Site icon Youth Ki Awaaz

प्रति लाख आबादी पर बिहार में महज़ 8 कॉलेज ही क्यों हैं नीतीश कुमार?

वर्तमान परिस्थितियों में बिहार में उच्च शिक्षा की स्थिति देखकर लगता है कि वहां के स्टूडेंट्स भेड़-बकरी हैं, जिन्हें कोई एक जगह पर बांधकर खोलना भूल गया है। किसी समय बिहारी कामगारों के लिए बिहारी एक गाली की तरह प्रयोग किया जाता था और उन्हें राजनीतिक रूप से भी बंबई जैसे महानगरों में प्रताड़ित किया जाता था लेकिन आज यही शब्द यहां के स्टूडेंट्स के लिए आत्मग्लानि लगने लगा है।

हम अक्सर इस वजह से प्रतिष्ठित कॉलेजों में एक संकीर्ण मानसिकता वाले उच्च शहरी सहपाठियों के शिकार हो जाते हैं, क्योंकि हमारी प्रारंभिक शिक्षा बिहार से हुई होती है।

बिहार और उच्च शिक्षा के आंकड़े

आज हर बिहारी बड़े गर्व से बोल रहा है कि UPSC टॉपर मेरे राज्य से है लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि जैसे कमला हैरिस के उप-राष्ट्रपति बनने पर हर हिंदुस्तानी गर्व से कह रहा था कि वो भारतीय हैं और यह नहीं समझ पा रहा था कि वो अब सिर्फ भारतीय मूल की ही हैं।

आइए हम समझते हैं कि इस तरह के परिस्थितियों में, जहां एक ओर UPSC जैसे प्रतिष्ठित प्रतियोगी परीक्षाओं में टॉप-10 में से 3 टॉपर बिहार से हों, तो उस प्रदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे लाखों स्टूडेंट्स का वर्तमान और भविष्य कैसा दिख रहा है? शर्मनाक यह भी है कि बिहार में कॉलेजों की कुल संख्या 874 हैं मगर प्रति लाख आबादी सिर्फ 8 कॉलेज ही हैं।

क्या कहते हैं स्टूडेंट्स?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

बिहार की खस्ताहाल शिक्षा को लेकर मैंने जब अपने स्कूल के दिनों के एक साथी जावेद से पूछा तो वो बड़े मायूस होकर बताते हैं,

मैं घर की आर्थिक स्थिति को देखकर यहीं की किसी यूनिवर्सिटी से स्नातक करना चाहता था लेकिन यहां पर एडमिशन लेने के बाद हमें चार से पांच साल लग जाते हैं और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए हमारी उम्र भी निकाल जाती है।

जावेद ने इस बार गोरखपुर यूनिवर्सिटी, UP से स्नातक कर लिया है। इस बार BPSC देने की तैयारी कर रहे हैं। जावेद मुझसे यह भी बताते हैं कि सरकार उच्च शिक्षा के लिए लोन दे रही है लेकिन सरकार का उच्च शिक्षण संस्थानों पर किसी भी तरह से ध्यान नहीं है।

ऐसे ही मेरी एक सहपाठी बताती हैं, “मैंने भी बिहार के मुंगेर यूनिवर्सिटी के SKR कॉलेज से फर्स्ट ईयर पूरा कर लिया था लेकिन शिक्षा की गुणवर्णता को देखते हुए मैं जामिया चली आई। कॉलेजों में प्रोफेसर्स की संख्या ना के बराबर हैं, कॉलेज में स्टूडेंट्स सिर्फ फीस जमा करने या परीक्षा देने के लिए ही जाते हैं।”

मैंने UPSC के रिज़ल्ट आने के बाद बिहार के टॉपर होने के जश्न मनाने वाले अपने एक साथी ताबिश से उनकी उच्च शिक्षा के बारे में पूछा। वो मायूस होकर बताते हैं कि बड़ी मुश्किल से मैंने UP के एक कॉलेज से BA किया। वो बताते हैं कि पढ़ाई के नाम पर कुछ नहीं हुई है और यह भी कहते हैं कि अगर मेरे ज़िले का कॉलेज सही से चलता तो मैं रोज़ जाता और मेरा ग्रैजुेएशन भी सही से हो जाता तो अगली बार बिहार से ही B.Ed कर के यही शिक्षक बनकर अपने राज्य की सेवा करता।

बिहार में उच्च शिक्षा का गोल्डन पीरियड

मैंने जब इस बारे में अपने दादाजी से बात की तो वो कहते हैं कि जब हम कॉलेजों में पढ़ा करते थे तो कक्षाएं नियमित रूप से चला करती थीं और स्टूडेंट्स को प्रत्येक कक्षा लेनी अनिवार्य होती थी। कॉलेजों में विद्वान प्रोफेसर हमारी क्लासेज़ लिया करते थे और हमें ट्यूशन लेने की भी ज़रूरत नहीं पड़ती थी, बल्कि जो स्टूडेंट्स ट्यूशन लिया करते थे, उन्हें मंदबुद्धि माना जाता था।

इन सभी पहलुओं को जानकर जब मैंने अपने नज़दीक के कॉलेज में जाकर वहां के प्राचार्य से बातचीत की और पूछा कि आपके कॉलेज में कक्षाओं का नियमित संचालन क्यों नहीं होता है? और क्या कारण है कि परीक्षा समय पर नहीं हो पाती, तो वह मुझे बड़े उदास मन से बताते हैं कि हमारे कॉलेज में मात्र 16 प्रोफेसर्स हैं, जो लगभग 2000 विधार्थियों को पढ़ाने के लिए मजबूर हैं, फिर भी हमने पिछले कुछ सालों से कक्षाओं का संचालन नियमित करना चाहा लेकिन पिछले एक दशक से कैंपस में शिक्षा-दीक्षा ना होने की वजह से स्टूडेंट्स ने भी कोचिंग क्लासेज़ पकड़ ली हैं।

यह वही बिहार है जहां से हमारे UPSC टॉपर्स आते हैं, अगर वे सब भी बिहार के ही किसी कॉलेज से अपनी उच्च शिक्षा ग्रहण किए होते, तो क्या वे UPSC क्लियर कर पाते? सोचिए! यही समय है इस बारे में सोचने के लिए।


नोट: परवेज़, YKA राइटर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम सितंबर-नवंबर 2021 बैच की इंटर्न हैं।

Exit mobile version