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बेलारूस-पोलैंड प्रवासी संकट

आगे कुआं और पीछे खाई कुछ ऐसी ही स्थिति बेलारूस और पोलैंड के सीमा पर प्रवासियों को महसूस हो रहा है। अच्छे भविष्य की तलाश में हर कोई एक नई मंजिल की तरफ बढ़ने की कोशिश करता है।

मध्य-पूर्व देशों के अनेक नागरिक उसी मंजिल के तलाश में यूरोप की तरफ बढ रहे हैं। इस कड़ाके की ठण्ड में पूरे विश्व में यह मुद्दा गरमाया हुआ है की आखिरकार इस संकट की शुरुआत कैसे हुई और इसका असल ज़िम्मेदार कौन है? इन्ही मुद्दों पर हम आगे चर्चा करेंगे।

धांधली के विरोध में अनेक कार्यकर्त्ता और नागरिक सड़को पर आना

अगस्त 2020 में बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेन्को को छठी बार राष्ट्रपति पद के लिए चुना गया। उन्हें अपनी प्रतिद्वंदी स्वियातालाना सिखानौस्काया से 80 फीसदी अधिक वोट प्राप्त हुए। लेकिन बाद में विपक्षी दल और यूरोपीय यूनियन ने यह आरोप लगाया गया की इस चुनाव में धांधली हुई है। इस धांधली के विरोध में अनेक कार्यकर्त्ता और नागरिक सड़को पर अपना विरोध दर्ज कराने के लिए उतर गये।

लोगों की मांग यह थी कि इस धांधली की निष्पक्ष जाांच हो और फिर से चुनाव कराया जाए। काफी बड़े स्तर पर पूरे देश में प्रोटेस्ट हुए, जिसके जवाब में सरकार ने काफी हिंसक कदम उठाया। पुलिस इस प्रोटेस्ट को बर्बरता से दबाने की कोशिश की, लेकिन लोग और व्यापक स्तर पर इकट्ठा होने लगे। लेकिन सरकार ने अपना रवैया नही बदला। आख़िर इन सब को देखते हुए यूरोपीय यूनियन के द्वारा अक्टूबर 2020 में लुकाशेन्को पर पहली बार प्रतिबन्ध लगाये गये।

प्रवासी वापस लौटने में असमर्थ और बंद रास्ते

इस साल के शुरुआत में लुकाशेन्को ने यह चेतावनी दी कि वो अब मध्य-पूर्व के प्रवासियों को यूरोपीय यूनियन के सदस्य देशों में जाने से नही रोकेंगे। प्रवासियों के लिए बेलारूस के रास्ते यूरोपीय यूनियन के देशो में जाना आसान है, क्योंकि वे भूमध्यसागरीय रास्ते के मुश्किलात से परिचित है।

लुकाशेन्को ने यूरोपीय यूनियन के द्वारा बार-बार प्रतिबंधो के खिलाफ जवाबी कार्यवाई करने की धमकी दी। लेकिन साथ ही वे इस बात से भी इंकार कर रहे है, कि वह प्रवासियों को सीमापार करने के लिए उकसा रहे है।

बेलारूस की सीमा से यूरोपीय यूनियन के तीन देशों लिथुआनिया, लातविया और पोलैंड की सीमा लगती है। इन तीनो देशो ने अपने बॉर्डर को इन प्रवासियों के लिए बंद कर दिया है। अब प्रवासी वापस लौट नही सकते क्योंकि उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए अपनी पूरी पूंजी लगा दी है और जहां से वे आये है वहां उनका इंतजार करने वाला अब कोई नही है।

लिथुआनिया में रोता बिलखता बचपन और रूस की ताकत

वर्तमान में अनेको की संख्या में प्रवासी बेलारूस और पोलैंड की सीमा पर अपनी मंजिल को ओझल होते हुए देख रहे हैं। इस कड़ाके की ठण्ड में उन्हें अभी तक सूरज की कोई नई किरण नही नजर आ रही है। छोटे-छोटे बच्चे भूख से तड़प रहे हैं। लोगों के पास खाने के लिए जो कुछ है वो धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है।

लिथुआनिया ने इस संकट को उपजाने का आरोप रूस पर लगाया है। इसके अनुसार रूस इस संकट का फायदा बेलारूस पर कब्ज़ा करने के लिए उठा रहा है। जबकि रुसी राष्ट्रपति पुतिन का कहना है, कि रूस का इसमें कोई हाथ नही है। सरकारों के बीच आरोप-प्रत्यारोप की कड़ी टूट नही रही है। सब एक दूसरे पर ठीकरा फोड़कर अपने आपको किनारा करने की कोशिश कर रहे हैं।

इस प्रवासी संकट की जड़ तो कहीं और है लेकिन इसे अभी नही संभाला गया तो यह कब यूरोप और मध्य-एशिया के लिए नासूर बन जायेगा इसका हमे अहसास भी नही होगा। जरूरी यह है की सभी राष्ट्र मिलकर इस संकट से उबरने के लिए कोई ठोस कदम उठाये। अन्यथा कुछ समय में हमे बेलारूस और पोलैंड की सीमा पर लाशे दिखेंगी।

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