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सरकारी अस्पतालों में आम नागरिक मूलभूत सुविधाओं से वंचित क्यों हैं?

सरकारी अस्पतालों में डॉ की कमी

हमारे देश में तमाम सरकारी संस्थानों में से एक सरकारी अस्पताल आम लोगों के जीवन में प्रत्यक्ष तौर पर गहरा प्रभाव डालता है। ग्रामीण इलाकों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र या प्रखंड स्तर पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र इन सरकारी संस्थानों पर देश की अधिकांश आबादी अपने इलाज के लिए निर्भर होती है।

हर बार बीमारी बड़ी हो यह ज़रूरी नहीं हैं। कई बार सर्पदंश का उपचार भी कस्बाई स्तर पर मौजूद नहीं होता है और इसके कारण लोगों की जान पर बन आती है। ऐसे में इलाज की उचित सुविधा ना होने के कारण शहरों का रुख करना लोगों की मज़बूरी हो जाती है। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या ज़िला मुख्यालय या राजधानी के बड़े-बड़े  सरकारी अस्पतालों में, जहां लोग इतनी उम्मीदें लेकर जाते हैं, उन्हें वहां सुलभ चिकित्सा सुविधा मिल पाती है या नहीं?

बिहार की राजधानी पटना में क्या है स्वास्थ्य तंत्र का हाल

बिहार जैसे पिछड़े राज्य में लोगों के लिए गाँव हो या शहर स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए जद्दोजहद करना एक आम बात है। दानापुर अनुमंडलीय अस्पताल का अपना अनुभव साझा करते हुए छात्रा स्नेहा राज कहती हैं कि आमतौर पर लोग पटना को बिहार की राजधानी होने के कारण यहां की स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर मानते हैं।

कागज़ी तौर पर यह बात ठीक है लेकिन मेरा अनुभव कहता है कि यहां के अस्पतालों में मौजूद सुविधाओं को लेने के लिए मरीज़ों को कई बार कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। मुझे किसी गैर-सरकारी संगठन के साथ कार्य करने का मौका मिलकर इसी वर्ष मिला।

इसके लिए मुझे मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट जमा करने को कहा गया, जिसमें आई चेकअप, एचआईवी टेस्ट, लिवर टेस्ट समेत सात-आठ जांचों की ज़रूरत थी। मगर मुझे बड़ी मुश्किल से और बहुत जद्दोजहद करने के बाद इनमें से एचआईवी की जांच समेत तीन जांचों की ही सुविधा मिल पाई, जबकि अस्पताल में अधिकृत रूप से कागज़ों पर सभी जांचें मौजूद हैं।

अस्पताल परिसर में बाकायदा उनकी सूची भी प्रदर्शित की हुई है लेकिन वहां के प्रशासन एवं स्टाफ के द्वारा मरीज़ों एवं अन्य नागरिकों को कभी रिजल्ट खत्म होने का हवाला तो कभी दूसरे अस्पताल में जाकर बेहतर व्यवस्था का लाभ लेने की जबरन सलाह देकर सुविधाओं से वंचित रखा जाता है। 

मैं वहां के प्रशासन एवं स्टाफ से तीखी बहस और सवाल-जवाब करने के बाद बड़ी ही मुश्किल से तीन जांचें ही करवा सकी। आप जरा सोचिए! जब देश में एक शिक्षित नागरिक को ऐसे व्यवहार और ऐसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा तो ग्रामीण इलाकों से आने वाले कम पढ़े-लिखे लोगों तथा मज़दूरों को ना जाने किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ता होगा? 

अनुमंडलीय दानापुर अस्पताल, पटना।

जब मैंने दानापुर अस्पताल के अधीक्षक डा० रामभवन सिंह से सवाल किया तो उन्होंने कहा कि हमारे यहां जांच की तमाम सुविधाएं प्राथमिकता के तौर पर गर्भवती महिलाओं के लिए ही उपलब्ध हैं, क्योंकि सरकार की तरफ से उनके लिए विशेष व्यवस्था की गई है लेकिन हम कुछ सामान्य लोगों की भी जांच करवा देते हैं।

वो आगे कहते हैं कि फिलहाल अस्पताल में ईसीजी की सुविधा बंद है, जहां तक मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट बनाने का सवाल है तो वो आसानी से सामान्य डॉक्टर के रहने पर बन जाता है।

यहां पर यह बात साफ है कि मरीज़ों एवं अन्य नागरिकों को सुविधाएं प्राप्त करने के लिए अस्पताल प्रशासन की दया दृष्टि पर निर्भर रहना पड़ता है कि आपको इलाज के लिए सुविधाएं मिलेंगी या नहीं, क्योंकि यहां सिर्फ गर्भवती महिलाओं के लिए ही तमाम सुविधाएं हैं।  

वैसे, देखा जाए तो अस्पताल में आधिकारिक रूप से ऐसा कहीं भी नहीं लिखा हुआ है और जब सामान्य व्यक्ति सुविधाओं का लाभ लेना चाहता है तो उसे तमाम परेशानियों से दो-चार होना पड़ता है। इसके बाद भी आपको अस्पताल प्रशासन से सुविधाएं मिलेंगी या नहीं, यह कहना बहुत मुश्किल है।

ईसीजी जांच के लिए नोटिस बोर्ड पर लगी सूचना।

पटना के सबसे बड़े सरकारी अस्पाल PMCH में भी मूलभूत सुविधाओं की शिकायतें आम हैं जैसे दवा काउंटर निर्धारित समय पर खुला ना मिलने की शिकायतें, दवा वितरण में अस्पताल प्रशासन भी लोगों को भ्रमित करता है। आपको इसके प्रमाण दवा वितरण काउंटर पर निर्धारित समय की जानकारी ना होने से मिल जाएंगे।

यहां पूर्व में समय से पहले ही मरीज़ों को दवा वितरण का समय समाप्त होने की बात कह कर अस्पताल प्रशासन द्वारा काउंटर बंद कर दिया जाता था। स्थानीय पत्रकारों को इसकी सूचना मिलने के बाद में, इस मामले को वहां के प्रशासन द्वारा संज्ञान में लिया गया और मरीज़ों की सुविधा के लिए निर्धारित समय की जानकारी सूचना पट्ट के माध्यम से लोगों तक पहुंचाई गई। 

पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में सूचना लिखता पेंटर।

आखिर ऐसा क्यों है कि जो सुविधाएं अस्पताल में मौजूद होती हैं, उन्हें भी लोगों तक पहुंचाने में अस्पताल प्रशासन द्वारा आनाकानी की जाती है। इस पर पीएमसीएच ईएनटी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. पी.एन.पाल बताते हैं कि देश व राज्य में वैश्वीकरण के बाद बहुत सी चीज़ें बदली हैं।

भारत एक लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा से चलता है। मगर वैश्विक घटनाचक्र के बाद प्रबंधन के द्वारा सरकारी संस्थानों का संचालन सरकारों की प्राथमिकता रही है, जिसमें बड़े और कॉर्पोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से नीतियां निर्धारण की जाने लगी हैं। 

आज पीएमसीएच हो या डीएमसीएच या कोई अन्य सरकारी मेडिकल कॉलेज, अस्पताल अब यह सब सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल नहीं हैं। सरकार स्वास्थ्य बीमा के ज़रिये लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने का दंभ भरती है लेकिन ज़मीन पर हकीकत कुछ और ही है। 

लोग आज भी सस्ते और अच्छे इलाज के लिए दर-दर भटकने को मज़बूर हैं लेकिन सरकार द्वारा उनकी सुध नहीं ली जाती है। आज अस्पतालों में सफाई से लेकर जांच आदि के काम भी संविदा के आधार पर करवाए जाते हैं।

ऐसे में सवाल यह है कि जब कोई व्यक्ति दो-तीन साल की तय समय सीमा के साथ अपनी सेवाएं देगा तो जाहिर तौर पर उसका उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण सेवा प्रदान करने की बजाय तय अवधि में खानापूर्ति कर अधिक लाभ कमाना और नए आजीविका के रास्ते तलाशना होगा। हम इन बातों को दरकिनार करके सरकार से बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। 

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नोट- आकाश, YKA राइटर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम सितंबर-नवंबर 2021 बैच के इंटर्न हैं। इन्होंने इस आर्टिकल में, वर्तमान में सरकारी अस्पतालों में व्याप्त नौकरशाही, अस्पतालों में मूलभूत सुविधाओं की कमियों एवं इनके अभाव में आम नागरिकों को रोज़ किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है, इस पर प्रकाश डाला है।

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