बाल पंचायत भोपाल से बाल दिवस के मौके पर 14 साल की नन्ही किंतु महत्वपूर्ण प्रतिनिधि तान्या जाटव का एक सवाल है। 12 नंबर में स्थित मीरा नगर बीड़िए मल्टी में जहां वह रहती हैं, वहां की बस्तियों में पेपर बेचने, पन्नी बीनने और बंगलों पर कामकाज करने वाले ऐसे बच्चे रोज़ाना दिखाई देते हैं, जो स्कूल से दूर कामकाज की चिंता में डूबे हुए हैं।
क्या इन सब बच्चों को बाल दिवस मनाने का हक नहीं मिलना चाहिए?
पुनर्वास की आवश्यकता है
संस्था निवसिड बचपन द्वारा बाल संरक्षण के मुद्दे पर आयोजित कार्यशाला में आवाज़ उठाते हुए तान्या ने चिंता जताई कि बाल दिवस पर जब बच्चे आनंद उठा रहे होंगे, तब क्यों कुछ बच्चे शिक्षा से दूर बाल श्रम में लगे हुए होंगे?
तान्या ने नगर निगम और शिक्षा विभाग अमले के सामने यह सुझाव भी दिया कि अभिभावकों को नियमित काम दिलाए बिना और ज़रूरतमंद बच्चों का सही पुनर्वास किए बगैर कामकाजी बच्चों को शिक्षा से जोड़े रखना मुश्किल होगा।
राहुल को भी है चिंता
कुछ यही चिंता 12 साल के राहुल अटूदे के मन में भी है। वह अपने स्कूल आते-जाते चौराहों पर अखबार बेचते बच्चों को देखकर ना सिर्फ दुखी होता है, बल्कि उनसे बात करने और उनकी मजबूरियों को जानने की कई दफा कोशिश भी करता है।
राहुल बाल आयोग से लेकर जन प्रतिनिधियों से यही सवाल करता है कि आखिर चौराहों से गुज़रते ज़िम्मेदार लोगों और कुछ अखबार के मालिकों की नज़र इन बच्चों की तरफ क्यों नहीं जाती?
इस तरह की चिंता बाल पंचायत से जुड़े ललित, सोनिया प्रजापति, रौशनी, सरिता वर्मा और सुनैना जैसे कई बच्चों की है।
बाल श्रम का दाग कब हटेगा?
गौरतलब है कि इस वर्ष 20 नवंबर को बच्चों के हक में हुए अत्यंत महत्वपूर्ण “संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते” को 30 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं, जिसमें भारत सहित 192 देशों ने हस्ताक्षर कर बच्चों को पूर्ण संरक्षण और उनके अधिकार देने की बात मानी थी।
ऐसे में यह अवलोकन किए जाने का समय है कि इतने वर्षों में हमने अपनी 40 प्रतिशत बाल आबादी के साथ कितना न्याय किया है?
अंततः हम सब चांद पर तो होंगे लेकिन बाल श्रम का यह दाग विकास रूपी चांद को हमेशा बदनुमा बनाए रखेगा। देश के बच्चों से जुड़े कानूनों में हमने बच्चों को अलग-अलग उम्र के आधार पर इतना बांटा है कि उससे बच्चों को न्याय दिला पाने में हमने खुद ही अपने हाथ बांध लिए हैं।
बाल श्रम से निपटना एक चुनौती है
बाल श्रम विरोधी अभियान मप्र के संजय सिंह के अनुसार कामकाज और बालश्रम में लगे शिक्षा से दूर सभी बच्चों की सही जनगणना किए बिना वास्तविक मायने में उन्हें खुशी हासिल नहीं हो सकती है।
सतत विकास लक्ष्यों में वर्णित लक्ष्य 8.7 के अनुसार भारत को 2025 तक बाल श्रम के सभी रूपों की पूर्ण समाप्ति का लक्ष्य सरकारों के सामने है। ऐसे में बाल श्रम की चुनौती से निपटना हम सब की सामूहिक जवाबदेही बन जाती है।
नोट- लेखक बच्चों के मुद्दों पर सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता हैं |
संपर्क- 222 रोहित नगर फेस 01 बावड़ियाकला, भोपाल, मप्र (9131869074)