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ग्रामीण क्षेत्रों में त्वरित और न्याय व्यवस्था को मज़बूत करती ग्राम कचहरी

ग्रामीण क्षेत्रों में त्वरित और न्याय व्यवस्था को मज़बूत करती ग्राम कचहरी

न्यायालयों में लंबित मुकदमों की संख्या में लगातार वृद्धि, निर्दोषों को न्याय मिलने में विलम्ब व न्याय मिलने तक दोषियों का सड़कों पर यूं ही बेफिक्र घूमना यह काफी चिन्ताजनक स्थिति है।

न्यायिक प्रक्रियाओं में देर होने के कारण उनके दोषियों के हौसले को और पंख मिल जाते हैं जिससे वे दूसरे अन्य अपराधों की ओर प्रोत्साहित होते हैं। उन्हें ऐसा एहसास होता है कि ये पुलिस, न्यायालय उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। इसे लेकर आए दिन सड़क से लेकर संसद तक चर्चा व बहस भी लगातार होती रहती है।

कई लोग अपनी शिकायत लेकर थाने व न्यायालयों तक इसीलिए नहीं जा पाते हैं, क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है इतनी लंबी लिस्ट में उनका नंबर कभी आएगा भी या नहीं फिर हम इस पर अपना वक्त और पैसा क्यों बर्बाद करें? जैसा चल रहा है चलने देते हैं।

पूर्व राष्ट्रपति ‘प्रणब मुखर्जी’ ने भी इस पर अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि “देर से मिला न्याय, न्याय ना  मिलने के बराबर है। देर से मिले न्याय में पारदर्शिता खत्म हो जाती है व लोगों को सच्चा और सही न्याय मिलना संदेह के घेरे में रहता है।”

बिहार सरकार ने इन लंबित मुकदमों में कमी लाने, लोगों को काफी कम समय में मामूली खर्च कर सही और सच्चा न्याय दिलाने व पूरी पारदर्शिता के साथ न्याय दिलाने का एक अनोखा और प्रभावशाली प्रयास किया है। सरकार की कोशिश है कि शासन के सबसे निचले स्तर पर रह रहे लोगों को भी उचित समय से न्याय मिले।

सही समय पर सच्चा न्याय प्राप्त करना हर नागरिक का अधिकार है और इसी प्रयास के तहत उन्होंने अपने यहां ‘ग्राम कचहरी’ की  स्थापना की है। न्याय व्यवस्था को ग्राम पंचायत स्तर तक ले जाना बिहार सरकार का यह एक अनोखा प्रयास है।

क्या है ग्राम कचहरी?

यूं तो यह प्रावधान काफी प्राचीन समय से ही हमारे भारतवर्ष में विद्यमान है, जहां गाँव स्तर पर पंचायत बुलाकर आपसी झगड़ों, विवादों व समस्याओं को अपने स्तर पर व पारस्परिक संबंध को बनाए रखते हुए निदान करने की कोशिश की जाती थी।

पंचायत के लोग अपने ही गाँव-समाज से पांच अनुभवी लोगों को पंच के रूप में नियुक्त करते थे, जो तटस्थ रहकर समस्याओं एवं झगड़ों का निष्पादन सभी पक्षों की संतुष्टि को ध्यान में रखकर करते थे।

इसके अलावा इनका उद्देश्य सिर्फ झगड़ों का निपटारा करना ही नहीं होता था, बल्कि झगड़ने वालों के बीच फिर से एकता व मेल मिलाप पैदा करना भी होता था। यह प्रावधान आज़ादी के बाद तक प्रचलित रहा लेकिन इन फैसलों की कोई संवैधानिक पहचान व कानूनन आधार नहीं था।

अलग-अलग जगह अलग-अलग तरीके से फैसले सुनाए जा रहे थे। देश के किसी भाग में या किसी गाँव में न्याय व्यवस्था का ऐसा प्रावधान था, तो कहीं नहीं था। वहां सब अपने-अपने तरीके से चल रहा था। न्याय व्यवस्था में कोई एकरूपता नहीं थी। किन्हीं पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं था।

इन्हीं सब बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए आज़ादी के बाद जब संविधान में अनुच्छेद 40 जोड़ा गया और ग्राम पंचायत को संगठित करने, शक्तियां व सत्ता सौंपने की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार को दी गई कि उनको स्वायत्त सरकार के एक इकाई के रूप में कार्य करने के योग्य बनाया जा सके, तब शायद बिहार वह पहला राज्य था, जहां बिहार पंचायती राज अधिनियम 1947 के तहत ग्राम पंचायत की स्थापना की गई थी। 

यह भी उल्लेखनीय है कि इसी अधिनियम के तहत ग्राम पंचायतों के साथ-साथ ग्रामीण स्तर पर ग्राम कचहरी की भी व्यवस्था की गई थी, जो अपने आप में एक बड़ा प्रभावशाली कदम था।

इसके बाद में कुछ अन्य राज्यों यथा यूपी, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश आदि में ग्राम कचहरी की व्यवस्था की गई परंतु ग्राम पंचायत के समान उतनी ही संख्या में जनता द्वारा ग्राम कचहरी के प्रतिनिधियों के चुनाव की व्यवस्था मात्र बिहार राज्य में ही विद्यमान रही।

ग्राम कचहरी के गठन के लिए पंच व सरपंच की नियुक्ति हेतु प्रत्यक्ष चुनाव की व्यवस्था की गई और साथ ही इन पदों के लिए अनुसूचित जाति व जनजाति के साथ-साथ महिलाओं के लिए भी आरक्षण का प्रावधान किया गया। इस प्रावधान के तहत आज़ादी से 1997 तक ग्राम कचहरी का संचालन होता रहा।

इसके साथ ही अखिल भारतीय स्तर पर पंचायतीराज व्यवस्था को संवैधानिक दर्ज़े के रूप में स्थापित करने की बात भी समानांतर रूप से चलती रही । इस दौरान ग्राम कचहरी द्वारा हज़ारों मामले काफी कम खर्च में व कम समय में आपसी मेल मिलाप व सौहार्दपूर्ण समझौते के तहत निपटाए गए।  

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 73 में पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना

इन्हीं सब को ध्यान में रखते हुए आज़ादी के वर्षों बाद अर्थात् वर्ष 1992 में जब भारतीय संविधान के अंतर्गत 73 वें  संविधान संशोधन के माध्यम से ‘पंचायती राज व्यवस्था’ की स्थापना हुई तब भी बिहार में “ग्राम कचहरी” पूर्व की भांति विद्यमान रही।

तत्पश्चात्, 73वें संविधान संशोधन के बाद बिहार सरकार द्वारा बिहार पंचायती राज अधिनियम 2006 उद्घोषित किया गया। इस नए अधिनियम के तहत ग्राम सभा व ग्राम पंचायत के साथ-साथ ग्राम कचहरी की भी बराबर व्यवस्था की गई।

इस अधिनियम में ग्राम कचहरी की व्यवस्था को व्यापक एवं विशेष स्वरुप प्रदान करने की चेष्टा की गई। ग्राम कचहरी ने राज्य के लोगों की न्यायिक समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता की एक विशिष्ट पहचान दी है।

जानिए बिहार पंचायती राज अधिनियम 2006 के बारे में

वर्तमान बिहार पंचायती राज अधिनियम 2006 के अध्याय 6 में ‘ग्राम कचहरी’ का प्रावधान किया गया है जिसमें धारा 90 से धारा 122 तक में ग्राम कचहरी और उसकी न्यायपीठों की स्थापना, शक्तियां, कर्तव्य और प्रक्रिया आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।

ग्राम पंचायत को एक सरकार के रूप में स्थापित करने की वकालत में लगे ‘तीसरी सरकार’ अभियान के संयोजक ‘डॉ. चंद्रशेखर प्राण’ ने भी बिहार के ग्राम कचहरी के कांसेप्ट (अवधारणा) की जमकर सराहना की है।

उनके अनुसार, हमारे संविधान में भी ग्राम पंचायत को  ‘स्वशासन’ यानि ‘अपनी सरकार’ के रूप में स्थापना की बात की गई है और बिहार जैसा राज्य अपने यहां ग्राम पंचायतों में ग्राम सभा, ग्राम पंचायत के साथ-साथ ग्राम कचहरी की व्यवस्था कर उसे सरकार के रूप में स्थापित करने की बेहतरीन कोशिश में लगा हुआ है। 

उनके अनुसार, यदि किसी संस्था के पास खुद के सोचने का, निर्णय लेने का, करने का व किए गए कार्यों को कानून के तहत निगरानी करने का और निगरानी में गलत पाए जाने पर दंड देने का अधिकार है। वह संस्था एक सरकार के रूप में खुद को स्थापित कर सकती है।

उनके अनुसार, जिस प्रकार केंद्र में एक केंद्र सरकार है, राज्यों में राज्य सरकार है, ठीक उसी प्रकार ग्राम पंचायत में एक तीसरी सरकार भी कार्य कर रही है जिसे इस राज्य में विधायिका, कार्यपालिका के साथ ही न्यायपालिका का भी अधिकार प्राप्त है।

 ग्राम कचहरी की स्थापना का उद्देश्य

ग्राम पंचायतों के पास विधायिका के रूप में ग्राम सभाएं, कार्यपालिका के रूप में ग्राम पंचायतें व उनकी समितियां और न्यायपालिका के रूप में ग्राम कचहरियां विद्यमान हैं। बिहार राज्य में पंचायत स्तर पर ग्राम कचहरी का होना ग्राम पंचायतों को सरकार के रूप में स्थापित करने की वकालत को दूसरे राज्यों के मुकाबले और मज़बूती प्रदान करता है।

बिहार में ग्राम कचहरी की स्थापना का मुख्य उद्देश्य है कि ‘घर के झगड़े घर में ही निपटे’ अर्थात् गाँव में आपसी वाद-विवादों को आपस में ही समझौता करवाकर शांति व्यवस्था कायम रखना ही इसकी स्थापना का मूल उद्देश्य है । 

जैसा कि हम सब जानते हैं कि वर्तमान में पूरे बिहार में करीब 8000 ग्राम पंचायतें हैं तदनुसार, ग्राम कचहरियों की संख्या भी उतनी ही है अर्थात हर ग्राम पंचायत में एक ग्राम कचहरी की व्यवस्था की गई है।

 ग्राम कचहरी के गठन की प्रक्रिया

बिहार पंचायती राज अधिनियम 2006 के तहत इन ग्राम कचहरियों को कुछ ऐसे अधिकार दिए गए हैं जिसके तहत गाँवों में उत्पन्न हो रहे छोटे-छोटे झगड़ों, विवादों आदि का निपटारा गाँव पंचायत स्तर पर आसानी से किया जा सके ।

इस अधिनियम में इन विवादों के निपटारे के लिए न्यायपीठ के गठन की बात की गई है जिसके सदस्य के रूप में ग्राम पंचायत के लोगों द्वारा ही चुनाव के माध्यम से चुने गए पंच व सरपंच होंगे। इसके लिए पूरी ग्राम पंचायत वोटिंग द्वारा एक सरपंच की नियुक्ति करेगी और वहीं हर वार्ड स्तर पर एक पंच की नियुक्ति की जाएगी।

यही पंच व सरपंच को मिलाकर एक न्यायपीठ का गठन किया जाता है। न्यायपीठ का गठन चार पंच तथा सरपंच सहित कुल पांच सदस्यों से किए जाने का प्रावधान है। वाद दायर होने के बाद पांच सदस्यों की न्यायपीठ सौहार्दपूर्ण समझौते से वाद का निष्पादन का यथासंभव प्रयास करती है। 

सौहार्दपूर्ण समझौता नहीं होने की स्थिति में न्यायपीठ जांच कर अपना निर्णय देती है चूंकि ये प्रतिनिधि न्यायिक प्रक्रिया व कानूनों से पूरी तरह वाकिफ नहीं होते इसलिए सरकार ने इनकी सहायता के लिए प्रत्येक ग्राम पंचायतों में एक-एक ग्राम कचहरी सचिव व कानून का जानकार एक ‘न्यायमित्र’ की नियुक्ति की भी व्यवस्था की है। 

इन न्यायमित्रों का काम संबंधित वाद-विवाद के संबंध में न्यायपीठों को कानून के बारे में जानकारी देना होता है। इन्हें न्यायपीठों द्वारा सुनाए गए फैसलों पर हस्तक्षेप करने आदि का कोई अधिकार नहीं है। ग्राम कचहरी के सदस्यगण अर्थात सरपंच व पंचों का कार्यकाल 5 वर्षों के लिए होता है। इन प्रतिनिधियों के काम से असंतुष्ट होने पर अविश्वास प्रस्ताव लाकर भी ग्राम पंचायत के लोग इन्हें हटा सकते हैं।

SC/ST व अत्यंत पिछड़ी जाति वर्ग के लोगों के लिए 50% तक की आरक्षण की व्यवस्था

एक समय था, जब पंच हमेशा पुरुष होते थे, जो ज़्यादातर ऊंची जातियों व भूस्वामी वर्ग के लोग ही होते थे, जिसके चलते अक्सर पंचायत में महिलाओं, गरीबों, दलितों तथा दूसरे पिछड़े वर्गों के साथ समुचित न्याय नहीं हो पाता था।

अतः इसी को ध्यान में रखते हुए बिहार पंचायतीराज अधिनियम, 2006 में SC/ST व अत्यंत पिछड़ी जाति वर्ग के लोगों के लिए 50% तक की आरक्षण की व्यवस्था की गई है साथ में कुल सीटों का 50% महिलाओं के लिए भी आरक्षण का प्रावधान किया गया है जिससे यह वर्ग भी आज काफी सशक्त हुए हैं व इनमें भी नेतृत्व क्षमता का काफी बेहतर विकास हुआ है।

 ग्राम कचहरी की शक्तियां

“घर के झगड़े घर में ही निपटे” की संकल्पना को आगे बढाते हुए बिहार पंचायती राज अधिनियम, 2006 के तहत ग्राम कचहरी को कुछ आपराधिक व सिविल मामलों में कार्रवाही करने का अधिकार दिया गया है।

आपराधिक (दाण्डिक) अधिकारिता के अन्तर्गत भारतीय दण्ड संहिता की कुल 40 धाराएं यथा – धारा 140, 142, 143, 145, 147, 151, 153, 160, 172, 174, 178, 179, 269, 277, 283, 285, 286, 289, 290, 294, 294(ए), 332, 334, 336, 341, 352, 356, 357, 358, 374, 403, 426, 428, 430, 447, 448, 502, 504, 506 एवं 510 के तहत किए गए अपराधों के लिये केस को सुनने एवं निर्णय देने का अधिकार दिया गया है।

इन आपराधिक धाराओं के सुनवाई के उपरान्त ग्राम कचहरी को एक हज़ार रुपये तक जुर्माना करने की भी शक्ति प्रदान की गई है परन्तु ग्राम कचहरी को कारावास की सजा देने का कोई अधिकार नहीं है। वहीं, ग्राम कचहरी को सिविल अधिकारिता के तहत धारा-110 के अनुसार दस हज़ार रुपये से कम मूल्य से संबंधित निम्नलिखित सिविल मामलों में यथा लगान की वसूली, चल सम्पत्ति को क्षति पहुंचाने, बंटवारे के मामले को सुनने का अधिकार दिया गया है।

ग्राम कचहरी की न्यायपीठ के किसी आदेश या निर्णय से प्रभावित व्यक्ति ग्राम कचहरी के पूर्ण पीठ में आदेश पारित होने के 30 दिनों के भीतर ग्राम कचहरी में अपील दायर कर सकता है, जिसमें 7 पंचों से गणापूर्ति होगी। न्याय निर्णय के विरूद्ध आदेश पारित होने के 30 दिनों के अन्दर सिविल मामले में अवर न्यायाधीश के समक्ष एवं आपराधिक मामलों में ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश के समक्ष अपील दायर करने का प्रावधान अधिनियम में दिया गया है। 

बिहार के पंचायतीराज अधिनियम में “ग्राम कचहरी” जैसी न्यायिक व्यवस्था वाली संस्था को ग्राम पंचायत स्तर तक ले जाना बिहार सरकार का एक अनोखा व प्रभावशाली प्रयास है। आज वर्तमान में गाँव के स्तर पर इसका काफी सकारात्मक असर दिख रहा है।

 ग्रामीण क्षेत्रों में मिल रहा त्वरित न्याय

सरकार के एक आंकड़े के अनुसार, 2016 से दिसम्बर 2018 तक में राज्य में 2 लाख से अधिक मामलों का निपटारा ग्राम कचहरी के माध्यम से किया गया है। भोजपुर ज़िले के जगदीशपुर प्रखंड का एक गाँव हरदिया, जहां 20 वर्षों  से चल रहे एक ज़मीनी विवाद का निपटारा ग्राम कचहरी के पहल के कारण सुलझा।

एक अन्य मामला जो नालंदा ज़िले के नगरनौसा का है, जहां चार साल से एक दूसरे से अलग रह रहे दम्पति ग्राम कचहरी के पहल के कारण समझौते के उपरांत साथ रहने पर राजी हो गए । ऐसे अनेकों उदाहरण भरे पड़े हैं। 

राज्य के अन्य हिस्सों में जहां ग्राम कचहरी के सकारात्मक पहल से विवादों को निचले स्तर पर सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझा लेने का सफल प्रयास किया गया है। सरकार आगे आने वाले वक्त में  ग्राम कचहरी को और अन्य अधिकार देकर मज़बूती प्रदान करने पर विचार कर रही है।

बिहार के ‘ग्राम कचहरी’ की अवधारणा आज देश भर में एक नज़ीर बन चुकी है। देश के अन्य हिस्सों के विश्लेषक अन्य राज्यों में भी इस प्रकार की न्याय व्यवस्था स्थापित करने पर पुरजोर वकालत करने में लगे हुए हैं। बिहार राज्य की तरह ही पूरे देश के अन्य हिस्सों में इसी प्रकार सौहार्दपूर्ण तरीके से पारस्परिक संबंधों को बनाए रखते हुए लोगों को सच्चे न्याय का अधिकार हर नागरिक को मिले व लोगों का भी न्याय की अवधारणा पर हमेशा विश्वास बना रहे। 

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