“अरे ! वो देखो कितना सुंदर नृत्य करता है पर शायद यह आगे तक नहीं जा पाएगा। अरे, पिछड़े समाज का जो है ! इसे कौन मौका देगा?”
आपने कितनी बार सुनी है ऐसी बातें लोगों के मुंह से? यह सुनने में कितना नीच और घृणास्पद है। आप सोच रहे होगें कि ऐसी बातें आजकल कहां होती हैं? लेकिन आप गलत हैं।
शहरों में भले ही ऐसी बोली सुनने को नहीं मिलती पर जब आप गाँव की तरफ नज़र करेंगे, तो सिर्फ यही बातें सुनाई देंगी। हमें इस बात से वाकिफ रहना होगा कि शहरों के पढ़े-लिखे तथाकथित सभ्य आधुनिकता के वातावरण के चक्कर में, देश की अर्थव्यवस्था का अहम पहिया जिसे हम गाँव-देहात बोलते हैं, वह कहीं पीछे ना छूट जाएं।
समाज में कई तरह के लोग होते हैं पर सब की अपनी-अपनी सोच होती है। किसी के सपनों को उनके जाति से जोड़ना बेहद शर्मनाक है। यह सिर्फ गाँव ही नहीं, आप कहीं भी जाएं लेकिन लोगों की सोच आपका पीछा नहीं छोड़ेगी।
स्कूल और कॉलेजों में ऐसी घटिया टिप्पणियां अधिक होने लगी हैं। अभी कुछ दिन पहले की खबर में दो से तीन दलित और पिछड़े समाज के बच्चों को विद्यालय में उनके बर्तन और खान-पान की सारी चीज़ें बच्चों से धुलवा कर दूसरे बच्चों से अलग रखवाया जा रहा था।
इस पूरे अमानवीय दुर्व्यवहार के पीछे हमें खोटी मानसिकता दिखाई देती है। ऐसे लोगों को सिर्फ नौकरी से बर्खास्त करना ही उपाय नहीं है, परंतु उन्हें वापिस से एकता की शिक्षा देनी होगी। क्या हम सिर्फ बच्चों को नाम की शिक्षा दे रहे हैं?
क्या हम एकता और भाईचारे के सिद्धांतों में अपना विश्वास छोड़ चुके हैं? क्या इन चीज़ों में ज्ञान बस किताबों तक ही सीमित है? क्या लोकतांत्रिक देश में इसका कोई महत्व नहीं है? ज़रा सोचिए ! क्या शिक्षा और अच्छे विचार हम अपने आने वाली पीढ़ी को सिखा पाएंगे, जब हम स्वयं ही इतने कुंठित हैं?
क्या एकता की बातें बस मुंह-बोली बन चुकी हैं? ऐसे में हम लोगों को भारत को सुंदर और सुशील बनाने के सपने को छोड़ देना चाहिए। गाँव के अधिकतर बच्चों का सपना उनकी जाति पर लपेट कर समेट दिया जाता है।
देश के पिछड़े वर्ग के लोगों के साथ हम रोज़ खबरों में अन्याय ही क्यों सुनते आ रहे हैं? क्यों नहीं हम सुनते हैं कि पिछड़े वर्ग के बच्चों को पढ़ाई के लिए सरकार द्वारा विदेश अच्छी शिक्षा के लिए भेजा जा रहा है? क्यों हम बस पिछड़े वर्गों के साथ बेरहमी से बर्बरता होते देखते हैं?
मैं पटना के एक छोटे गाँव से हूं। मैंने अपने गाँव में ऐसी घृणास्पद जाति की बातें काफी सुनी हैं। अगर कोई खेल-कूद में अव्वल हो, तो उसे पिछड़ा बोल कर, उसके सपनों को वही मरोड़ देना, किसी बच्ची का संगीत में मन लगता हो, तो उसे लड़की और ऊपर से पिछड़े समाज का कह कर, उसके सपनों को तोड़ देना।
आप याद रखिए कि जातिवाद एक ऐसी समस्या है, जो लिंग, अमीर और गरीबी देख कर नहीं आती। हमें अपने मन की गंदगी को बाहर निकालना होगा। अगर एक बार किसी के मन में यह ज़हर बैठ गया, तो इससे बहुत बड़ा नुकसान बच्चों के सपनों और आत्म-सम्मान को होगा।
दुनिया में कई सारे देश जैसे जापान और अमेरिका की अगर हम बात करें, तो वो आज अर्थव्यवस्था, टेक्नोलॉजी और खेल-कूद के मामले में इतने आगे और अव्वल क्यों हैं?
आपको लगता है कि उन देशों में अगर जातिवाद की समस्या होती, तो आज उस देश की स्थिति ऐसी होती? बिल्कुल नहीं, हमें समझना होगा कि आज के समाज और बच्चों को हम जातिवादी सोच के चपेट में ना आने दें।
अंततः आप बच्चों के अनमोल सपनों को अपनी गन्दी जातिवादी सोच से कुचलना बंद करिए। इसका असर हमें भले ही आज नहीं दिखे परंतु अगर ऐसे ज़हर फैलाने वाले तत्व समाज पर हावी और साकार हो गए, तो आने वाला कल आपके दिल को पसीज देगा।