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फेक खबरों और अफवाहों से दूषित होती देश की समरसता

फेक खबरों और अफवाहों से दूषित होती देश की समरसता

कितना ज़रूरी है सच जानना और गलत अफवाहों से बचना । यह हमारी ज़रूरत है परंतु एक लोकतांत्रिक देश में यह इतना मुश्किल क्यों होता जा रहा है?

क्यों हमें सच बोलने और जानने में इतनी कठिनाई होती है? यह तो हमारा इस देश के नागरिक होने के नाते अधिकार है। क्यों वो लोग, जो अपने आप को पत्रकार और देशप्रेमी कहते हैं, वहीं हमारे साथ गलत और ठगी करते हैं।

हमें सही रास्ता कौन दिखाएगा? यह काम तो उनका है ना? एक कहावत है कि बुरा करने वाले से ज़्यादा बड़ा दोषी बुरा होते हुए देखने वाला होता है, जब एक देश में अन्याय होता है, तो अन्याय होने पर ज़मीनी हकीकत को छुपाने का काम एक पत्रकार कैसे कर सकता है? उसका काम तो देश के आम जनमानस को सच दिखाना होता है।

चारों ओर एक अजीब सा डर फैला हुआ है कि हमारे मुंह से सरकार की नीतियों के खिलाफ कुछ निकल जाएगा, तो हमें जेल भेज दिया जाएगा और सच बात तो यह है कि लोग जेल भेज भी दिए जा रहे हैं।

जो लोग झूठ के खिलाफ अपनी आवाज़ उठा रहे हैं, उनके घर उजड़ रहे हैं। अब आप सोच रहे होंगे की उन लोगों का क्या फायदा होता है, जो झूठी बनाई गई मसाला खबरों का साथ देते हैं। ऐसे लोग झूठे ‘प्रोपेगैंडा’ के साथ जुड़े हुए होते हैं।

उनके साथ कुछ अच्छा तो नहीं और ना ही उन्हें इन सब से कुछ लाभ होता है परंतु वे अपना सबसे ज़्यादा नुकसान कर रहे हैं, क्योंकि वे गलत और झूठी जानकारी का शिकार हो रहे हैं और दूसरा वह अपने देश के साथ भी धोखा कर रहे हैं।

अब पहला सवाल यह उठता है कि मसाला मीडिया क्या है? जो लोग उससे बहुत प्रभावित रहते हैं। दरअसल, मसाला मीडिया आपके अंदर एक जानवर को पैदा करता है और आपके अंदर नफरत की भावना प्रकट करके आपको दूसरे समुदायों से लड़वाता और नफरत करवाता है।

वो आपके सामने किसी एक समुदाय को बार-बार गलत साबित करता है और आपके मन में उसके प्रति  इतनी घृणा पैदा करवाता है, ताकि आप उस समुदाय के लोगों का समाज में जीना मुश्किल कर दें।

मसाला मीडिया समाज को जहरीला बनाने का काम करता है। ऐसा कहा जाता है कि ‘मीडिया’ लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ होता है पर भारत में फिलहाल लोकतंत्र की गाड़ी अभी खराब पड़ी है और इसकी मरम्मत सिर्फ देश के आम नागरिक ही कर सकते हैं।  

दूसरा अहम सवाल: मसाला मीडिया की पहचाना कैसे की जाए? आजकल मीडिया ने खबरों को अपना धंधा बना लिया है। किसी न्यूज़ चैनल की डिबेट पर खुलेआम जोर-जोर से चिल्लाकर अपनी बात सामने रखना, खबरों को अपने अनुसार मिर्च मसाला लगाकर आम जनमानस के समक्ष पेश करना, ताकि लोगों के अंदर एक-दूसरे के लिए नफरत फैले।

एक समुदाय के खिलाफ या पक्ष में बोलना और लोगों में नफरत के बीज पैदा करना और आखिर में किसी एक राजनैतिक दल के सामने झुक कर अन्य राजनैतिक दलों के खिलाफ नफरत फैलाना। हमारा कर्तव्य सिर्फ ऐसी गलत जानकारियों से बचना ही नहीं है परंतु उस से भी ज़्यादा ज़रूरी है कि हम सही और गलत के बीच के अंतर को समझें। 

अंततः याद रखिए  

“बार-बार चेताया जा रहा है, समझ कर मान  लीजिये यह बात।                                                                            छोड़िए मसाला खबरों का साथ, थामिए सच्ची पत्रकारिता का हाथ।”                                                          

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