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“नविका कुमार, क्या इस तरह की पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जा सकता है?”

28 सितंबर की रात को टाइम्स नाउ पर ‘काँग्रेस कॉमेडी ऑफ एरर्स’ नामक एक पैनल की मेजबानी करते हुए नविका कुमार ने एक गलती कर दी और वो गलती यह थी कि राहुल गाँधी के बारे में बात करते हुए नाविका ने ‘ब्लडी’ शब्द का इस्तेमाल किया।

हालांकि नविका कुमार को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने अपनी गलती के लिए माफी भी मांगी लेकिन सच्चाई तो यह है कि यह घटना बहुत अपमानीय और अस्वीकार्य थी। इस घटना के बाद एक सवाल मन में कौंधता हैं कि हम इस लहजे को सही पत्रकारिता कहे सकते हैं? क्या इस तरह की पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जा सकता है?

लाइव शो के दौरान टाइम्स नाऊ की संपादक नविका कुमार। फोटो साभार- सोशल मीडिया।

मेरा मानना है कि अब यह पुरानी बात हो चुकी है जब पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता था, क्योंकि वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए ऐसा लगता है कि पत्रकारिता अब नेताओं के तलवे चाटने से शुरू होती है और सही-गलत को नज़रअंदाज़ करते हुए उनके पक्ष पर खत्म हो जाती है। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि मीडिया चैनलों ने अपने-अपने राजनीतिक दल चुन लिए हैं और उनके चैनलों में नेताओं का गुणगान जारी रहता है।

कई बार ऐसा भी देखा गया है कि जिन राजनीतिक दल के विचारों से मीडिया चैनल के विचार मेल नहीं खाते हैं, उनके लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करना और उन्हें पूरे देश के सामने शर्मसार करना यही पत्रकारिता का स्तर बन चुका है।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि जब पत्रकारिता के नाम पर पत्रकारों ने अपनी हदें पार की हैं। हमें आये दिन आमतौर पर ये चीज़ें देखने को मिल जाती हैं कि न्यूज़ एंकर ऊंची आवाज़ के साथ आस्वीकार्य लहज़े में अपनी बातों को रखते हैं या ये कह लीजिए कि अपने पसंदीदा पॉलिटिकल पार्टी की बात रखते हैं और सामने वाले दल को इस चीज़ के लिए मजबूर करते हैं कि चाहे बात सही हो या गलत, आपको माननी पड़ेगी।

हम ऐसे कई मौके देख चुके हैं, जहां पर पत्रकारों ने पत्रकारिता का स्तर गिराकर किसी मुद्दे को सबके सामने पेश किया है। हाल मे ही मशहूर टीवी अभिनेता सिद्धार्थ शुक्ला के निधन पर पूरे देश ने पत्रकारिता को शर्मसार होते देखा था। टीवी सेलेब्रिटीज़ गौहर खान, सुयश राय समेत कई हस्तियों ने अभिनेता सिद्धार्थ शुक्ला के अंतिम संस्कार से पहले असंवेदनशील तरीके से कवरेज करने के लिए मीडिया संगठनों पर निशाना भी साधा था।

मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए एक सवाल मन में उठता है कि कहीं-ना-कहीं मीडिया समाज को सही आकार देने में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है, फिर मीडिया की तरफ से इस तरह की गलतियां क्यों दोहराई जाती हैं?

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