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“देश की बढ़ती विकराल जनसंख्या पर रोक लगाने के लिए हमें साक्षरता दर पर ध्यान देने की ज़रूरत है”

"देश की बढ़ती हुई विकराल जनसंख्या पर रोक लगाने के लिए हमें साक्षरता दर पर ध्यान देने की ज़रूरत है"

जनसंख्या की दृष्टि से तो दुनिया में आज भी भारत का दूसरा स्थान है लेकिन इक्कीसवीं सदी में दुनिया का सबसे विशाल युवाओं वाला राष्ट्र भारत है। 2020 में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के अनुमानित आंकड़ों के अनुसार, भारत की कुल जनसंख्या 1,326,093,247 है, जिसमें से लगभग 50 फीसदी लोगों की आयु पच्चीस वर्ष या फिर उससे ज़्यादा है। वहीं 2011 की जनगणना की बात की जाए तो भारत की कुल जनसंख्या 1,210,854,977 थी यानी की प्रत्येक वर्ष औसतन जनसंख्या वृद्धि एक करोड़ से भी ज़्यादा है। जो कहीं-ना-कहीं हमारे देश भारत के लिए एक गहन चिंता का विषय है।

बढ़ती जनसंख्या के साथ ही बढ़ती गई है साक्षरता दर?

जहां एक तरफ लगातार बढ़ती जनसंख्या चिंता का विषय है ठीक दूसरी ओर लगातार हो रही साक्षरता दर में वृद्धि भी एक अच्छा संकेत है। यदि हम आंकड़ों की बात करें तो स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत की साक्षरता दर 18 फीसदी थी, जबकि 2011 के आंकड़ों के अनुसार, भारत की साक्षरता दर आश्चर्यजनक बढ़ोतरी के साथ 74.04 फीसदी हो गई। 

वहीं राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुमान के मुताबिक, 2020 तक भारत की साक्षरता दर बढ़कर 77.7 फीसदी हो गई है। हालांकि, विश्व की साक्षरता दर 84 फीसदी से भारत अब भी 6.3 फीसदी कम है परंतु वृद्धि दर के हिसाब से आने वाले कुछ वर्षों में हमारे देश का उस लक्ष्य के करीब पहुंचने का अनुमान है।

कछुए की चाल से बढ़ रही है ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता दर

अगर हम देश में जनसंख्या वृद्धि की बात करें तो ग्रामीण क्षेत्रों में शहरों की अपेक्षा अधिक जनसंख्या बढ़ी है, जबकि वहीं साक्षरता दर की बात करें तो इस मामले में हमारे देश के गाँव बहुत पीछे छूट गए हैं। जहां एक ओर शहरी इलाकों में साक्षरता दर 87.7 फीसदी है, जो विश्व साक्षरता दर को भी पीछे छोड़ती है तो वहीं दूसरी ओर ग्रामीण इलाकों में आज भी साक्षरता दर 73.5 फीसदी है, जो भारत की कुल साक्षरता दर से भी 4.2 फीसदी कम है।

महिलाएं आज भी हैं शिक्षा से कोसों दूर

स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत यूं तो कानूनन शिक्षा पर सबका समान अधिकार है परंतु यह कानून किताबों से निकलकर सतह पर नहीं आ पाए और जिसका परिणाम यह हुआ कि आज भी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का शिक्षा स्तर खस्ताहाल है। यदि हम आंकड़ों की बात करें तो राष्ट्रीय स्तर पर पुरुषों की साक्षरता दर 84.7 फीसदी है जबकि महिलाओं की मात्र 70.3 फीसदी है। इससे भी आश्चर्यजनक यह है कि सभी राज्यों में महिलाओं की साक्षरता दर पुरुषों से बहुत कम है। भारत के सबसे शिक्षित राज्य केरल में भी पुरुषों और महिलाओं की साक्षरता दर में 2.2 फीसदी अंतर है। हालांकि, वहां महिलाओं की साक्षरता दर 95.2 फीसदी है, जो भारत में सबसे ज़्यादा है।

प्रतीकात्मक तस्वीर।

कम जनसंख्या वाले राज्यों की बेहतर है साक्षरता दर

हमें बढ़ती हुई जनसंख्या का प्रभाव देश में सीधे तौर पर शिक्षा पर भी पड़ता हुआ दिखाई देता है। यदि भारत के पांच सबसे साक्षर राज्यों की बात की जाए तो 96.3 फीसदी के साथ केरल पहले, 88.7 फीसदी के साथ दिल्ली दूसरे, 87.6 फीसदी के साथ उत्तराखंड तीसरे, 86.6 फीसदी के साथ हिमाचल प्रदेश चौथे तथा 85.9 फीसदी के साथ असम पांचवे स्थान पर है। जिसमें कहीं-ना-कहीं प्रमुख वजह है इन राज्यों में जनसंख्या पर नियंत्रण होना।

सघन जनसंख्या वाले पिछड़े राज्यों की सबसे बदतर है साक्षरता दर

देश में बढ़ती जनसंख्या का सबसे ज़्यादा दुष्प्रभाव शिक्षा पर है, सघन जनसंख्या वाले राज्यों में मंद पड़ी साक्षरता दर में वृद्धि इसका जीता जागता प्रमाण है। यदि हम भारत में सबसे कम साक्षरता दर वाले राज्यों की बात करें तो उस सूची में 66.4 फीसदी के साथ आंध्रप्रदेश सबसे नीचे है, जबकि राजस्थान, बिहार, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश क्रमशः 69.7 फीसदी, 70.9 फीसदी, 72.8 फीसदी, 73 फीसदी और 73.7 फीसदी के साथ नीचे से दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें तथा छठवें स्थान पर स्थित हैं, जो कहीं भारत की औसत साक्षरता दर से बहुत कम है।

जनसंख्या नियंत्रण हो सकता है साक्षरता दर बढ़ाने के लिए वरदान

साधनों की उपलब्धता सीमित है जबकि जनसंख्या करोड़ों में प्रत्येक वर्ष बढ़ती जा रही है। ऐसे में शिक्षा स्तर का प्रभावित होना भी लाज़िम है। सरकार द्वारा चलाए जाने वाले निःशुल्क शिक्षा की योजना भी बढ़ती जनसंख्या के आगे धराशाई हो चुकी है तथा सरकारी स्कूल तंगहाली से जूझ रहे हैं। इस स्थिति में साक्षरता दर में वृद्धि के लिए सरकारी स्कूलों का सकुशल संचालन आवश्यक हो जाता है। इसके लिए यदि अत्यधिक जनसंख्या वृद्धि में कमी आ जाए तो कुछ हद तक शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हो सकता है और यह साक्षरता दर के लिए वरदान साबित हो सकता है।


नोट- कृष्ण कांत त्रिपाठी, YKA राइटर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम सितंबर-नवम्बर 2021 बैच के इंटर्न हैं। वर्तमान में काशी हिन्दू            विश्वविद्यालय के हॉस्पिटैलिटी एवं मैनेजमेंट कोर्स में अध्ययनरत हैं। इन्होंने इस आर्टिकल में, वर्तमान में देश की दिनोंदिन बढ़ती हुई जनसंख्या पर रोक लगाने के लिए साक्षरता को एक वरदान माना है और हमें अपने देश एवं राज्यों की साक्षरता दर के साथ-साथ महिलाओं को साक्षर करने की दिशा में कार्य करना चाहिए, इस पर प्रकाश डाला है।

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