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शैक्षिक आधार पर बच्चों को तोलकर समाज उन्हें नाकामयाब बना रहा है

exam pressure

क्या हम सब में से कोई भी यह जानता है कि जीवन में ऐसा क्या करने से जीवन सफल होगा? ऐसा क्या करें, जिसे समाज में वाह वाही हो?

अगर आपने यह नही सोचा तो ज़रूरत भी नही है, क्योंकि हम हर समय अपने आप को तो इसमें परेशान करते ही हैं मगर अब समाज भी अपने ही बच्चों पर हावी हो रहा है।

हर बच्चे का लक्ष्य डिग्री ही क्यों?

उन्हे हर बात पर टोकना, रोकना सरासर गलत है। हम क्यों नही सोचते हैं कि यह चीज़ कोई आपके साथ करता, तब कैसा लगता ?

बिहार की रिया नामक बच्ची का भी यही हाल हुआ। घर में सारे के सारे कोई डॉक्टर तो कोई इंजीनियर तो कोई युपीएससी तक की परिक्षा निकाल चुका था।

लेकिन उसका पढ़ाई में मन नही लगता था, अब आप सोच रहे होंगे कि पढ़ाई छोड़ किसी भी चीज़ पर तो मन लगता होगा ना? नहीं! उसे सिर्फ घर पर रहकर अपनी माँ के साथ रहना पसंद था।

लेकिन लोग ऐसा मानते है कि देश में जन्म लेने वाले हर बच्चे का लक्ष्य होना ज़रूरी है। आखिर आप ही सोचिए! जब आपकी मृत्यु करीब होगी, तब यह सोचकर मोक्ष प्राप्त करेंगे की कितनी पढ़ाई करने के कारण ज़िंदगी निकलती चली गई या यह सोचेंगे की चाहे ज़िंदगी जैसी भी गुज़री शांति और प्रेमपूर्वक गुज़री?

शिक्षा को आधार बनाकर बच्चों को कमतर आंकते हम

यानि आखिर में माएने आपकी खुशी और चैन ही रखेगा। जीवन में पढ़ना, कमाना और मेहनत करने की खुशी उतनी बड़ी नही होगी, जितनी आपको अपने मन का काम वो भी बिना रोक-टोक के करने से मिलती है।

हम बात कर रहे थे रिया की, जिसे उसके परिवार वाले  ना पढ़ने के कारण से हमेशा फटकार लगाते थे। स्कूल में अध्यापक भी उसे हमेशा खरी-खोटी सुनाते थे।

शुरुआत में रिया को इन सब चीज़ो से ज़्यादा फर्क नही पड़ता था मगर धीरे-धीरे जब वह बड़ी कक्षा में पहुंची, तब उसे यह लगने लगा कि उसका शैक्षिक रुप से अव्वल ना होने के कारण उसे  कोई अपनाना नहीं चाहता और ना ही दोस्ती करना चाहेगा।

बच्चे का मनोबल तोड़ता परिवारों का दुर्व्यवहार

लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि ऐसा होता भी चला गया, क्योंकि उसने ऐसा सोचना शुरू कर दिया था कि वह सदैव नाकाम रहेगी।

उसकी ज़िदगी पर दोस्तों की कमी, अध्यापकों और परिवार द्वारा खोटी बातों का असर बढ़ता चला गया। रिया ने अपने आप पर विश्वास करना छोड़ दिया, जबकि उसे खुद भी पता था कि उसकी काबिलियत सिर्फ पढ़ाई में उत्तम होने से नहीं होगी।

लेकिन ज़रा सोचिए! जिस अध्यापक पर आप आंख मूंदकर भरोसा करते हों, वही आपसे सही तरीके से व्यवहार और वार्तालाप न करें, आपको भरी कक्षा में सरेआम बेइज़्ज़त करें, आपकी बातों को सिरे से नकार कर आपका मज़ाक उड़ाए,  उस अध्यापक को अपने अध्यापक होने पर शर्म और घृणा आनी चाहिए

और परिवार वाले ? परिवार तो अध्यापक से अलग और अपने होते है ना, तब क्यों नहीं यह फर्क समझते हैं कि सिर्फ शैक्षिक आधार पर बच्चों को कभी भी तोला नहीं जाता।

हमारे देश में ऐसे कितने दिग्गज हैं, जो शैक्षिक रूप से उतने मज़बूत नही थे मगर ज़िंदगी में उन्होंने साबित कर दिया कि सिर्फ शैक्षिक रूप में मज़बूत होना ज़रूरी नही बल्कि ज़िंदगी की परीक्षाओं में सर्वोत्तम आना इससे अधिक महत्वपूर्ण और लाभदायक है। 

अंततः बच्चों को शैक्षिक मूल्य में तौलना उनके मनोस्थिति को चोट पहुंचाने के बराबर है। हमें विचार करना होगा कि हमारा उदेश्य अपने बच्चों को जीवन में मज़बूत पैरों पर खड़ा करना है कि उन्हें सिर्फ इन किताबों की दुनिया में श्रेष्ठ बनाना?

यह आप पर ही निर्भर करता है कि उन्हें अपने आपको समझने, सोचने और खुलकर ज़िंदगी गुज़ारने का मौका दें। उन पर विश्वास करें।

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