं अपना घर चलाती हूं। आर्थिक तंगी के कारण मैं अपनें 2 बच्चों को पढ़ा नहीं पाई। घर का किराया, खाना-पीना, 2 लड़कियों की पढ़ाई का खर्चा मैं ठेले से निकाल लेती थी लेकिन कोरोना ने यह रास्ता भी बंद कर दिया और जीना इतना मुश्किल हो गया कि अकेली बैठी रहती तो आंसू नहीं सूखते। ये गरीबी भगवान किसी को ना दिखाए।”

सरिता कहती हैं, “हमारे पास इतना पैसा नही है कि हम सैनेटरी नैपकिन खरीद सकें। इसलिए हम पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करते हैं।”

क्या गरीबों के हालातों से अंजान है सरकार?

गरीबी के कारण आज एक महिला अपनी ज़रूरतों को पूरी नहीं कर पा रही हैं। भारत के ग्रामीण इलाके, जहां पर महिलाओं के पास सैनेटरी नैपकिन खरीदने तक के पैसे नहीं हैं। रोज़गार ना होने की वजह से गाँवों से लोग बड़े-बड़े महानगरों में बस जाते हैं, जहां नालों के पास, ट्रेन की पटरी के किनारे, कचरे के ढेर में अपना जीवन-यापन करते हैं।

स्वच्छता की कमी के कारण यहां ज़्यादातर बच्चे हैजा की जैसी बीमारी से पीड़ित हो जाते हैं और मौत के मुंह में चले जाते है। भारत में गरीबी बच्चों, परिवारों और व्यक्तियों को बहुत प्रभावित करती है। बच्चे कचरे के ढेर से प्लास्टिक इकठ्ठा करते हैं, सड़क या नुक्कड़ पर करतब दिखाते हैं, जिसमें उनकी जान को खतरा होता है, उन्हें भीख मांगने पर मजबूर  किया जाता है।

महिलाएं और छोटी लड़कियों को दूसरों के घरों में काम या देह व्यापार जैसा काम करना पड़ता है और बड़े-बड़े मंत्री, बच्चों को शिक्षा की जगह बिस्किट के पैकेट, लोगों को रोज़गार की जगह कम्बल दान करते हैं। एक सीधा सा सवाल है कि इन सब की जगह सरकार रोज़गार क्यों नही देती है?

क्या सरकार इन सबसे अंजान है? नहीं! अगर गरीबी खत्म हो जाएगी, तो चुनावी मुद्दे ही खत्म हो जाएंगे। हर बार एक गरीब के कंधे पर हाथ रखकर ही तो चुनाव जीतने की कवायत शुरू होती है। चुनाव जीतने के बाद ईद का चांद हो जाते है हमारे तमाम नेता।

सत्ता में बैठे लोग विश्व व राष्ट्रीय स्तर की बातें करते हैं लेकिन देश के आंतरिक मुद्दे, जैसे- बेरोज़गारी, भूखमरी, गरीबी, शिक्षा और स्वास्थ्य आदि को क्यों नज़रअंदाज़ करते हैं? हम एक ऐसे देश में रहते हैं, जहां मंत्रियों को महिलाओं के ऊपर बेवजह टिप्पणी करने से फुरसत नहीं है, तो वे देश के आर्थिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक और सामाजिक आदि मुद्दों पर कैसे दृष्टिकोण डालेंगे।

आज हमारा देश आन्तरिक रूप से पूरी तरह खोखला होता नज़र आ रहा है। अब हम गर्व से यह नहीं कह सकते हैं कि हम विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में रहते हैं, क्योंकि हमारी तो रोटी, कपड़ा और मकान की ज़रूरत भी पूरी नहीं हो पा रही है।

सोर्स लिंक- DW हिन्दी, DownToEarth


नोट: शिप्रा, YKA राइटर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम सितंबर-नवंबर 2021 बैच की इंटर्न हैं।

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