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क्या है ‘नेट जीरो’ : भारत कैसे हासिल करेगा सफलता अपने लक्ष्य में?

क्या है 'नेट जीरो' : भारत कैसे हासिल करेगा सफलता अपने लक्ष्य में?

स्कॉटलैंड के ग्लासगो में कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज की 26वी मीटिंग में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो बातें विश्व के साथ साझा कीं, निश्चित ही वो जलवायु परिवर्तन को लेकर भारत के विजन को दर्शाती हैं।

दुनिया के नामचीन नेताओं की इस हाईप्रोफाइल बैठक में मोदी ने देश और दुनिया को “वन वर्ड मूवमेंट” के रूप में “लाइफ” की एक नई परिभाषा दी। उन्होंने कहा कि “लाइफस्टाइल फॉर एनवायरमेंट” यह एक शब्द “एक विश्व” का मूल आधार बन सकता है।

वो दुनिया को यह यकीन दिलाने से भी नहीं चूके कि कॉप21 भारत के लिए सेंटीमेंट था, कमिटमेंट था, वह केवल एक समिट नहीं थी। इस बात की भी चर्चा उन्होंने की कि भारतीय रेल्वे 2030 तक नेट जीरो एमिशंस के लक्ष्य को हासिल कर लेगा और इसके साथ ही उन्होंने इंटरनेशनल सोलर अलायंस एवं कोलिशन फॉर डिजास्टर रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में भारत के योगदान का भी जिक्र किया।

क्लाइमेट चेंज को लेकर हो रहे इस वैश्विक मंथन में, भारत का नए भविष्य के निर्माण में क्या योगदान होगा? इससे भी दुनिया को रूबरू कराया। उन्होंने सम्पूर्ण विश्व को पंचामृत का एक नया फार्मूला दिया। उन्होंने 2030 को डेडलाइन मानते हुए चार घोषणाएं की।

2030 तक भारत अपनी नॉन फॉसिल एनर्जी कपैसिटी को 500 गीगावाट तक पहुंचाएगा। दूसरा 2030 तक भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का आधा हिस्सा अक्षय ऊर्जा स्रोतों से पूरा करेगा। तीसरा अब से लेकर 2030 तक के कुल प्रोजेक्टेड कार्बन एमिशन में भारत एक बिलियन टन की कमी लाएगा। चौथा 2030 तक भारत, अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन इंटेंसिटी को 45 प्रतिशत से भी कम करेगा।

इन सब में सबसे महत्वपूर्ण 2070 तक भारत नेट जीरो के लक्ष्य को हासिल करेगा। ऐसा लगता है कि विगत दो-तीन वर्षों से विकसित देशों ने नेट जीरो को लेकर ‘जो हाय तौबा मचा रखा था’ यह उसका नतीजा है। अमेरिका और यूरोपियन यूनियन ने नेट जीरो एमिशन को प्राप्त करने के लिए 2050 का टारगेट लिया है और चाइना ने 2060 तक इस लक्ष्य को पूरा करने का समय लिया है।

पिछले दो-तीन वर्षों में बहुत से बुद्धिजीवियों की एक आम राय यही रही है कि भारत को फिलहाल ‘नेट जीरो’ को लेकर एक स्ट्रिक्ट डेडलाइन से बचना चाहिए, क्योंकि भारत “जलवायु न्याय” के सिद्धांत का पक्षधर है। कॉमन बट डिफरेंटिएटेड रिस्पांसिबिलिटी (सी बी डी आर प्रिंसिपल) में विश्वास करने वाले भारत का मानना है कि वर्तमान में हो रहे जलवायु परिवर्तन का कारण विकसित देशों द्वारा भूतपूर्व में किया गया कार्बन उत्सर्जन है।

इस कारण भी बुद्धिजीवियों का एक बड़ा धड़ा इस बात से इत्तेफाक रखता है कि जलवायु परिवर्तन की इस जंग में भारत अपने विकास की आहुति क्यों दें, परन्तु एक धारणा यह भी है कि जलवायु परिवर्तन से आने वाली विभीषिका यह देख कर तो नहीं आएगी कि किस देश की गलती थी और किसकी नहीं?

इस कारण भारत को भी अपने लिए एक डेडलाइन सेट करनी चाहिए, फिलहाल भारत उन चंद गिने-चुने देशों में से एक है, जो अपने इंटेंडेड नेशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशंस को पूरा करने के लक्ष्य की ओर पूरी तरह से अग्रसर हैं। वर्तमान में कार्बन उत्सर्जन के मामले में भारत चौथे नंबर पर आता है बावजूद इसके भारत का प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन अन्य देशों की तुलना में काफी कम है।

मोदी ने क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर किए गए खोखले वादों पर भी चोट की। पूर्व औद्योगिक स्तर की तुलना में वैश्विक ताप वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीचे रखने की इस कवायद में विकसित देशों द्वारा दिया गया सौ अरब डॉलर इस दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता हैं परंतु इस पर अब तक अमल नहीं हो पाया है। 

इससे विकासशील देशों की पहुंच क्लीन एवं ग्रीन टेक्नोलॉजी तक हो पाएगी। इस कारण इसे बढ़ा कर एक ट्रिलियन डॉलर किया जाना चाहिए। शून्य कार्बन उत्सर्जन की समयबद्ध प्रतिबद्धता की घोषणा के बाद भारत पर जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर वैश्विक दबाव कम होगा परंतु जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर, इस अहम से वयम की सोच रखने वाली यात्रा में,भारत के द्वारा लिया गया यह साहसिक कदम जोखिमों भरा है।

वैसे, तो यह सर्वविदित है कि भारत धरती को बचाने के लिए तब भी सौ प्रतिशत प्रतिबद्ध था, जब इसने अपने लिए नेट जीरो का लक्ष्य नहीं निर्धारित किया था, परन्तु नेट जीरो कमिटमेंट से भारत ने विश्व को यह संदेश दिया है कि बात जब जलवायु परिवर्तन की हो, तो वह पीछे नहीं हटने वाला है। 

इसके साथ ही उसने पूरी दुनिया को यह भी बताया है कि ‘नेट जीरो कमिटमेंट का मतलब एक विकासशील देश के उज्ज्वल भविष्य से समझौता नहीं अपितु एक ज़िम्मेदार देश का विश्व के स्वर्णिम एवं सुरक्षित भविष्य के लिए लिया गया बेबाक फैसला है।’

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