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“अहिंसा का अर्थ दूसरों के अधिकारों का सम्मान करना भी है”

"अहिंसा का अर्थ दूसरों के अधिकारों का सम्मान करना भी है"

यंगशाला की रूबरू श्रृंखला के तहत “युवा और शांति” विषय पर परिसंवाद 

गांधी का दर्शन अपने कर्तव्यों के माध्यम से समाज सुधार का सन्देश देता है। युवाओं को चाहिए कि वे विपरीत समय में धैर्य से काम लें और अपने मार्ग पर डटे रहें। आपको इंसानियत पर कभी भी भरोसा नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि इस दुनिया में इंसानियत एक ऐसा समुद्र है, जहां अगर कुछ बूंदें गंदी हो भी जाएं तो भी समुद्र गंदा नहीं होता। 

अपने उदबोधन के दौरान उक्त विचार कार्यक्रम की विशिष्ट वक्ता और मध्यप्रदेश पुलिस की अतिरिक्त महानिदेशक सुश्री अनुराधा शंकर सिंह ने युवाओं को सम्बोधित किया। यह मौका था, यंगशाला समूह की रूबरू श्रृंखला के अंतर्गत “युवा और शांति” विषय पर आयोजित संवाद का और इस संवाद की शुरुआत एक युवा साथी साहिल के स्वरचित गीत और गांधी जी के बहुचर्चित भजन ‘रघुपति राघव राजाराम’ से हुई।

सुश्री सिंह ने अपने उद्बोधन के दौरान कहा कि गांधी का साहस बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे अपने बारे में ही निष्ठुर सच कहने का साहस रखते हैं। एक अंग्रेज़ी उपन्यासकार और अपने समय के बेहतरीन आलोचक जॉर्ज ऑरवेल ने महात्मा गांधी पर लिखे अपने आलेख में कहा है कि “गांधी ने अपनी समस्याओं और अपने आप से जुड़ी बुरी आदतों के बारे में स्वयं लिखा है और यह कोई साहसी व्यक्ति ही कर सकता है।” उन्होंने कहा कि आप सभी युवा गांधी हैं, क्योंकि युवा वही जिसमें सीखने की ललक हो, जिसके पास ताकत हो और हिम्मत हो।

उन्होंने कहा कि गांधी जीवन शैली भी है। आपको महात्मा गांधी की किताबें आपको हर पुस्तकालय में मिल जाएंगी, मगर क्या केवल इससे दुनिया बदल जाएगी? नहीं! बल्कि उन विचारों को आत्मसात करने से ही बदलेगी। सुश्री सिंह द्वारा साझा की गई इसी प्रकार की कई बातों ने युवाओं के मन में कई सारे सवाल पैदा किए।

यंगशाला की रूबरू श्रृंखला के तहत “युवा और शांति” विषय पर परिसंवाद का दृश्य।

एक युवा साथी सदफ़ पूछती हैं कि कई बार हमारे आसपास के लोग ही बहुत गलत कहते और करते हैं, उन्हें समझाने की कोशिश भी असफल हो जाती है, ऐसे में उन्हें गांधी के विचार कैसे बताएं? इसके जवाब में वक्ता कहती हैं कि जब-जब हम अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे होते हैं हम तब-तब गांधी के मार्ग पर ही चल रहे होते हैं। आज अगर आपके मित्रों में कोई भी ऐसा व्यक्ति है, जो आपसे अलग धर्म, सम्प्रदाय, जाति या वर्ग से आने वाला हो तो आप गांधी के ही रास्ते पर ही हैं।

बापू ने स्वयं भी कहा था कि तुम मुझे मार नहीं पाओगे, मार डालोगे तब भी नहीं मार पाओगे, मैं अपनी समाधि से निकलकर तुम्हारे साथ चल पडूंगा। इसलिए आप हमेशा याद रखें कि एक स्त्री के रूप में जब भी आप अपनी अस्मिता के लिए खड़ी हैं, तब भी आप गांधी के ही मार्ग पर हैं। एक और साथी शुभम कहते हैं कि गांधी के विचार में राष्ट्रवाद क्या है? तो उन्होंने कहा कि सर्वसमावेशी राष्ट्रवाद ही गांधी की नज़र में राष्ट्रवाद था।

आज के परिवेश में अहिंसा क्या है? युवा साथी नीतू के इस सवाल के जवाब में सुश्री सिंह कहती हैं कि हिंसा केवल शारीरिक नहीं होती, आपकी वजह से यदि किसी का नुकसान होता है तो यह भी हिंसा है। अहिंसा का अर्थ यह भी होता है कि आप दूसरों के अधिकारों का सम्मान करें। देश के लिए मरना नहीं है बल्कि जीना है और दूसरों को जीने भी देना है। 

गाँव से सम्बंधित एक सवाल के जवाब में अनुराधा जी कहती हैं कि आप सब आज वर्चुअल ग्राम (इन्सटा) पर हो, आप इस ग्राम से किसी भी सामाजिक परिवर्तन के लिए संग्राम छेड़ सकते हैं। युवाओं में एक ताब है, अपने स्वयं के अंदर के उस ताब को पहचानिए और धैर्य से आगे बढ़िए। हमें बस याद रखना होगा कि सामाजिक परिवर्तन बिजली का बटन नहीं होता, धीरे-धीरे ही परिवर्तन आता है और ऐसे ही होना भी चाहिए जिससे असर व्यवस्थित रूप से हो सके और लोग भी साथ जुड़ते जाएं।

हेमंत पूछते हैं कि देश-विदेश में जिस व्यक्ति को महात्मा का दर्ज़ा मिला हुआ है, उनकी आज इतनी आलोचना क्यों होती है? इस पर अनुराधा कहती हैं कि महात्मा गांधी की आलोचना तो होगी ही क्योंकि वह बहुत सारे सवाल खड़े करते हैं, चुनौती देते हैं। उन्होंने कहा कि यह विपरीत हिंसक समय है और ऐसे में गांधी की ओर मुड़ना और गांधी के विचारों को अपनाना ही एकमात्र विकल्प के रूप में सामने आता है। 

इसके पहले प्रशांत दुबे ने कार्यक्रम की प्रस्तावना रखी। इस परिसंवाद में वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्त्ता राकेश दीवान के साथ-साथ लगभग 50 युवा साथी जुड़े। इस कार्यक्रम में बारे में बताते हुए यंगशाला की संस्थापक सदस्य रोली शिवहरे ने कहा कि रूबरू श्रृंखला संवाद की श्रृंखला है और हमे बेहद खुशी है कि कोरोना लॉकडाउन के बाद से यह शुरू हो पाया है।

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