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‘सूर्यवंशी’ और ‘जय भीम’ इन फिल्मों में आपको दिखेंगे पुलिस के दो रूप

'सूर्यवंशी' और 'जय भीम' इन दोनों फिल्मों में आपको दिखेंगे पुलिस के दो रूप

इस साल एक लम्बे इंतज़ार के बाद अक्षय कुमार की सूर्यवंशी फिल्म रिलीज़ हुई और दर्शकों के अंदर जोश भर गया, क्योंकि अक्षय कुमार काफी समय से देशभक्ति के टॉपिक पर फिल्में बना रहे हैं चाहे वो सूर्यवंशी हो, बेलबॉटम, बेबी या और भी बहुत सारी फिल्में हैं।

इस फिल्म का ट्रेलर पिछले साल ही आ गया था, पर कोरोना के चलते यह फिल्म रिलीज़ नहीं हो पाई और आखिरकार इस साल नवंबर में ये फिल्म रिलीज़ हुई और थिएटर दर्शकों से भर गए और फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर मोटी कमाई की और देशभक्ति से भरी इस फिल्म के साथ साउथ इंडिया की एक फिल्म जय भीम भी रिलीज़ हुई।

हालांकि, यह फिल्म थिएटर में रिलीज़ ना होकर अमेज़न प्राइम पर रिलीज़ हुई पर ये फिल्म IMDB पर सबसे ज़्यादा रेटिंग  हासिल करने वाली पहली भारतीय फिल्म बनी।

इन दोनों फिल्मों में पुलिस का अहम रोल था। सूर्यवंशी में पुलिस वालों को टॉप एन्ड स्टंट करते, एक बहुत बड़े आतंकी धमाके से पूरे देश को बचाते हुए दिखाया गया है, पर जय भीम की कहानी हमें कुछ अलग ही बयान करती है।

पुलिस के दो पहलू

इन दोनों फिल्मों ने ये साबित कर दिया कि सिक्के की तरह पुलिस के भी दो पहलू होते हैं। सबसे पहले हम बात करते हैं सूर्यवंशी फिल्म की पुलिस की। इस फिल्म में पुलिस के एक ऐसे अनदेखे चेहरे को दिखाया गया है, जिसे हम नहीं जानते हैं और ना ही हमने वह चेहरा कभी देखा है।  

इस फिल्म की पुलिस के पास इतनी बेतहाशा ताकत है और इतनी ताकत है कि वह बड़े-से-बड़े आतंकवादी गुटों से अकेले ही निपट सकती है।

इस फिल्म की पुलिस हेलिकॉप्टर पर छलांग मार कर चढ़ सकती है, लड़की के साथ बारिश में रोमांटिक गाना भी गा सकती है और अपने सामने आती मिसाइल से ऐसे बच सकती है जैसे वह कोई खतरनाक मिसाइल नहीं कोई मक्खी उड़ कर आ रही हो।

वह ना जाने कितने ही बंदूकधारी आतंकियों से अकेले, बिना बन्दूक के बिना किसी सेफ्टी के भिड़ जाती है और लोगों की वाहवाही लूटती है। क्या आपने कभी ऐसी पुलिस देखी है?

दूसरी तरह जय भीम की पुलिस थी। ऐसी पुलिस, जो हमारे सामने तथाकथित सभ्य और आदर्श कहे जाने वाले समाज का सच्चा लेकिन एक गंदा रूप पेश करती है। पुलिस की ऐसी सच्चाई हमें बताती है, जो हमें समाज में हर तरफ दिखाई देती है। इस फिल्म में दिखाई पुलिस को हम देखना भी पसंद नहीं करते हैं।  

जय भीम में पुलिस भ्रष्ट है, वो चोरी के मामले में एक आदिवासी को फसा कर उसे ज़बरदस्ती मार मारकर अपराध कुबूल करवाना चाहती है, जो उसने कभी किया ही नहीं है।

वह अपने प्रमोशन के लिए जेल में उस आदिवासी को पीट-पीट कर मार देती है और उसकी लाश को ठिकाने लगा देती है।

पुलिस को पता है कि असली चोर कौन है, पर पुलिस उसे नहीं पकड़ती, क्योंकि पुलिस ने खुद उस चोर से हिस्सा लिया है। इस फिल्म में दिखाया गया है कि कुछ ताकतवर लोग, अपनी ताकत को बढ़ाने और बरकरार रखने के लिए पुलिस का इस्तेमाल करते हैं और पुलिस भी उनका भरपूर साथ देती है। 

आपने कैसी पुलिस देखी है?

इन दोनों फिल्मों की पुलिस का हमारे समाज पर एक गहरा असर है। एक तरफ जहां हमें दिखाया जाता है कि पुलिस अपनी जान पर खेल कर हमारी रक्षा कर रही है, हम जानते हैं कि ऐसा सच है।

पुलिस हमारे समाज में बुराई को दूर करने के लिए बहुत ज़रूरी है पर हम ये कैसे नज़रअंदाज़ कर सकते हैं कि जय भीम की पुलिस की तरह हमारी पुलिस भी कुछ बड़े ताकतवर लोगों के हाथ की कठपुतली है।

वो खुद चोर है और चोरों से मिली हुई है, अपने चोर दोस्त को निर्दोष साबित करने के लिए किसी निर्दोष को मारने से भी नहीं चूकती, हम ये कैसे नहीं देख पाते।

जैसी पुलिस सूर्यवंशी में दिखाई गई है वैसे स्टंट करते किसी पुलिस वाले की एक भी खबर आपको अखबारों में नहीं मिलेगी पर कस्टोडियल डेथ (न्यायिक हिरासत) के आपको बहुत सारे केस मिल जाएंगे। 

2020 में पुलिस हिरासत में 76 लोगों की मौत हुई है। जय भीम फिल्म में सच्चाई दिखती है कि पुलिस कैसे काम करती है और वह किस अमानवीय हद तक जा सकती है। ये दोनों फिल्में भले पुलिस के ऊपर ही बनी हैं और दोनों ही फिल्में हमें पुलिस के अलग-अलग रूप दिखाती हैं।

बात यह नहीं है कि आप सूर्यवंशी फिल्म ना देखें, वो हमारे मनोरंजन के लिए बनी है पर हमें जय भीम को भी देखना होगा, ताकि हम पुलिस का असली चेहरा भी देख पाएं और थोड़े जागरूक हो सकें। 

सूर्यवंशी आपके दिमाग में तब तक रहेगी, जब तक आप थिएटर से घर नहीं पहुंच जाते पर जय भीम की पुलिस की मार आपके दिमाग में घर कर जाएगी और अनगिनत सवाल भी उठाएगी।

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