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किन कारणों से बच्चे हो रहे हैं जानलेवा बीमारियों का शिकार?

किन कारणों से बच्चे हो रहे हैं जानलेवा बीमारियों का शिकार?

विश्व की जनसंख्या अगले कुछ वर्षों में 8 अरब के आंकड़े तक पहुंचने वाली है। इस आबादी में करीब एक चौथाई हिस्सेदारी 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की है। ये बच्चे ही दुनिया का भविष्य हैं लेकिन अगर इनके भविष्य को सुधारना है तो समूचे विश्व को बच्चों के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना होगा।

वाशिंगटन यूनिवर्सिटी की 2013 में आई ग्लोबल डिजीज स्टडी के अनुसार, हर साल 40 लाख बच्चे  5 वर्ष की आयु से पहले ही दम तोड़ देते हैं। इन मौतों के लिए कई कारण ज़िम्मेदार हैं, जिनमें खराब स्वास्थ्य व्यवस्था और गरीबी प्रमुख हैं।  

किन बीमारियों का शिकार होते हैं बच्चे?

5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे विशेष रूप से मलेरिया, निमोनिया, डायरिया और एचआईवी जैसे संक्रामक रोगों की चपेट में आते हैं और बड़े बच्चे गैर संचारी रोग, चोट और संघर्ष से संबंधित बीमारियों से प्रभावित होते हैं। 2018 तक 5 साल से कम उम्र के बच्चों में लगभग 30% वैश्विक मौतों के लिए निमोनिया, डायरिया और मलेरिया ज़िम्मेदार थे। दुनिया के आर्थिक रूप से पिछड़े इलाके विशेषकर उप सहारा अफ्रीका में संक्रमण रोग ज़्यादा प्रचलित हैं।

निमोनिया के कारण हर साल लगभग 8 लाख बच्चों की मौत होती है यानि हर 39 सेकेंड के अंदर दुनिया में एक बच्चा निमोनिया के कारण दम तोड़ देता है। इस बीमारी के मुख्य कारण कुपोषण, असुरक्षित पानी और स्वच्छता की कमी, वायु प्रदूषण और अपर्याप्त स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां हैं। इसे असमानता की बीमारी भी कहा जाता है, क्योंकि इसके सभी कारक गरीबी से जुड़े हुए हैं।

डायरिया से साल 2017 में लगभग 5 लाख के करीब छोटे बच्चों की जान चली गई थी। हालांकि, इस तादाद में हाल के वर्षों में गिरावट दर्ज़ की गई है। डायरिया से होने वाली अधिक मौतें दक्षिण एशिया या उप सहारा अफ्रीका में रहने वाले 2 वर्ष से कम आयु के बच्चों की होती हैं।

निमोनिया और डायरिया के अलावा 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए मलेरिया तीसरी सबसे घातक बीमारी है।  2019 में पूरी दुनिया में 3 लाख बच्चों की मृत्यु मलेरिया से हुई, जो वैश्विक मलेरिया से होने वाली मौतों का 70% था।

बच्चे क्यों बनते हैं इन जानलेवा बीमारियों के शिकार?

डायरिया, निमोनिया और मलेरिया जैसी बीमारियों के फैलने का मुख्य कारण गरीब देशों में खराब स्वास्थ्य व्यवस्था, कुपोषण और बच्चों की कम रोग प्रतिरोधक क्षमता का होना है। आधे से ज़्यादा बीमारियों के कीटाणु बच्चों में गंदगी के कारण उनके शरीर में प्रवेश करते हैं।

विश्व में 70% से अधिक डायरिया और निमोनिया से ग्रस्त बच्चों के केस अकेले दक्षिण एशिया और सब सहारा अफ्रीका में पाए जाते हैं, जिनके पीछे इन देशों की बेहद खराब स्वास्थ्य व्यवस्था का होना है। बच्चों को जन्म देने वाली महिलाएं कुपोषण का शिकार होती हैं, जिसका असर उनके पैदा होने वाले बच्चों पर भी पड़ता है।

2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में डायरिया का मुख्य कारण रोटावायरस है तथा 2 से 5 वर्ष के बच्चों में डायरिया शिगैला बैक्टीरिया के कारण होता है।

भारत में हर साल 8 लाख बच्चों की मौत

भारत में हर साल निमोनिया के कारण 1.4 लाख बच्चों की मौत होती है। हमारे देश में इन बीमारियों के टीका और दवाई होने के बावजूद भी इलाज में देरी होने के कारण इतनी बड़ी तादाद में बच्चों की जान चली जाती है। निमोनिया के अलावा मलेरिया और टेटनस से हमारे देश भारत में हर साल ढाई लाख बच्चों की मौत होती है। पिछले कुछ सालों में स्वास्थ्य संबंधी मिशन और कैंपेन चलाने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने इन आंकड़ों में गिरावट दर्ज़ की है।

भारत में 69 % 5 साल से कम बच्चों की मौत के पीछे कुपोषण इसका सबसे बड़ा कारण है। इनमें से करीब 35% बच्चे कम वजन के पैदा होते हैं।

वैश्विक स्तर पर हो रहे हैं रोकथाम के प्रयास

डायरिया, निमोनिया और मलेरिया जैसी खतरनाक बीमारियों से बच्चों को सुरक्षित करने के लिए पिछले 20 सालों से अनेकों प्रयास किए जा रहे हैं। हाल ही में मलेरिया के टीके का सफल परीक्षण किया गया था और अभी इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता भी मिल चुकी है।

पर्याप्त स्तनपान, साफ-सफाई, कुपोषण से छुटकारा और विटामिन ई का सेवन करने से इन बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है। डायरिया की रोकथाम के लिए 2018 में 103 मिलियन जिंक टैबलेट अलग-अलग देशों में बांटी गई थी तथा निमोनिया से बचाव के लिए 6.8 करोड़ एंटीबायोटिक दवाइयां वितरित की गई थीं। 

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नोट- अब्दुल्लाह, YKA राइटर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम सितंबर-अक्टूबर 2021 बैच के इंटर्न हैं। इन्होंने इस आर्टिकल में, वर्तमान में बच्चों में हो रहीं जानलेवा बीमारियों के कारणों एवं उनसे सम्बन्धित आंकड़ों पर प्रकाश डाला है

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