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आखिर क्यों किन्नौर के नौजवान चला रहे हैं नोटा बटन दबाने का अभियान?

बर्बाद होते किन्नौर को बचाने के लिए, नौजवान चला रहे नोटा बटन दबाने का अभियान

हिमाचल प्रदेश में मंडी के सांसद राम स्वरूप वर्मा की संदिग्ध परिस्थितियों में दिल्ली के अंदर हुई मौत के बाद खाली हुई सीट पर 30 अक्टूबर को चुनाव होने जा रहे हैं। चुनाव में कांग्रेस पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री सामंती राजा वीरभद्र की मौत के बाद उनको श्रद्धांजलि के नाम पर वोट मांग रही है। उन्होंने वीरभद्र की पत्नी ’राजमाता’ प्रतिभा सिंह को चुनाव में उतारा है।

वहीं बीजेपी ने ‘करगिल हीरो’ खुशाल ठाकुर को चुनाव में उतारा है और सेना के नाम पर वोट मांग रही है। पूरे चुनाव में आम जनता के मुद्दे गायब हैं। खासकर जनजातीय ज़िले लाहुल स्पीति और किन्नौर की जनता के मुद्दे सिरे से इस चुनाव में गायब हैं।

हिमाचल प्रदेश के दूर-दराज के जनजातीय बहुल ज़िले किन्नौर के नौजवान कई महीनों से जल विद्युत परियोजनाओं के खिलाफ ‘नो मैन्स नो अभियान’ चला रहे हैं। जल विद्युत परियोजनाओं ने किन्नौर के पर्यावरण और आर्थिक जन-जीवन को बुरी तरह से बर्बाद कर दिया है। इस सब के खिलाफ वहां के नौजवानों में सालों से जमा हुआ आक्रोश नोटा को वोट करने के रूप में निकल कर सामने आ रहा है।

एक दैनिक में छपी खबर के अनुसार, हालांकि उपचुनाव के बहिष्कार की आवाज़ तेज़ होती जा रही है लेकिन अब स्थानीय देवता “पाथोरो” ने 26 अक्टूबर को अपनी मंजूरी दे दी है। ग्रामीणों द्वारा सामूहिक रूप से मतदान का बहिष्कार किया जाएगा। रारंग पंचायत में लगभग 1,000 पंजीकृत मतदाता हैं।

रारंग, खाब, थोपन और खादरा के ग्रामीण जलविद्युत-परियोजना के आने का विरोध कर रहे हैं। वे मांग कर रहे हैं कि इसे खत्म किया जाना चाहिए, क्योंकि यह रारंग पंचायत और पर्यावरण के लिए हानिकारक होगी। यह परियोजना सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड को आवंटित की गई है। हालांकि इस पर काम शुरू होना बाकी है।

रारंग संघर्ष समिति के सचिव चेरिंग ग्योचा ने कहा है कि ‘उपचुनाव का बहिष्कार करने के निर्णय के लिए सहमति है, अब रारंग पंचायत से कोई भी अपना वोट नहीं डालेगा, क्योंकि लोगों को तत्कालीन देवता में गहरा विश्वास है।’

चेरिंग ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने लोगों पर जंगी थोपन परियोजना को थोपने और चालू करने की कोशिश की तो आंदोलन होगा। हिमालय बचाओ आंदोलन से जुड़े और हिमालय के महासचिव भगत सिंह ने चेतावनी दी है कि ‘परियोजना को चालू करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के साथ समझौता तुरंत रद्द किया जाना चाहिए अन्यथा सरकार को ग्रामीणों के आक्रोश का सामना करना पड़ेगा।’

बौद्ध सांस्कृतिक संघ के किशोर कुमार ने कहा, “ग्रामीणों ने कई विरोध प्रदर्शन किए और पिछले 12 वर्षों में केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकार को कई आवेदन भेजे, जब से परियोजना की कल्पना की गई थी। किसी भी एजेंसी ने हमें हमारी शिकायतों को दूर करने के लिए धैर्यपूर्वक सुनवाई करने की जहमत नहीं उठाई।”

रारंग संघर्ष समिति के अध्यक्ष ने कहा कि यह लोगों पर निर्भर करता है कि वे मताधिकार के अधिकार का प्रयोग करना चाहते हैं या नहीं। उनके देवता की स्वीकृति के अनुसार, कोई भी अपना वोट नहीं डालेगा।

19 अक्टूबर को 1000 मेगावाट की जल विद्युत पपरियोजना से प्रभावित पंचायत के प्रतिनिधियों ने सोशल मीडिया के ज़रिये अपनी मांगों को नज़रअंदाज़ करने का आरोप लगाते हुए लोगों से नोटा को वोट करने की अपील की है।

इस अभियान में किन्नौर के पढ़े-लिखे नौजवान बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं और सोशल मीडिया पर अभियान चला रहे हैं। उनका कहना है कि ‘अभी तक राजनीतिक, प्रशासनिक व सतलुज विद्युत निगम के रवैये को देखते हुए हमें ये निर्णय लेना पड़ा है।’

हमे साफ तौर पर प्रोजेक्ट निरस्त होने के ऑफिशियल नोटिफिकेशन चाहिए अन्यथा हम अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए अपना विरोध जारी रखेंगे। अब बात हमारे अस्तित्व और हमारे पहचान की है और इस पर हमें उम्मीद है कि आम जनता भी पार्टीबाजी से ऊपर उठ कर किन्नौर के लिए सोचेगी।

23 अक्टूबर को रूपश्री यूथ क्लब जंगी ने नोटा को वोट करने की घोषणा की है। वहीं खादरा क्लब व महिला मंडल ने इस मंडी लोक सभा उप चुनाव में नोटा को वोट देने का फैसला लिया है। इस तरह बहुत सारे युवक मंडल और महिला मंडलों ने नोटा को वोट देने का फैसला किया है।

इसकी शुरुआत 26 अगस्त को विद्युत् परियोजनाओं के खिलाफ किन्नौर में हुई आह्वान रैली से हो गई थी। रैली में भारी संख्या में लोगों ने भाग लेकर अपना विरोध प्रकट किया था।

ज्ञात रहे कि सतलुज घाटी जल विद्युत् परियोजनाओं के कारण तबाही के किनारे खड़ी है। इस नदी में सबसे नीचे भाखड़ा बांध जिसका आकार 168 वर्ग किलोमीटर और भंडारण क्षमता 9.340 घन कि.मी. है। इसके बाद कोल डैम जो सुन्नी तक 42 किलोमीटर तक फैला हुआ है, जिसकी कुल भंडारण क्षमता 90 मिलियन क्यूबिक मीटर है।

नाथपा झाखड़ी परियोजना, जो कि 27.394 कि.मी. लंबी है। हिडनकोस्ट ऑफ हाईड्रो पावर नामक रिपोर्ट का दावा है कि ‘हिमाचल की कुल जल विद्युत क्षमता 27,436 मेगावाट है और अकेली सतलज नदी की क्षमता 13,322 मेगावाट है। इसी कारण सतलज नदी पर ही ज्यादातर जल विद्युत परियोजनाएं स्थापित की जा रही हैं। अब तक हिमाचल में 27 जल विद्युत परियोजनाएं स्थापित हैं और 8 निर्माणाधीन हैं।’

किन्नौर पूरे देश में जल विद्युत उर्जा का गढ़ बना हुआ है. जहां पर 1500 मेगावाट और 1000 मेगावाट की दो बड़ी परियोजनाओं सहित 10 रनिंग ऑफ द् रिवर परियोजनाएं जारी हैं और 30 स्थापित की जानी हैं। ये सब परियोजनाएं पर्यावरण के लिए एक डरावनी तस्वीर पेश करते हैं। इस सब के चलते किन्नौर के युवा नोटा को चुनने के लिए मज़बूर हुए हैं।

नोट- लेखिका रितिका ठाकुर, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला में रिसर्च स्कॉलर हैं।

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