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जानिए गोंड आदिवासियों के देव उठनी और शादी की प्रथाओं के बारे में

लेखिका- वर्षा पुलस्त

गोंड आदिवासियों के बहुत सारे त्यौहार होते हैं और इन त्यौहारों में कई सारे रीति- रिवाज़। इनमें से एक त्यौहार है देव उठनी का। देव उठनी सभी आदिवासियों द्वारा मनाया जाने वाला एक त्यौहार होता है।

इस त्योहार मे गाँव के सभी लोग अपने घर से नारीयल पकड़ कर गोंड बैगा के यहाँ जाते है। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले मे ऐसे कई गांव आते है जहाँ आदिवासी देव उठनी का त्योहार मनाते है। देव उठनी का मतलब होता है देव उठाना।

गोंड बैगा जो होते है, उनके घर मे चौराह बनाते है। चौराह के बीच मे एक बड़ी लकडी गाड देते है। यह लकडी साल पेड की लकडी होती है, जिसे सफेद रंग मे पोता जाता है। गन्ने को उस लकडी के चारो तरफ से बांध लेते है और उसकी आरती करते है।

गोंड बैगा उनके घर मे चौराह बनाते है। फ़ोटो- वर्षा पुलस्त

फिर गाना गाकर डन्डा नाच करते है सक्कर कंन्द को उबाल लेते है और गन्ना और कंन्द को प्रसाद के रूप मे देते हैं और सभी अपने घर के गाय व बैलों को खाना खिलाते है।आदिवासियों की मान्यता है की इस दिन गाय का झूठा खाने से पुण्य मिलता है। इस दिन गाय को पहले खिचडी़ खिलाई जाती है और बाद में घर के लोग पांच-पांच निवाला खाते है।

आदिवासियों की मान्यता है की इस दिन गाय का झूठा खाने से पुण्य मिलता है। फ़ोटो- वर्षा पुलस्त

गांव मे कई प्रकार के देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, जैसे बूढा़ देव, मरखी माता, ठाकुर देव, चौरा देव, बूढी माता आदि। कुछ देवताओं को मनाने के लिए गांव वालो द्वारा बकरा की बली दी जाती है और कुछ देवताओं को नारियल से मनाते है।

पूजा करते समय। फ़ोटो- वर्षा पुलस्त

आदिवासियों के अलग-अलग गाँव में अलग-अलग समूह होते हैं और समूह के मुखिया होते हैं, जो अपने-अपने ग्रामों को नियंत्रित करते हैं। उन्हीं के बनाए हुए रास्ते पर सभी गाँव वाले चलते हैं।

कब क्या पूजा पाठ करना है, किस देवी-देवताओं की पूजा कब की जाए, सब मुखिया तय करते हैं। गाँव वाले मुखिया या बैगा की बात नहीं काटते हैं और उनकी ही सलाह पर गाँव का हर कार्य होता है। गाँव मे जब भी बच्चा पैदा होता है, शादी होती है या किसी की मृत्यु होती है, तब भी गाँव के मुखिया की ज़रूरत पड़ती है।

गाँव क्षेत्रों मे हर महीने  कुछ ना कुछ त्यौहार मनाया जाता है,  जैसे- अक्ती, फागुन, दीवाली, दशहरा, हरेली, नाग पंचमी। यह बहुत बड़ी सूची है लेकिन देव उठनी की ख़ास बात यह है कि गाँव में अगर घर मे शादी योग्य कोई लड़का या लडकी हो तो इस त्यौहार को मनाने के बाद ही लडके या लडकी के घर दिखाने का कार्यक्रम हो सकता है।जो देखने जाते है उन्हें हमारी आदिवासी भाषा मे सगा कहते।

शादी के इर्द-गिर्द और एक प्रथा है- गोंड जनजाती में जब शादी होती है, तो गोंड बैगा को नारियल व कपडा दिया जाता है और उन्हें शादी मे आमंत्रित करते है।जो गोंड जनजाती के देव स्थल होते है, वहां से मिट्टी लाई जाती है और उससे देव चौरा बनाते है।

हमारी त्यौहार की और शादी की परम्पराएँ बहुत ही विस्तृत है और इनसे जो आनंद मिलता है, इसका वर्णन नही किया जा सकता।इन दिनों जब हमारी संस्कृति ग़ायब होते जा रही है, इन रीति रिवाजों को बचाना और भी ज़रूरी हो गया है।


लेखिका के बारे में- वर्षा पुलस्त छत्तीसगढ़ में रहती हैं। वह स्टूडेंट हैं जिन्हें पेड़-पौधों की जानकारी रखना और उनके बारे में सीखना पसंद है। उन्हें पढ़ाई करने में मज़ा आता है।

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