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दहेज का दोष सिर्फ एक लड़के का नहीं लड़की भी दोषी होती है

दहेज, गिफ्ट, नेग! शादी ब्याह में इस नाम से कितना कुछ होता है, जो एक लड़की और एक लड़के का भविष्य तय करता है और खबर देखने के लिए जब टीवी चालू करते हैं, तब शायद ही ऐसा कोई दिन होता है, जब दहेज को लेकर कोई खबर ना होती हो।

ये खबरें यूं तो बहुत छोटी होती हैं मगर एक समाज के नाम पर हमें नंगा करने के लिए बहुत हैं।

बेरोज़गारी, महंगाई, भ्रष्टाचार,अत्याचार और लचर कानून व्यवस्था!

इन सबसे परेशान होकर, जब रात को नींद नहीं आती है और आंखें शून्य ताकती रहतीं हैं, तब ये सारी घटनाएं किसी सिनेमा की तरह आंखों के सामने होती हैं कि कैसे कुछ लोगों ने अपने लालच के लिए अपने ही घर के सदस्य को जान से मार दिया या तकलीफ दी।

दहेज का दोष सिर्फ लड़के का नहीं

मगर जितना मैं समझता हूं, इसमें सबसे बड़ा दोषी है हमारा समाज! जिसको हम सब मिलकर बनाते हैं और उसमें भी इस समाज की औरतें सबसे बड़ी दोषी हैं,

क्योंकि दहेज के लिए जब भी गांव में किसी की शादी होती है, तब मैने लड़कों को हमेशा दूल्हे की साली और दुल्हन की सहेलियों को लेकर बात करते सुना है।

बुजुर्गों को खाने पीने की व्यवस्था और राजनीति की बात करते सुना है मगर औरतें, औरतें ही होतीं हैं, जो सबसे पहले देखती हैं कि दुल्हन के गले में पड़ा हार कितने तोले का है?

असली है या नकली?  गाड़ी कौन सी है? दूल्हे की अंगूठी कितने वजन की है। वगैरह-वगैरह।

सबसे बड़ा गुनहगार दहेज दाता (पिता)

पर क्या केवल समाज की औरतों का लड़के के परिवार वालों या सिर्फ लड़के को ही दोष देना ठीक होगा ?

मेरे विचार से नहीं! मेरी नज़र में सबसे बड़ा गुनहगार है, उस लड़की का बाप, जो एक दहेज के लोभी के हाथ अपना जिगर का टुकड़ा रख देता है।

हर बेटी के पिता को ये तो समझना ही चाहिए कि जो आदमी अभी इतनी मांग कर रहा है, क्या भरोसा है कि कल और नही मांगेगा?

बेशक हर पिता को अपनी बेटी के भविष्य की चिंता होती है और होनी भी चाहिए मगर इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि आप उसे एक जानवर ( यहां जानवर शब्द, शायद जानवरों का अपमान होगा, क्योंकि जानवरों को पैसों का लालच नही होता) के साथ खूंटे से बांध दें।

सरकारी दामाद का खास पैकेज

लेकिन सबको सरकारी नौकरी वाला दामाद चाहिए या यूं कहूं कि पैसे वाला ही चाहिए।

समाज में ये एक चलन बन गया है कि अच्छे लड़के मतलब अच्छी नौकरी! बाकी लड़के का चरित्र, परिवार, परिवार के लोगों का व्यवहार! ये सब बेकार के मुद्दे हैं

यदि सरकारी नौकरी वाला दामाद बेटी को दारू पीकर पीटे, तब माँ-बाप समझाते हैं कि क्या करें बेटी यही तेरा नसीब है, ऊपर वाले की यही मर्ज़ी है, बर्दाश्त कर ले।

वहीं, अगर लड़की मर्ज़ी से शादी करे और रिश्ता ना चले, तब माँ-बाप बोलते हैं कि भुगतो! तब समझ नहीं आता कि ये नसीब और ऊपर वाला तब कहां चला जाता है?

दहेज ना मांगना, नकारेपन के टैग जैसा

कभी-कभी लगता है कि दहेज लेना सही भी है और ज़रूरी भी, क्योंकि आप दहेज की मांग ना करो, तब लड़की के घरवालों को लगता है कि लड़का नकारा है।  शायद  इसलिए कुछ भी मांग नहीं की गई है।

सोचिए! हमारा समाज कितना दोगला है। इस बात का अंदाज़ा आप ऐसे लगा सकते हैं कि एक सरकारी नौकरी वाला लड़का, जिसको पैसे की कोई कमी नहीं है, उसे  एक लड़की का बाप पंद्रह-बीस लाख तक देने को तैयार रहता है

मगर जो लड़का अच्छा है, मेहनत भी करता है लेकिन उसकी कमाई कम है, तो उसको 15- 20 लाख तो दूर की बात है कोई बाप अपनी बेटी की बात भी नहीं चलाएगा।

लड़कियां भी इस अपराध की भागीदार

वहीं आजकल की लड़कियों को भी शायद यही लगता है कि लड़का तो पैसे वाला होना चाहिए बाकी, तो ठोक-पीटकर सही कर ही लेंगे।

वर्ना क्या लड़कियों को पता नही होता है कि उनकी ज़िंदगी का सौदा कितने में हो रहा है?

जब भी किसी लड़की को दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता है, तब मेरी समझ में यही आता है कि लड़के और उसके परिवार वालों को बाद में गिरफ्तार किया जाए, पहले लड़की के बाप को धरा जाए। 

माँ -बाप बेटी के पैदा होते ही उसकी शादी के लिए पैसे जोड़ने लगते हैं। अरे भाई उसी पैसे से लड़की को पढ़ाओ-लिखाओ, काबिल बनाओ और जब कोई लड़के वाला दहेज मांगे तो झाड़ू मारकर उसे बाहर का रास्ता दिखाओ।

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