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कविता : तड़पती हो तुम हर औरत में

कविता : तड़पती हो तुम हर औरत में

लौटती हो तुम घर

किताबों का भारी बस्ता टांगे
अपने कंधों पर
आते ही चली जाती हो
किचन में
खाने के बाद धोती हो बर्तन
बैग से टिफिन निकालना
बिल्कुल मत भूलना!
वरना सुननी पड़ेगी दो-चार

मैं जानती हूं
अब तुम्हारे पढ़ने का समय है
जैसे ही किताब खोलती हो
बुला लेता है कोई ना कोई तुम्हें
मज़बूरी में जाना पड़ता है तुम्हें भी

वापस लौटती हो अपने कमरे में
हाथ में लेती हो किताबों को
खेलती हो शब्दों से
तैरती हो सपनों के समंदर में
अब भर गया है मन तुम्हारा
जाना चाहती हो खुली हवा में
तुम्हारा भी मन करता है
दोस्तों के साथ खेलने जाने का

पहला कदम घर से बाहर रखते ही
घेर ली जाती हो तुम नज़रों में
तुम्हें “अच्छे घर” की बेटी
होने का अहसास कराया जाता है
कर्फ्यू लगा दिया जाता है
तुम्हारी रातों में!
तुम्हरी आवाज़ और सपने
कैद कर लिए जाते हैं
सामाजिक व्यवस्था के पिंजड़े में

देखती रहती हो तुम अनिमेष
होती हुई अपने सपनों की नीलामी!
ये ठेकेदार हैं अपना ज़मीर बेचे हुए
तुम धधकती हो भीतर ही भीतर
छुपा लेती हो उठते धुएं को फिर भी

खुद से ही लड़ती रहती हो
दो दुनिया में झूलती हो तुम
सपनों के संसार से जब गिरती हो
ठेकेदारों के समाज में
टूटकर बिखर जाती हो तुम

हर पल तुम संघर्ष करती हो
एक सिपाही सी क्यों लगती हो?
और किसी से नहीं
खुद से झगड़ती हो तुम
मुझ जैसी ही मुझे
क्यों लगती हो तुम प्रिय
तुम जैसी ही क्यों लगती हैं
सारी महिलाएं मुझे?
क्यों सुनती चली जाती हैं
वो बातें जिनसे हैं वो नागवार

पढ़ाई के साथ-साथ
घर का काम भी आना चाहिए
ससुराल जाकर
हमारी बदनामी कराएगी क्या?
हमारी नाक कटे
कभी ऐसा काम मत करना
लड़कियों की इज़्ज़त
लोगों के हाथ में होती है

हर बात पर ज़िद करना
बंद कर दे अब
लड़कियों जैसे काम
और तौर-तरीके भी सीख ले
लड़की होते हुए भी
एक “लड़की” जैसा होना
ज़रा मुश्किल है
एक लड़की जैसा दिखाई देना

क्या तुम वो नहीं सोचती
जो बात मुझे कचोटती है दिन-रात
घुटन से सोने नहीं देती
और हर दम लड़ती है मुझसे
नींद तो तुम्हें भी नहीं आती
सांस तुम्हारी भी रुक जाती है
लड़ती तुम भी हो खुद से
ठीक वैसे ही
जैसे तमाम शानो-शौकत
के बावजूद तड़पती है हर औरत
तड़पती हो तुम हर औरत में

सोचती हो
ये बंदिशें छोड़ पाती
काश! मैं ये जंजीरें तोड़ पाती
जिससे मुझे खुशी मिले
सुकून मिले
अपनी मर्ज़ी का
हर वो काम कर पाती
काश!
मैं सब कुछ बदल पाती
इस दुनिया को
जीने लायक बना पाती

नोट- रिया नानकमत्ता, उत्तराखंड की निवासी हैं। अभी नानकमत्ता पब्लिक स्कूल की कक्षा 11वीं में मानविकी में अध्ययनरत हैं। रिया को लिखना, किताबें पढ़ना, लोगों से मिलना बातें करना, अपने आसपास की चीज़ों को  एक्सप्लोर करना और बोलना बहुत पसंद है।

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