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कविता : यदि यही कारण है, तो हां आदिवासी “असभ्य” हैं

कविता : यदि यही कारण है, तो हां आदिवासी “असभ्य” हैं

शायद लोग हमें इसलिए असभ्य कहते हैं

क्योंकि हम वनों को बर्बाद नहींसंरक्षित करते हैं

 

शायद लोग हमें इसलिए असभ्य कहते हैं

क्योंकि हम प्रकृति को अपना स्वार्थ नहींअपना परिवार मानते हैं

 

शायद लोग हमें इसलिए असभ्य कहते हैं

क्योंकि हमने महिलाओं को शिक्षा के अधिकार से कभी वंचित नहीं किया

 

शायद लोग हमें इसलिए असभ्य कहते हैं

क्योंकि हमने महिलाओं से कभी दहेज़ नहीं लिया

 

शायद लोग हमें इसलिए असभ्य कहते हैं

क्योंकि हमारे समाज में भ्रूण हत्या ना के बराबर है

 

शायद लोग हमें इसलिए असभ्य कहते हैं

क्योंकि हमारे समाज में विधवा पुनर्विवाह शुरू से प्रचलित था

 

शायद लोग हमें इसलिए असभ्य कहते हैं

क्योंकि हम घर जमाई को शर्मसार नहींउनका सम्मान करते हैं

 

शायद लोग हमें इसलिए असभ्य कहते हैं

क्योंकि हमारे समाज में ‘सहशिक्षा’ हज़ारों सालों से प्रचलित है

 

शायद लोग हमें इसलिए असभ्य कहते हैं

क्योंकि हमारे कई ‘घोटुल’ संस्थाओं में लिव इन रिलेशनशिप प्रचलित था

 

शायद लोग हमें इसलिए असभ्य कहते हैं

क्योंकि हमने सजने संवरने के लिए केमिकलों का नहींप्रकृति का सहारा लिया

 

शायद लोग हमें इसलिए असभ्य कहते हैं

क्योंकि हम हज़ारों सालों से  गोदना बनवाते  रहे हैं

 

शायद लोग हमें इसलिए असभ्य कहते हैं

क्योंकि हमारी अनगिनत नृत्यसंगीत एवं शिल्पकलाएं हैं

 

यदि हमारे “असभ्य” कहलाने का यही कारण है

तो हां हम असभ्य हैं।  

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