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“जिन आदिवासियों को हम सभ्य नहीं मानते हैं, उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं”

tribal community

मार्च 2019 से पहले आदिवासियों के प्रति मेरी बहुत अलग धारणा थी। हम फिल्म, कार्टून, नाटक में उनका, जिस तरह का चित्रण देखते हैं, उसी को हकीकत मान लेते हैं और अपनी एक धारणा बना लेते हैं।

मगर जब मैं ओडिशा के आदिवासी लोगों से मिली, तो मेरा नज़रिया पूरी तरह बदल गया। मैं ओडिशा के गाँवों में गई तो वहां की प्रकृति ने मेरा मन मोह लिया और वहां के लोगों को अपना बनाने से मैं ख़ुद को रोक ही नहीं पाई। यानि आज मेरे वहां कई दोस्त बन चुके हैं। मैंने जाना ये लोग बहुत भोले और मासूम हैं! ये प्रेम से भरे हुए हैं।

‘नारीवाद’ का प्रतिरूप आदिवासी महिलाएं

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

आदिवासियों में मैंने एक और खास बात देखी।  जहां एक ओर ‘ नारीवाद ‘ शब्द सुनते ही हमारे दिमाग में एक छवि उभर कर सामने आती है कि एक पढ़ी-लिखी, खादी की साड़ी पहने, हाथ में मोमबत्ती लिए सड़कों पर नारे लगातीं, मंचो पर भाषण देतीं महिलाएं , जो खुद को एक आदर्श फेमिनिस्ट बताती हैं, वे नारिवाद का प्रतिरूप हैं।

वहीं, दूसरी ओर जब मैंने आदिवासी महिलाओं को देखा, सुना तब मुझे पता चला वास्तविक नारीवाद तो यहां है। ये पढ़ी-लिखी नहीं हैं लेकिन इन्हें अपने अधिकार बहुत अच्छे से मालूम हैं।

वहां की महिलाओं का कहना है, “जब एक पुरुष आप पर हाथ उठता है, तब उसका अपना कोई धर्म नहीं होता, तो आप भी अपने धर्म को भूल जाओ, वो आपको बैल्ट से मारता है, तो आप उसे बेलन से मारो।” यह बताते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है कि वहां की महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार नहीं होती हैं।

जीवनसाथी से लेकर यौन सुख तक सब चुनने का अधिकार

अगर महिलाओं को यह समझ आ जाए कि एक महिला में कितनी ताकत होती है, तब वे दुनिया बदल सकती हैं। वहां की महिलाएं कभी अपने आपको असुरक्षित महसूस नहीं करतीं। बिना किसी डर के अंधेरी रात में अकेले घूमती हैं।

उन्हें अपने जीवन साथी चुनने का अधिकार है, यौन सुख के फैसले वो ख़ुद लेती हैं, लिव इन रिलेशनशिप भी आदिवासियों में बहुत आम बात है। अगर देखा जाए तो आदिवासी समाज से हमारे ‘सो कॉल्ड सभ्य समाज’ को बहुत कुछ सीखने की ज़रूरत है।

नशे के खिलाफ ऐतिहासिक आंदोलन

मार्च 2019 में ओडिशा के पदमपुरा व उसके आसपास के क्षेत्र की 6 हज़ार से अधिक महिलाओं ने शराब के खिलाफ आंदोलन शुरू किया, जिसमें राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश से स्टूडेंट्स व समाजसेवी लोगों ने भी भाग लिया।

यह ओडिशा का एक ऐतिहासिक महिला आंदोलन था, जिसकी लीडर भी महिलाएं हीं थीं। यह मातृ शक्ति, महिला शक्ति का एक अद्भुत नज़ारा था, जिसे मैंने अपनी आंखों में कैद कर लिया था। आज भी जब  इसे याद करती हूं, तो मन में एक अलग ही खुशी होती है।

क्या था ये ‘महिला’ आंदोलन?

इस आन्दोलन में 20 से 25 किलोमीटर की पदयात्रा कर इन महिलाओं ने गुनपुर में कलेक्टर ऑफिस को घेर लिया और तब तक वहां से नहीं हटीं, जब तक इनकी बात नहीं मान ली गईं और मजबूरन प्रशासन को इनके आगे झुकना पड़ा था।

ये महिलाएं इतनी ताकतवर हैं कि पुरुषों व बच्चों को नशे की लत से मुक्त करवाने के लिए प्रशासन तो क्या खजूर के पेड़ पर चढ़ जाती हैं और नशीले पदार्थ को खत्म कर देती हैं।

यहां का युवा भी उतना ही जागरूक

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

आज वहां का प्रशासन भी इन महिलाओं से डरता है, ये सिर्फ महिलाएं नहीं, बल्कि क्रांतिकारी महिलाएं हैं। मैं अपने आपको बहुत खुश नसीब मानती हूं कि मैं इस आंदोलन का हिस्सा रही।

यहां युवा भी उतना ही जागरूक और पढ़ा लिखा है कि वो प्रशासन से सवाल करता है, अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ता है। साथ ही लोगों को सही और गलत में फर्क सिखाता है।

सरकार का कोई भी अधिकारी यहां के गाँवों में जाने से पहले दस बार सोचता है। अगर जनता को अपनी शक्तियां मालूम हैं, तो सरकार उनके साथ कभी गलत कर ही नहीं सकेगी।

एक गाँव ऐसा, जहां जीवित हैं सिर्फ 6 पुरुष

वहीं, जब मैं दोबारा जुलाई 2019 में ओडिशा गई और वहां के गाँव का दौरा किया। रायगड़ ज़िले का बंदगुड़ा गाँव में 20 से 25 घर हैं।

यहां केवल पांच से छः पुरुष हैं, बाकी विधवा महिलाएं हैं, यानि महिला जनसंख्या पुरुष जनसंख्या से अधिक है। वहीं, यहां सभी पुरुषों की मौत शराब पीने की कारण से हुई है।

यहां तक ​​कि यहां 10 से 15 साल तक के बच्चे भी शराब की लत के शिकार हैं और नशा उनके विकास के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है।

आंदोलन की ज़रूरत क्यों?

जब यहां कोई पुरुष जीवित नहीं बच रहा था, तो गाँव की महिलाओं द्वारा एक संगठन बनाया गया और शराब के खिलाफ विरोध शुरू कर दिया। वे कलेक्टर के पास गईं और अपने गाँव में शराब की बिक्री पर पाबंदी लगवा दी गई।

महिला संगठन ने एक कानून बनाया कि जो व्यक्ति शराब पीएगा, वह गाँव में प्रवेश नहीं करेगा और यदि कोई व्यक्ति शराब पीता है, तो महिलाएं अपने हाथों में डंडे पकड़कर खड़ी रहती हैं। अब इस गाँव में कोई शराब नहीं पीता है।

अशिक्षित लेकिन शिक्षा का पाठ

मैं पाठक को बता दूं कि इन महिलाओं में कोई भी शिक्षित नहीं हैं, ये खेती कर अपना जीवन-यापन करती हैं। यानि ये साफ है कि अगर सभी महिलाएं अपनी शक्ति का उपयोग करें, तो इस दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे बदला नहीं जा सकता।

इन महिलाओं ने हमारे सामने एक मॉडल तैयार किया है। इसके द्वारा हम भारत के शराब एडिक्टेड क्षेत्रों को इस गंभीर समस्या से मुक्त कर सकते हैं।

हमारे राजनेता और गैर-सरकारी संगठन इस काम को करने में विफल ही रहे हैं लेकिन इन महिलाओं ने इस मॉडल को सफल बनाते हुए एक मिसाल कायम कर दी है।

इस मातृशक्ति को समर्पित मेरी कविता

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

फिर से क्रांति ने डंका बजाया है
लोगों को फिर से जगाया है
नारी शक्ति ने फिर से हाहाकार मचाया है
साहसी है, निडर है
इस चेहरे की चमक ने फिर से
क्रांति की लौ को जलाया है।

निरक्षर होकर सबको पाठ पढ़ा रही हैं
नशे के खिलाफ क्रांति कर रही हैं
नशे में चूर आदमी, हर दिन मर रहा है
उनको बचाने के लिए दिन-रात क्रांति कर रही हैं

नहीं डरती है, ये आंधी तूफान से
नहीं डरती हैं, इस तपती धूप से
नहीं डरती हैं, सर्द रात से
नहीं डरती हैं, प्रशासन से
नहीं उठाने देती हैं दुर्बलताओं का फायदा, क्योंकि

ताकत है इनको अपनी मालूम
ये दुनिया को बदल सकती हैं
ये नारी शक्ति है, कुछ भी कर सकती है

लड़ती हैं ये अपनी हिम्मत से
निर्भर नहीं रहती हैं किसी पर
एक-दूसरे का बल बनकर
शक्ति का निर्माण करती हैं
हिंसा के खिलाफ क्रांति करती हैं

अपने हक के लिए लड़ती हैं
जितना भी बखूबी जानती हैं
ये आदिवासी महिलाएं नहीं हैं
ये सच में नारी शक्ति की मिसाल हैं।

सलाम है इस शक्ति को!


नोट: शिप्रा, YKA राइटर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम सितंबर-नवंबर 2021 बैच की इंटर्न हैं।

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