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आइए जानते हैं हड़प्पा कालीन विश्व धरोहर धोलावीरा के इतिहास के बारे में

आइए जानते हैं हड़प्पा कालीन विश्व धरोहर धोलावीरा के इतिहास के बारे में

कॉलेज में प्राचीन इतिहास पढ़ते समय एक जगह पढ़ा था कि एक खास क्षेत्र में निवास करने वाले लोगों की जीवन-पद्धति संस्कृति कहलाती है और अगर किसी खास क्षेत्र में निवास कर रहे लोगों की संस्कृति आगे चलकर बड़े क्षेत्र में मानदंड के रूप में स्थापित हो जाए तो वह सभ्यता कहलाती है।

इस विश्व ने अनेक सभ्यताएं पनपते और नष्ट होते हुए देखी हैं, उन्हीं में से एक थी सिंधु घाटी की सभ्यता। लगभग 5000 साल पुरानी इस सभ्यता को नगरीय सभ्यता के रूप में निरूपित किया जाता है। धोलावीरा इसी सभ्यता का एक विकसित नगरीय स्थल था।

हाल ही में यूनेस्को द्वारा धोलावीरा को विश्व विरासत की सूची में रखा गया है। इसी के साथ अब भारत में 40 विश्व विरासत के स्थल हो गए हैं। यह ऐतिहासिक स्थल वर्तमान गुजरात के कच्छ के रण में स्थित है। स्थानीय भाषा में  धोलावीरा का अर्थ “द्वीप” है जो कि इसकी भौगोलिक स्थिति को भी दर्शाता है।

खोज

धोलावीरा की खोज सर्वप्रथम 1956 में की गई थी, लेकिन इसका उत्खनन कार्य 1990 में शुरू हुआ था। इसकी शुरुआती खुदाई में पुरातत्ववेत्ताओं को जिप्सम से बने कुछ विचित्र प्रतीक मिले। वे शहर के मुख्य द्वार पर ही एक क्रम में कुछ अंतराल पर बने थे।

उन्हें इसकी खुदाई में इस तरह के कुल 10 प्रतीक चिन्ह मिले। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि ये प्रतीक चिन्ह आखिर क्या हैं? अंदेशा लगाया गया कि इन प्रतीक चिन्हों के रूप में कुछ लिखा हुआ है, किन्तु दुर्भाग्यवश हड़प्पाई लिपि के ना पढ़े जाने और उन प्रतीकों के साथ कोई अन्य भाषा ना मिलने के कारण हम आज तक उनका उचित एवं सटीक अर्थ नहीं जान पाए हैं।

नगरीय व्यवस्था

धोलावीरा करीब 120 एकड़ में फैला हुआ था। इस शहर की बसावट को देखकर लगता है कि यहां के निवासी त्रिकोणमितीय और जलीय व्यवस्था से खासा परिचित थे।

यह शहर एक ऊंचे चबूतरे पर बसा हुआ था। यहां के लोग सुंदरता से ज़्यादा अपने नगर की मज़बूती पर बल देते थे। इनके अधिकांश घर पत्थरों से निर्मित थे। प्रत्येक घर की एक दीवार मुख्य नाली से जुड़ी हुई होती थी, जिससे हमें यह सूचना मिलती हैं कि उन्हें ड्रेनेज सिस्टम की भी अच्छी जानकारी थी।

आर्थिक जीवन

धोलावीरा एक व्यापारिक मार्ग पर बसा हुआ शहर था। हड़प्पा सभ्यता का मेसोपोटामिया की सभ्यता से व्यापार लोथल के साथ-साथ इस मार्ग के द्वारा भी होता था। यहां के लोग मनके बनाते थे, जिनकी उस समय विश्व के अन्य क्षेत्रों में काफी मांग थी।

धोलावीरा के मनके मेसोपोटामिया से भी प्राप्त हुए हैं चूंकि मनुष्य अब सभ्यता के उस चरण में पहुंच चुका था, जब उसके घर और कार्यस्थल अलग-अलग जगह पर होने लगे थे। इसलिए उत्खनन में यहां से हमें अनेक छोटे-छोटे कारीगर शाला के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।

सामाजिक जीवन

धोलावीरा के सामाजिक जीवन के बारे में हमें जो भी जानकारी मिलती है, उसका एकमात्र स्रोत खुदाई में प्राप्त पुरातत्व अभिशेष हैं। यहां की महिलाएं मनकों  का निर्माण करती थीं और अब तक यह प्रचलन में आ चुका था कि महिलाएं घर के काम और बच्चों की देखभाल करती थी और पुरूष बाहर काम करने जाते थे। 

इस स्थल से हमें एक स्टेडियम (खेलने का मैदान) का भी साक्ष्य मिलता है, जो यह दर्शाता है कि लोग एक साथ मिलकर खेल खेलते और देखते थे।

पतन

यह शहर करीब 1500 सालों तक बसा रहा। किन्तु वे क्या कारण थे, जिससे इस शहर की अवनति शुरू हुुई? अभी तक इसकी कोई स्पष्ट जानकारी प्राप्त नहीं हुई है।

विभिन्न विद्वान इसके बारे में अपने अलग-अलग मत रखते हैं लेकिन ये बात ज़रूर विचारणीय है कि जो शहर पर्यावरण के प्रति इतना सचेत था, जिसने जल संरक्षण, उन्नत नाली व्यवस्था पर इतना बल दिया क्या उसका पतन जलवायु परिवर्तन के ही कारण हुआ? इन सारे प्रश्नों के उत्तर अभी भी पुरातत्ववेत्ताओं द्वारा प्रत्येक दिन ढूंढे जा रहे हैं।

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