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जानिए छत्तीसगढ़ के आदिवासी गाँवों में कोचई की खेती और उसके फायदों के बारे में

जानिए छत्तीसगढ़ के आदिवासी गांव में कोचई की खेती और उसके फायदों के बारे में

भारत के अलग-अलग राज्यों में कोचई को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। कई राज्यों में इसे अरबी कहते हैं लेकिन छत्तीसगढ़ में लोग इसे कोचई कहते हैं। कोचई का ज़्यादातर उपयोग सब्जी के रूप में होता है। यह एक कन्द के रूप में प्राप्त होता है। छत्तीसगढ़ में इसकी सब्ज़ी आदिवासियों को बहुत पसंद है। 

कोचई खेती की प्रक्रिया 

कोचई की खेती बाड़ी में की जाती है। बाड़ी में जिस जगह पर खेती करनी होती है, उस जगह के घास-फूस को पहले हटाया जाता है फिर निराई की जाती है या कोई हल (नांगर) से जुताई भी की जाती है। इस तरह से बाड़ी को साफ किया जाता है फिर उसमें मान्दा बनाकर कोचई को लगाया जाता है।

जिस जगह पर कोचई की खेती करनी होती है, उस जगह पर गोबर खाद या घर से निकलने वाली अपशिष्ट पदार्थों से खाद बनाकर डाला जाता है, जिससे वह मिट्टी उपजाऊ हो जाती है और इससे कोचई की उपज अच्छी होती है। कोचई की खेती मिट्टी को ध्यान में रखते हुए की जाती है। कोचई सभी प्रकार की मिट्टियों में नहीं होती है। इसे अक्सर काली मिट्टी में ही उगाया जाता है।

कोचई को जब लगाना होता है, तब उसको पहले से निकाल के रख देते हैं और उसमें छोटी जड़ें निकलने लगती हैं, तब उसको बाड़ी में मान्दा बनाकर लगा देते हैं। मान्दा बनाने के लिए फावड़े से मिट्टी को चारों तरफ से खींचते हैं और इकठ्ठा करते हैं फिर एक मान्दा में लगभग तीन-चार जगह कोचई को लगाया जाता है।

कोचई लगाते हुए।

कोचई लगाने के बाद उसको मिट्टी से ढक दिया जाता है। कोचई लगभग एक सप्ताह में तैयार हो जाती है और उसके पत्ते निकलने लगते हैं। कोचई को बड़ा हो जाने पर कोढिया दे देते हैं, जिससे वह अच्छे से बढ़ता है और उसका कन्द भी बड़ा होता है। कोचई को लगाने के बाद उसके मान्दा को ढक देते हैं या उसके ऊपर गीले गोबर से छाप देते हैं, जिससे कोचई ज़ल्दी उग जाता है। कोचई जून-जुलाई में लगाया जाता है और उसकी नवम्बर-दिसम्बर में खुदाई की जाती है।

कोचई की खेती के लिए बनाया गया मांदा।

कोचई के प्रकार 

1.देशी कोचई- देशी कोचई बरसात में जून-जुलाई माह में लगाया जाता है। इसे खेत के मेड़ में या मान्दा बनाकर या क्यारी बनाकर लगाया जाता है।

2.सारू  कोचई- यह देशी कोचई से थोड़ा बड़ा होता है। इसके लिए क्यारी या मान्दा की ज़रूरत नहीं पड़ती है, जहां गोबर-कचड़ा होता है और पानी होता है, ऐसे जगह में इसकी उपज अच्छी होती है।

3.गर्मी कोचई- गर्मी कोचई की उपज नदी के ढलान क्षेत्र में और नदी की रेत में अच्छी होती है। 3-4 माह में इसकी फसल निकल जाती है।

देशी कोचई।

कोचई का उपयोग

कोचई का उपयोग अक्सर सब्जी के रूप में किया जाता है। कोचई (अरबी) के कन्द से लेकर शाखा और पत्ती सभी का उपयोग सब्जी के लिए किया जाता है। इसकी सब्ज़ी बड़ी स्वादिष्ट होती है। उड़द दाल को पीसकर कोचई के पत्ते में लपेट कर तेल में तलकर सब्जी बनाई जाती है। इसके और भी उपयोग हैं। किसी को थोड़ा बहुत जलने पर देशी कोचई को पत्थर से घिसकर मोटी परत जले हुई भाग पर लगाने से ठंडक मिलती है और घाव ज़ल्दी ठीक होता है।

कोचई की खेती करने में ज़्यादा मेहनत नहीं लगती है और इस खेती के लिए ज़्यादा पानी की ज़रूरत नहीं पड़ती है । कोचई की खेती कम खर्च में ही हो जाती है। कोचई की कन्द 6 माह में पक कर तैयार हो जाती है। उसके बाद किसान बाज़ार में इसे बेच कर अच्छे ख़ासे पैसे कमा लेते हैं। कोचई खाने में भी स्वादिष्ट होती है और सेहत के लिए भी अच्छी होती है।

नोट- यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है और इसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग शामिल है।

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