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आदर्श समाज की तथाकथित देवियां और अश्लीलता पर अट्टहास करता समाज

आदर्श समाज की तथाकथित देवियां और अश्लीलता पर अट्टहास करता समाज

नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ रूपों को हम पूजते हैं। माँ! यानि बेटी, दुर्गा, भगवती! जाने कितने नाम हैं, जितने नाम उतने ही रूप।

नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ रूपों को पूजने के बाद नवमी को हम कन्याभोज और कन्यापूजन कर कन्याओं की सेवा करते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं। हमारे समाज में नारी की कितनी महत्ता है ना ! तभी तो मनुस्मृति में लिखा है और संस्कृत के श्लोक के रूप में हमें विद्यालयों में भी पढ़ाया गया है कि

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः” ।।

अर्थात जहां स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं और जहां स्त्रियों की पूजा नहीं होती है, उनका सम्मान नहीं होता है, वहां किए गए समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं।

देवी दुर्गा की पूजा के बाद वक्त आता है। माँ को अलविदा कहने का यानि कि मूर्ति विसर्जन का। बिहार में यह विसर्जन अपने ही अलग अंदाज़ में किया जाता है, जहां नौ दिन पूजा समिति के सदस्य माँ की भक्ति में लीन रहते हैं, तो वहीं विसर्जन उनको यह हक देता है कि विसर्जन के दिन वो बड़े-बड़े लाऊडस्पीकर, डी. जे., अभद्र और अश्लील भोजपुरी गाने और लड़की डांसरों के साथ जुलूस निकालें ।

मैं आप सबको अपनी इस ग्राउंड रिपोर्ट के ज़रिये एक ऐसे ही जुलूस का मेरी आंखो देखा हाल बताने जा रहा हूं। 

ट्रैक्टर की ट्रॉली पर लदे भारी-भरकम लाऊडस्पीकर को रस्सी के सहारे बांधा गया था । लाऊडस्पीकर बांधने के बाद, जो जगह ट्रॉली पर बच गई थी। उस बची हुई जगह पर तीन प्लास्टिक की कुर्सियां रखी हुईं थीं और कुर्सियां रखने के बाद जो जगह बच गई थी, उस जगह पर दो डांसर डांस कर रहीं थीं।

जब दो डांसर डांस करके आतीं, तो फिर कुर्सी पर बैठी लड़कियों में से दो लड़कियों को डांस करने जाना पड़ता था और अगर कभी सोलो डांस होता, तो एक लड़की खड़ी रहती थी। वैसे, लड़कियां जिन कुर्सियों पर बैठी थीं। उन से ट्रॉली पर बांधे 20-30 लाउडस्पीकर की दूरी बस 2 इंच ही थी। 

उनको उन कुर्सियों पर जुलूस के दौरान घंटों बैठना पड़ता है। उन लड़की डांसरों ने अपने कानों में रुई डाल रखी थी, लेकिन उसका कोई खास फायदा दिख नहीं रहा था, क्योंकि साउंड बॉक्स इतने अधिक थे कि उनकी आवाज़ कान के पर्दों को चीर रही थी ।

उन लड़की डांसर में से एक डांसर ने बताया कि इन जुलूसों के कारण उनकी कुछ ऐसी भी साथी डांसर्स हैं, जो अब ऊंचा सुनती हैं।

वैसे, जब हम इस रिपोर्ट के सिलसिले में लोगों से बात कर रहे थे, तो एक व्यक्ति ने बताया कि कुछ दिनों पहले सरस्वती पूजा की ही बात है। मूर्ति विसर्जन के वक्त ऑर्केस्ट्रा और विसर्जन का जुलूस निकाला जा रहा था। ट्रैक्टर की ट्रॉली पर ऑर्केस्ट्रा की लड़कियां डांस कर रहीं थीं।

कानफोड़ू आवाज़ और अश्लीलता का तथाकथित विसर्जन जुलूस।

उनके पीछे बड़े-बड़े साउंड बॉक्स बांधे हुए थे कि अचानक से साउंड बॉक्स उनके ऊपर गिर गए। जो लोग उस जुलूस में शामिल थे, वो भाग खड़े हुए। कुछ समय के बाद उन लड़कियों को अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टर ने दो लड़कियों को मृत घोषित कर दिया। आगे उस व्यक्ति ने मुझे एक वीडियो दिखाया, जो कि उपरोक्त घटना का था, जिसका जिक्र वो व्यक्ति कर रहा था। 

तथाकथित देवियां और हमारे आदर्श समाज का घृणित चेहरा

जब हमने पूछा कि जुलूस में इतने साउंड बॉक्स क्यों बांधे जाते हैं? तो उस व्यक्ति ने बताया कि विसर्जन में दो-तीन पूजा समितियों के बीच में प्रतियोगिता होती है कि किसका साउंड सिस्टम सबसे अधिक आवाज़ करता है और किस पूजा समिति की लड़की डांसर सबसे अधिक भीड़ जुटा पाती है और फिर इस आधार पर जीतने वाली पूजा समिति को सम्मानित किया जाता है ।

इन सब बातों के बाद विसर्जन जुलूस निकल पड़ा। इस जुलूस में सबसे आगे एक ट्रॉली पर माँ दुर्गा और गणेश जी की मूर्ति थी। उसके पीछे एक ट्रॉली में कार्तिकेय और महिषासुर की मूर्ति और फिर पीछे साउंड बॉक्स से लदे और ऑर्केस्ट्रा डांसरों वाली ट्रॉली थी, लेकिन विडंबना यह थी कि श्रद्धालुओं की भीड़ माँ दुर्गा वाली ट्रॉली के पीछे नहीं थी।

श्रद्धालुओं की भीड़ तो उन लड़की डांसरों के सामने लगी हुई थी। ये वही श्रद्धालु थे, जो कल तक माँ दुर्गा के नौ रूपों को पूज रहे थे और आज इन लड़कियों को ऐसी गिद्ध भरी निगाहों से देख रहे थे कि जैसे अभी उनको नोंच कर खा जाएंगे।

भक्ति और श्रद्धा के नाम पर यौन शोषण और मूक दर्शक समाज

अश्लील भोजपुरी गानों पर ये श्रद्धालु झूम रहे थे और लड़कियों को कभी गंदे इशारे करते तो कभी उनको ऐसे छू रहे थे जैसे भक्त किसी दैवीय पत्थर को छू कर इस संसार से तर जाने की कामना और लालसा करते हैं ।

गाँव-मोहल्लों के बीच से विसर्जन जुलूस निकल रहा था। लाउडस्पीकर की आवाज़ ऐसी की धरती हिल रही थी। ट्रॉली पर लड़कियां डांस कर रहीं थीं और उनके पीछे-पीछे सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ चल रही थी। जो नाच रहे थे, झूम रहे थे और कभी-कभी उन लड़की डांसरों का हाथ और कमर पकड़ ले रहे थे।

भक्ति और श्रद्धा और विसर्जन जुलूस के नाम पर होता यौन शोषण।

शायद वहां के लोगों और उन लड़कियों के लिए ये आम बात थी। लड़की डांसर हाथ छुड़ाकर अपना हाथ छुड़ा लेतीं और फिर से पहले की तरह ही डांस करने लगतीं। इसके बीच-बीच में माइक से जय माता दी, शेरा वाली मइया की जय के जयकार भी लग रहे थे और फिर वही अश्लील भोजपुरी गाने और लड़कियों का डांस और श्रद्धालु थिरक रहे थे।

जुलूस आगे बढ़ा तब तक बायीं तरफ से किसी और पूजा समिति का विसर्जन जुलूस आ रहा था। इस जुलूस में भी ट्रॉली पर उसी तरह से लाउडस्पीकर लदे हुए थे और लड़कियां डांस कर रहीं थीं।

विस्मृत होते हमारे मानवीय मूल्य और अट्टहास करता समाज

तभी मेरी नज़र एक ऐसी डांसर पर गई, जो एक 4 से 6 महीने की बच्ची को अपनी गोद में लिए ट्राली पर रखे कुर्सी पर बैठी थी। बच्ची के कान के पीछे लगभग 10-20 लाउडस्पीकर बज रहे थे और वो रो रही थी। इधर दोनों पूजा समिति की ट्रॉली अगल-बगल लग गई और दोनों ट्रॉली पर भागा-दौड़ी बढ़ गई।

शायद प्रतियोगिता का समय आ गया था, तब तक बच्ची को गोद में ली हुई डांसर ने नीचे अपने एक साथी को इशारा किया और बच्ची को उसको सौंप दिया और जा कर डांस करने लग गई। यह दृश्य बड़ा ही हृदयविदारक था । 

आर्केस्टा डांसर अपनी बच्ची को अपनी साथी को सौंप कर डांस करती हुई।

हमने एक माँ, बेटी, दुर्गा और भगवती को देखा था, लेकिन यहां इनकी पूजा नहीं की जा रही थी। शायद पूजा की कामना किसी भी लड़की को हो भी ना, उनको तो बस समान अधिकार और इज्जत चाहिए होती है, जो कि हमारा तथाकथित सभ्य और आदर्श समाज दे नहीं पाता है।

महिलाएं ही क्यों पवित्रता के दायरे में बंधी हुई हैं?

जब मैं इस जुलूस को देख रहा था, तो सोचा रहा था। क्या होता? अगर इसकी कोई समानांतर दुनिया होती? क्या होता अगर लड़कियां ऐसा जुलूस निकालतीं? ट्रॉली पर लड़कों से डांस करवातीं और खुद नीचे डांस करतीं शायद यह समाज उनके चरित्र पर सवाल उठा देता।

वैसे, अभी भी वही होता है। ट्रॉली पर डांस करने वाली लड़कियां गलत कहलाती हैं लेकिन ट्रॉली के नीचे डांस कर रहे लड़के, जो बीच-बीच में उन लड़कियों को गाली दे रहे होते हैं, उनका हाथ पकड़ रहे होते हैं, तो कभी उनकी छाती को भी गलत से छू रहे हों। 

लेकिन वो लड़के गलत नहीं हैं बल्कि समाज की नज़रों में ये लड़कियां गलत हैं, जो ट्रॉली पर नाच रहीं थीं । उन लड़कों को समाज कभी बहिष्कृत नहीं करेगा लेकिन इन लड़कियों को समाज कभी भी अपने बीच में जगह नहीं देगा ।

जुलूस ख़त्म हो गया था। उसके बाद हमने कोशिश की कि उस माँ से बात हो पाए, जो बच्चे को गोद में लेकर उस ट्रॉली पर बैठी थी, लेकिन उसने बात करने से इनकार कर दिया शायद उस ऑर्केस्ट्रा का मालिक उनके साथ था? वो बच्ची को गोद में लिए गाड़ी में बैठी और वहां से चली गई ।

उसके बाद हमारी मुलाकात एक दूसरे ऑर्केस्ट्रा की लड़की डांसर से हुई पहले तो वो कुछ भी बोलने से डर रही थी, लेकिन हमारे यह विश्वास दिलाने पर कि हम उसका नाम कभी भी बाहर नहीं आने देंगे, तब उसने हमें बताया कि उसका नाम सोनिया है।  (बदला हुआ नाम)

वैसे, वो लड़की इसलिए डर रही थी, क्योंकि उसे डर था कि अगर उसके मालिक को पता चला कि उसने हमें ये सब बात बताई है, तो उसका मालिक उस पर गुस्सा करेगा या उसे काम से निकाल देगा।

पशुओं की तरह जीवन जीने को मज़बूर ऑर्केस्ट्रा डांसर्स

वह आगे बताती है कि वह बंगाल की रहने वाली है और वह अपनी बड़ी बहन, माँ और भाइयों के साथ बिहार पहली बार आई है। उन लोगों ने सारण ज़िले के एकमा बाज़ार में किराए पर एक कमरा लिया है और उसी में सब लोग रहते हैं।

एक कमरे वो 6 लोग रहते हैं। वैसे ऐसा नहीं है कि सभी ऑर्केस्ट्रा डांसर अपना कमरा ले कर ही रहती हैं, अधिकांश मामले में ये डांसर ऑर्केस्ट्रा मालिक के दिए कमरे में ही रहती हैं।

सोनिया आगे बताती है कि बिहार का उसका अनुभव अच्छा नहीं रहा। यहां लोग बहुत बदतमीज़ी करते हैं। लोग भद्दी-भद्दी गालियां देते हैं, कई बार तो छाती को छू देते हैं या ब्लाउज में पैसा डालने लगते हैं।

एक बार तो प्रोग्राम से पहले हम टेंट के बने कमरे में कपड़े बदल रहे थे, तब एक आदमी टेंट के कपड़ो को फाड़ कर झांक रहा था।

आर्केस्टा डांसर का जन्म प्रमाण पत्र।

सोनिया पहले बंगाल में अपने मोहल्ले के बच्चों को डांस सिखाया करती थी, लेकिन पैसों की ज़रूरत ने उसे इधर दलदल में खींच लिया। सोनिया को अपना एक डांस क्लास खोलनी है। वो उसके लिए कुछ पैसे बचा रही है।

पेट की खातिर इस दलदल में चढ़ रही है महिलाओं की बलि

सोनिया ने बताया कि जो ऑर्केस्ट्रा का मालिक होता है, वो लड़की डांसर्स को लेने उनके घर जाता है और वहीं पैसों की बात होती है और फिर वो अपना सब कुछ छोड़ कर इस दलदल में चली आती हैं। सोनिया ने हमें अपना जन्म प्रमाणपत्र भी दिखाया, उसकी उम्र महज़ 18 वर्ष है लेकिन वो जब बिहार डांस करने आई थी, तब वो नाबालिग थी। वैसे, इन ऑर्केस्ट्रा में डांस करने वाली अधिकांश लड़कियां नाबालिग होती हैं।

वैसे, यह ऑर्केस्ट्रा आम ऑर्केस्ट्रा नहीं होता है। यहां उन लड़की डांसरों से उनका हर अधिकार छीन लिया जाता है। आप उनकी इच्छा के बगैर उनके साथ कुछ भी कर सकते हैं, कहीं भी छू सकते हैं, कुछ भी बोल सकते हैं और अगर उन्होंने विरोध किया जो कि आम तौर पर वो करती नहीं हैं, क्योंकि एक तो पेट ऊपर से मर्दों के अहंकार को ठेस पहुंचेगा, तो उनको उसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

शादियों में होने वाले जश्न के नाम पर फायरिंग तो शान की बात है। ऐसी फायरिंग में इन लड़कियों के मारे जाने की खबरें आती रहती हैं। 

बिहार की शादियों में ऑर्केस्ट्रा सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया है

. अप्रैल, 2021 में भोजपुर ज़िले के बिहिया गाँव में एक शादी समारोह के जश्न में एक लड़की डांसर को गोली मार दी गई।

ऐसी घटनाएं अक्सर सुनने को मिलती रहती हैं लेकिन ये घटनाएं मीडिया में खबर नहीं बन पाती हैं और ना ही दोषियों पर सही से कोई कानूनी कार्रवाई हो पाती है, क्योंकि ज़ल्दी कोई इन मामलों में एफआईआर नहीं करवाता है और ना ही गवाही देना चाहता है, क्योंकि समाज सभ्य समाज इन लड़कियों को अपने बीच और बराबर का नहीं समझता है।

इन लड़कियों के साथ कई बार रेप जैसे अमानवीय जघन्य अपराध भी होते हैं। जुलाई, 2021 में गोपालगंज ज़िले के ज्योति ऑर्केस्ट्रा ग्रुप की एक डांसर्स के साथ एक शख्स ने रेप किया। इस मामले को पहले अस्थानीय पुलिस रफा दफा करने में लगी हुई थी, लेकिन लड़की का वीडियो वायरल होने के बाद गोपालगंज के एससीपी ने मामले को संज्ञान में ले कर मामले में कारवाई सुनिश्चित करवाई।

सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक बनता आर्केस्टा।

बिहार में शादियों का महीना शुरु ही होने वाला है। अब खूब शादियां होंगी और खूब जश्न मनेगा और उसके साथ एक रिवाज़, जो बिहार में पिछले एक दशक से जोर पकड़ लिया है वो है शादियों में ऑर्केस्ट्रा का होना। शादियों में ऑर्केस्ट्रा नहीं तो कुछ नहीं नौबत यहां तक आ जाती है कि बाराती बिना ऑर्केस्ट्रा के शादी तक में नहीं जाना चाहते हैं ।

आपके पास कितना पैसा है। यह इस बात अनुमान लगाया जाता है कि आप शादी ऑर्केस्ट्रा कैसा लाए हैं।

बंगाल, असम, नेपाल और झारखंड से ना जाने हर साल कितनी ही लड़कियां बिहार के इस दलदल में गिरती हैं और शायद फिर इस दलदल से कभी निकल ही नहीं पाती हैं। इन लड़कियों के मानवाधिकार मानो बिहार की सीमा में प्रवेश करते ही समाप्त हो जाते हैं। 

बिहार पहुंचते ही लड़की समाज के लिए एक भोग की वस्तु बन जाती है, जिसका उपयोग उसका मालिक जैसे चाहे वैसे कर सकता है। ऐसे  ना जाने कितने ही ऑर्केस्ट्रा बिहार में बिना पंजीकरण के ही चल रहे हैं ।

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