महात्मा गांधी रोज़गार गारंटी अधिनियम 2005 एक भारतीय श्रम कानून और सामाजिक सुरक्षा उपाय है जिसका उद्देश्य ‘काम के अधिकार’ की गारंटी देना है। यह अधिनियम 7 सितम्बर, 2005 को विधान द्वारा अधिनियमित किया गया था।
इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक परिवार को, जिसके वयस्क सदस्य स्वेच्छा से अकुशल शारीरिक कार्य करना चाहते हैं, एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों का वेतन रोज़गार प्रदान करके उनकी आजीविका सुरक्षा को बढ़ाना है।
इस अधिनियम को पहली बार भारत के 593 ज़िलों में इसे लागू करना शुरू कर दिया गया। इस प्रायोगिक अनुभव के आधार पर, नरेगा को 1 अप्रैल, 2008 से भारत के सभी ज़िलों को कवर करने के लिए लागू किया गया था।
इस कानून की सरकार द्वारा “दुनिया में सबसे बड़ा और सबसे महत्वाकांक्षी सामाजिक सुरक्षा और लोक निर्माण कार्यक्रम” के रूप में प्रशंसा की गई थी। विश्व विकास रिपोर्ट 2014 में, विश्व बैंक ने इसे “ग्रामीण विकास का तारकीय उदाहरण” करार दिया था।
मनरेगा की शुरुआत “ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा को बढ़ाने के लिए एक वित्तीय वर्ष में कम-से-कम 100 दिनों की गारंटी मज़दूरी रोज़गार प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी, जिसके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक कार्य करने के लिए स्वेच्छा से काम करते हैं।”
मनरेगा का एक अन्य उद्देश्य टिकाऊ संपत्ति (जैसे सड़क, नहर, तालाब और कुएं) बनाना है और इस योजना में आवेदक के निवास के 5 किमी के भीतर रोज़गार उपलब्ध कराया जाना है और न्यूनतम मज़दूरी का भुगतान किया जाना है।
यदि आवेदन करने के 15 दिनों के भीतर काम नहीं दिया जाता है, तो आवेदक बेरोजगारी भत्ते के हकदार हैं यानि अगर सरकार रोज़गार देने में विफल रहती है, तो उसे उन लोगों को कुछ निश्चित बेरोजगारी भत्ता देना होगा। इस प्रकार, मनरेगा के तहत रोज़गार एक कानूनी अधिकार है। मनरेगा को मुख्य रूप से ग्राम पंचायतों (जीपी) द्वारा लागू किया जाना है। ठेकेदारों की संलिप्तता प्रतिबंधित है।
आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने और ग्रामीण संपत्ति बनाने के अलावा, नरेगा को बढ़ावा देने के लिए कहा गया है कि यह पर्यावरण की रक्षा करने, ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने, ग्रामीण-शहरी प्रवास को कम करने और सामाजिक समानता को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।