Site icon Youth Ki Awaaz

सड़क हादसों को रोकने में ड्राईविंग लाइसेंस की क्या महत्वपूर्ण भूमिका है?

सड़क हादसों को रोकने में ड्राईविंग लाइसेंस की क्या महत्वपूर्ण भूमिका है?

इसी वर्ष फरवरी माह में केन्द्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि ‘भारत में कोविड महामारी से अधिक सड़क हादसों की स्थिती गंभीर है, क्योंकि हम सड़क हादसों में दुनिया के नम्बर एक देश है।’

यह बात नितिन गडकरी ने बिल्कुल ठीक कही दुनिया भर में होने वाले हादसों में हुई मौतों का आंकड़ा देखें, तो 11 प्रतिशत मौतें अकेले भारत में हुई हैं। इसका मतलब है कि दुनिया के कुल सड़क हादसों में मरने वाले लोगों के हिसाब से दसवां भाग अकेले भारत में हुई मौतों का है।

भारत में प्रतिवर्ष डेढ़ लाख से अधिक लोगों की जान सड़क हादसे में चली जाती है। यदि हम प्रतिदिन के हिसाब से यह आंकड़ा देखें, तो 415 लोग हर रोज़ अपनी जान गंवा देते हैं।

देश में हुई कुल मौतों में 78 फीसदी केवल दो पहिया वाहन या सड़क पर पैदल चलने वाले लोगों सहित साइकिल चलाने वाले लोगों की होती है। 

भारत में ट्रैफिक कानून अन्य देशों की तुलना में सख्त है लेकिन इनका तरीके से पालन ना होना देश में होने वाले सड़क हादसों की सबसे बड़ी वजह है। हम हादसों की अन्य वजहों पर गौर करें, तो इनमें प्रमुखता से तेज़ गति से वाहन चलाना, शराब पीकर गाड़ी चलाना, वाहन चलाते वक्त फोन पर बात करना आदि कारण शामिल हैं।  

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, 80 फीसदी से अधिक हादसे तेज़ गति से वाहन चलाने के कारण होते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि इन सड़क हादसों को रोकने में क्या ड्राईविग लाइसेंस की कोई अहम भूमिका है?

हम इस बात को ऐसे समझते हैं कि ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने के लिए हमें सड़क सुरक्षा नियमों की पूर्ण जानकारी लेनी पड़ती है। उनसे हमें ज़िम्मेदारी के साथ इन नियम कानूनों की महत्ता का एहसास होता है, जो हमें एक ज़िम्मेदार नागरिक और एक कुशल चालक बनने में मदद करते हैं। 

अगर कोई व्यक्ति बिना सड़क सुरक्षा नियमों की जानकारी के और बिना ड्राइविंग लाइसेंस के गाड़ी चलाए, तो यह वैसा ही होता जैसे बंदर के हाथ में उस्तरा!

लेकिन क्या सभी लाइसेंस धारक ट्रैफिक नियमों का सख्ती से पालन करते हैं और अगर नहीं करते हैं तो इसके पीछे मुख्य क्या वजह है? यह एक महत्वपूर्ण शोध का विषय है। 

ड्राइविंग लाइसेंस पाना, क्या बिना सड़क सुरक्षा नियमों की जानकारी के संभव है?

इस सवाल का जवाब है, हां। भारत जैसे देश में, जहां दुनिया के कुल मोटर वाहनों के मात्र 1 फीसदी ही मोटर वाहन हैं लेकिन दुनिया भर के सड़क हादसों में 10 फीसदी हिस्सेदारी भारत की ही है। हमारे देश में ड्राइविंग लाइसेंस बिना टेस्ट के अवैध तरीके से पाना एकदम आसान और संभव है, जो कि देश में होने वाले सड़क हादसों की प्रमुख वजहों में से एक है। 

कैसे होता है ड्राइविंग लाइसेंस का खेल?

हमारे देश में किसी भी आवेदक को वैध तरीके से लाइसेंस प्राप्त करने के लिए दो चरणों में टेस्ट देना होता है और दोनों में सफल होना अनिवार्य होता है।

पहले चरण में उत्तीर्ण होने पर आवेदक को लर्नर लाइसेंस दिया जाता है, जिसकी वैधता 6 महीने तक होती है। मगर इसमें मोटर वाहन चलाते वक्त लाइसेंस धारक को अस्थाई लाइसेंस प्राप्त व्यक्ति को वाहन पर साथ बैठाना अनिवार्य होता है और इसके साथ ही वाहन में आगे और पीछे “L” लिखा होना अनिवार्य होता है। 

इन सब नियम कानूनों का पालन करने पर ही वह व्यक्ति वाहन चला सकता है लेकिन इन सबके इतर हकीकत यह है कि हम में से कई लोग इन नियमों का पालन करना तो दूर बिना टेस्ट दिए ही पैसे देकर लाइसेंस बनवा लेते हैं और यह सब यातायात विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों और दलालों के कारण संभव हो पाता है।  

हम एक उदाहरण से इस स्थिति को समझने की कोशिश करते हैं। अगर आप बिहार में वाहन चलाने वाले अधिकांश व्यक्तियों के लाइसेंस पर गौर करेंगे और लोगों से बात करेंगे, तो आपको पता चलेगा कि ज़्यादातर लाइसेंस फर्जी तरीके से जारी किए गए हैं।

यह यहां की हकीकत है। बिहार की राजधानी पटना के रहने वाले अमरनाथ बताते हैं कि ‘मैंने पटना में लाइसेंस बनवाने के लिए तय शुल्क से करीब दो हज़ार रुपये अधिक दलाल को दिए और मुझे घर बैठे ही लाइसेंस मिल गया। ‘

वही मेरे एक रिश्तेदार ने कानून का पालन करते हुए नालंदा ज़िले से लाइसेंस बनवाया, तो उसे तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ा। वे आगे कहते हैं, “यहां दो पहिया वाहनों के लिए अट्ठारह सौ रुपये तो वही दो और चार पहिया वाहनों के लिए लगभग इक्कतीस सौ रुपये सरकार की ओर से तय किए गए हैं।

यह तो हो गई जायज यानि सरकार द्वारा तय शुल्क की बात और अब जान लीजिए एजेंट्स द्वारा तय शुल्क को, जो पांच से छः हज़ार रुपये तक होता है। यह रकम पटना, नालंदा समेत अन्य ज़िलों में भी दलालों द्वारा ली जाती है, जिनमें उनकी हिस्सेदारी के साथ-साथ वहां के यातायात विभाग के आला अधिकारियों का हिस्सा भी शामिल होता है।”

नालंदा डीटीओ पटना डीटीओ में क्या कुछ हालात अलग है

दरअसल, पटना डीटीओ में भी ऐसा ही एक मामला सामने आया है, जहां अभ्यर्थी टेस्ट की तय तारीख से पहले ही सफल करार दिए गए थे।

वहीं नालंदा का हाल यह है कि यहां अगर आप स्वयं जाकर लाइसेंस बनवाने का प्रयास करते हैं, तो पहले आपको गाड़ी चला कर टेस्ट देने को कहा जाएगा लेकिन उसके बाद आपको फेल या पास का बिना कोई प्रमाण पत्र दिए ही आपको यह कह कर वापस भेज दिया जाएगा कि आपका टेस्ट हो गया है।  

सरकारी तंत्र की नौकरशाही एवं उदासीनता

अगर आप इसकी शिकायत ज़िला परिवहन पदाधिकारी से लेकर ज़िलाधिकारी तक करते हैं, तब भी आपको कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया जाता है। एक आवेदक ने मुख्यमंत्री को पत्र (ई-मेल) के माध्यम से इस प्रकरण और चल रहे भ्रष्टाचार की जानकारी दी, जिसे सीएम कार्यालय द्वारा ज़िला अधिकारी को जांच हेतु प्रेषित भी किया गया मगर इन सब चीजों और कार्यवाहियों का परिणाम आया वही ढाक के तीन पात!

अब सवाल यह है कि कोई लाइसेंस के इंतज़ार में कब तक सड़क पर वाहन ना चलाए और अगर लाइसेंस कानूनी तरीके से बनवाना चाहे, तो इसकी जवाबदेही किसकी है? कौन सुनिश्चित करेगा कि उसे बिना कोई रुकावट, तय प्रक्रिया के अनुसार लाइसेंस प्रदान किया जाए, ताकि सड़क सुरक्षा के साथ लोगों में सिस्टम पर भरोसा बना रहे और सड़क हादसों में भी कमी आए।  

नोट- यह लेख कई लोगों के अनुभव और बिचौलियों से बातचीत पर आधारित है।

_________________________________________________________________________________________________

नोट- आकाश, YKA राइटर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम सितंबर-नवंबर 2021 बैच के इंटर्न हैं। इन्होंने इस आर्टिकल में, वर्तमान में हो रही सड़क हादसों में मौतों एवं ड्राइविंग लाइसेंस की महत्वपूर्ण भूमिका एवं यातायात विभाग की निष्क्रियता, कमर्चारियों एवं अधिकारियों में फैले भ्रष्टाचार आदि पहलुओं पर प्रकाश डाला है।

Exit mobile version