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आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के समक्ष चुनौतियाँ

आंगनवाड़ी का नाम सुनते ही दिमांग में यहीं बात आती है, एक खिचड़ी स्कूल! जर्जर भवन! एक जगह जहां टैबलेट मिलती है और बच्चों व महिलाओं के इंजेक्शन लगाया जाता है। देश के विभिन्न राज्यों में वहां के लोगों के लिए आंगनवाड़ी का नाम अलग-अलग हो सकता है परंतु इसकी स्थापना बहुत ही खास उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हुई थी। छोटे व आदिवासी बाहुल्य राज्यों के बच्चों में भूख एवं कुपोषण की समस्या को दूर करने, महिलाओं एवं बच्चों में स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याओं को दूर करने एवं शालापूर्व शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा 2 अक्टूबर 1975 को बांसवाड़ा के गढ़ी नामक स्थान से समेकित बाल विकास सेवाओं (Integrated Child Development Services, ICDS) का शुभारंभ हुआ एवं यहीं से आंगनवाड़ी नामक संस्थान जन्म हुआ। विगत् 46 वर्षों में समय के साथ आंगनवाड़ी के प्रारूप एवं उद्देश्यों में बदलाव आया है। आंगनवाड़ियाँ पहले से ज्यादा संगठित और मजबूत हुई हैं। सरकारी योजनाओं की संख्या में भी काफी बढ़ोतरी हुई है। आज आंगनवाड़ियों के माध्यम से बच्चों एवं महिलाओं के लिए निम्न प्रकार की सेवाओं एवं योजनाओं को क्रियान्वित किया जा रहा है-

उपरोक्त कार्यों के अलावा अन्य छोटे-बड़े कार्य भी आंगनवाड़ी के माध्यम से क्रियान्वित किए जातें हैं। इन कार्यों को क्रियान्वित करने के लिए एक आंगनवाड़ी में मुख्य रूप से 3 महिलाओं को नियुक्त किया गया है- आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका, एवं आशा सहयोगिनी। इन 3 महिलाओं के अलावा ए.एन.एम. भी समयानुसार स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने के लिए आंगनवाड़ी केंद्र पर आती रहती हैं। कार्यकर्ता आंगनवाड़ी केंद्र पर होने वाली गतिविधियों को नेतृत्व प्रदान करती है। आंगनवाड़ी केंद्र पर होने वाली गतिविधियों के अलावा उन्हे पंचायत, ग्राम सभा, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर होने वाले कार्यक्रमों में भी भाग लेना होता है। कार्य की अधिकता के कारण इन्हें बहुत सारी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है। मैं संक्षिप्त में इनकी चुनौतियों एवं समस्याओं पर आपका ध्यान आकर्षित कर रहा हूँ।

अत्यधिक कार्यभार- कार्यकर्ता की दिनचर्या पर नजर डाले तो उनके दैनिक कार्य का बड़ा समय शालापूर्व शिक्षा की गतिविधियों, आंकड़ो के रखरखाव, समुदाय से संबंधित कार्यों एवं अन्य स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिए आशा सहयोगिनी की सहायता करने में जाता है। बहुत सारे ऐसे कार्य भी होते है जो आकस्मात आते है जिन्हें तुरंत पूरा करना अत्यंत आवश्यक होता है। अत्यधिक कार्यभार, कार्य के अलग-अलग प्रारूप एवं कार्यों का समुचित प्रबंधन नहीं होने के कारण कार्यकर्ता को बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

निराकरणः यदि कार्य का विभाजन, कार्यों एवं समय का प्रबंधन करने का लगातार प्रशिक्षण दिया जाता है तो कार्यकर्ताओं का काम आसान होगा एवं उनके समक्ष चुनौतियाँ भी कम होंगी।

अत्यधिक रिकार्ड का रखरखाव- आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को कुल 15 से 17 प्रकार के रजिस्टरों एवं फार्मों का रख-रखाव सुनिश्चित करना पड़ता है। ये रजिस्टर कुछ इस प्रकार से हैं- सर्वे रजिस्टर, टीकाकरण रजिस्टर, ए.एन.सी. रजिस्टर, पी.एन.सी. रेफरल रजिस्टर, डायरी एवं विजिट बुक, स्वयं सहायता समूह रजिस्टर, अभिभावक मीटिंग रजिस्टर, पी.एम.वाई का फार्म, ग्रोथ मोनिट्रिंग रजिस्टर आदि। खासकर इन रजिस्टरों का रख रखाव उन कार्यकर्ताओं के लिए चुनौतीपूर्ण हो जाता है जो ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं है जो कि 25 से 30 साल से काम कर रही है एवं जिनका पर्याप्त क्षमतावर्धन भी नही हुआ है।

निराकरणः इस डिजिटलीकरण के दौर में मोबाइल एप्लिकेशन बेस्ड रेकॉर्ड रखने की पदत्ति को अपनाया जाए एवं सभी कार्यकर्ताओं का लगातार क्षमतावर्धन किया जाए तो आंकड़ो का रखरखाव आसान होगा एवं रजिस्टरों की संख्या में भी कमी आएगी।

अपर्याप्त मानदेयः  कार्यकर्ताओं को कार्य के बदले मिलने वाला मानदेय बहुत ही कम है। अपर्याप्त मानदेय आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की एक बहुत बड़ी समस्या है। लगभग सारी कार्यकर्ताएं अधिक मानदेय के लिए शिकायत करती रहती हैं। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को मानद् कार्यकर्ता के रूप में नियुक्त किया जाता है इसलिए उन्हें मानदेय दिया जाता है ना की न्यूनतम दैनिक मजदूरी या मासिक वेतन। राजस्थान के अंदर एक कार्यकर्ता को 6000 से 7500 रुपये के बीच में मानदेय दिया जाता है जो किसी भी सरकारी कार्यों को करने वाले कर्मचारी से बहुत हीं कम है। इन्हें ब्लॉक या सेक्टर स्तर होने वाली मीटिग्स में आने पर टी.ए./डी.ए. भी नहीं दिया जाता है वहीं सहायिका एवं आशा सहयोगिनी को 2000 से 3000 रुपये के बीच मानदेय दिया जाता है। उनके कार्यभार को देखते हुए यह धनराशि बहुत ही कम है। कई कार्यकर्ता तो ऐसी भी है जो स्वयं गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी में आती हैं, इस स्थिति में उनके जीवन यापन के लिए इतना मानदेय पर्याप्त नहीं है। 

निराकरणः कार्यकर्ता के लिए दिन में न्यूनतम 6 घंटे कार्य करने का प्रावधान है अतः पूरे दिन का समय देने के बदले मानदेय कम से कम इतना तो अवश्य हो की वो परिवार के आय में अपना योगदान दे सके इन्हें यात्रा व भोजन व्यय भी दिया जाए  जिससे कि इनके स्वयं एवं परिवार का जीवनयापन आसान हो पाए।

आंगनवाड़ी संबन्धित सामग्रियों की असमय आपूर्ति- आंगनवाड़ी के विभिन्न गतिविधियों में प्रयोग होने वाली सामग्रियाँ जैसे की- पोषाहार, विटामिन, आयरन, फॉलिक एसिड एवं डीवोर्मिंग की टैबलेट, शिक्षण सामग्री, सूचनार्थ पेम्पलेट का समय पर केंद्र पर नहीं पहुँच पाने के कारण कार्यकर्ता को कार्यों को करने में देरी होती है एवं उन्हे परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

निराकरणः सामग्रियों की चेन सप्लाई को सही कर के सामग्रियों को नियत समय आंगनवाड़ी केंद्र पर पहुंचाया जा सकता है जिससे कार्य समय पर होंगे एवं कार्यकर्ता का काम भी आसान होगा।

बुनियादी ढांचे का अभाव- यदि आंगनवाड़ी केंद्र को ध्यान से देखें तो हम पाते हैं कि अधिकांश केन्द्रों में-

उपरोक्त सभी ढांचागत सुविधाएं कार्यस्थल के वातावरण को कार्य करने योग्य बनाती हैं जिससे काम करना हीं आसान नही होता अपितु कार्य की उत्पादकता भी बढ़ती हैं।

निराकरणः बुनियादी ढांचे में बदलाव लाकर कार्यकर्ता की चुनौतियों को कम किया जा सकता है एवं केंद्र पर आने वाले बच्चों, अभिभावकों, महिलाओं एवं समुदाय के अन्य लोगों को केंद्र की ओर आकर्षित किया जा सकता है।

शालापूर्व शिक्षा संबन्धित प्रशिक्षण की कमी-

3-6 वर्ष के बच्चों को शालापूर्व शिक्षा प्रदान करना तथा बच्चों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, रचनात्मक एवं भाषा विकास को सुनिश्चित करना आंगनवाड़ी (ICDS) का प्रमुख उद्देश्य हैं तथा इस कार्य का सारा उत्तरदायित्व कार्यकर्ता पर है। परंतु अत्यधिक कार्यभार होने एवं शालापूर्व शिक्षा के विभिन्न पहलुओं की कम समझ होने के कारण कार्यकर्ता शालापूर्व शिक्षा की गतिविधियों को पूरे समय नहीं कर पातीं हैं।

निराकरण: शालापूर्व शिक्षा के पाठ्यक्रम में बदलाव लाकर, बुनियादी ढांचे (जैसे- खेलने की सामग्री, रंगीन पुस्तकें, ड्राइंग एवं पेंटिंग की सामग्री आदि) में परिवर्तन लाकर एवं कार्यकर्ताओं मे लगातार प्रशिक्षण के माध्यम से पाठ्यक्रम की समझ बनाकर नियोजित तरीके से लागू किया जाए तो इससे कार्यकर्ता का काम भी आसान होगा एवं बच्चों का सर्वांगीण विकास भी सुनिश्चित किया जा सकेगा।

अपर्याप्त पर्यवेक्षण एवं मार्गदर्शन- कार्यकर्ताओं की चुनौतियों को कम करने एवं काम में गुणवत्ता लाने के लिए सतत् पर्यवेक्षण एवं उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। पर्यवेक्षकों को भी चाहिए की वो कार्यों का सही तरीके से निरीक्षण करें एवं कार्यकर्ता को उचित मार्गदर्शन दें एवं उन्हे प्रेरित करें न की उनके कार्यों में कमी निकालें एव सार्वजनिक रूप से अपमानित करे या उन्हें वेतन रोकने की धमकी दे। ऐसा प्रायः देखा गया है की पर्यवेक्षक आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के काम में कमी निकालती है एवं सुधारने के लिए आदेशित करती है।

निराकरणः यदि पर्यवेक्षकों का आदेश सहयोग एवं प्रेरणा में बदल जाता है तो काम में गुणवत्ता भी आएगी एवं कार्यकर्ताओं की चुनौतियाँ भी कम होंगी। कार्यकर्ताओं को पर्यवेक्षकों के स्थान पर मेंटर की आवश्यकता है।

सामुदायिक भागीदारी की कमी- आंगनवाड़ी गाँव एवं समुदाय की संपत्ति है न की सरकार की- ऐसी भावना समुदाय के जेहन में होना आवश्यक है। ऐसा देखा जाता है की गाँव के लोगों को आंगनवाड़ी केंद्र से बहुत ही कम मतलब रखते है। असामाजिक तत्व आंगनवाड़ी की संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं। सामाजिक विकास की योजनाओं में समुदाय की भागीदारी कम होती और लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा नहीं लेते। आंगनवाड़ी संबन्धित समस्या के निवारण के लिए गाँव के लोग मदद के लिए नहीं आते। इन सब का प्रभाव कार्यकर्ता के काम पर भी पड़ता है एवं उनका काम अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो जाता हैं।

निराकरणः सामुदायिक सहभागिता कार्यक्रम चलाकर यदि लोगों को आंगनवाड़ी केंद्र से जोड़ा जाए तो सही अर्थ में विकास संभव हो पाएगा। यह आवश्यक है की आंगनवाड़ी को लेकर समुदाय में खासकर महिलाओं में अपनत्व की भावना विकसित की जाए एवं इसकी बागडोर उनके हाथ में ही दे दी जाय। इसके लिए हर आंगनवाड़ी पर विद्यालय प्रबंधन समिति की तरह आंगनवाड़ी प्रबंधन समिति की भी स्थापना होनी चाहिए।

आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ICDS एवं समुदाय को जोड़ने का कार्य करती है यह दोनों के बीच एक कड़ी का काम करती है। ये लाभार्थियों के घर तक ICDS की सेवाएँ पहुँचाने में सक्रिय भूमिका निभाती हैं परंतु महिला एवं बाल विकास विभाग को भी चाहिए की वो कार्यकर्ता के मानदेय संबंधी समस्या को दूर करे एवं उनके कार्यों एवं जिम्मेदारियों के संबंध मे लगातार प्रशिक्षण के माध्यम से सटीक ज्ञान प्रदान करें ताकि इनकी चुनौतियाँ कम हो सकें एवं वो अपने काम को प्रभावी तरीके से कर पाएँ।

इस कार्य में गैर सरकारी संस्थाओं एवं निजी कंपनियों के CSR की मदद ली जा सकती है। कुछ संस्थाओं जैसें जतन एवं सेवा मंदिर ने हिन्दुस्तान जिंक के CSR की मदद से कार्यकर्ताओं, आंगनवाड़ियों, एवं सामुदायिक भागीदारी को मजबूत बनाया है, इस क्षेत्र में नवाचार किया है एवं ICDS की सेवाओं को अच्छे तरीके से धरातल पर उतारा है। परंतु यह बहुत ही सीमित क्षेत्र में है एवं इसका विस्तार सभी आंगनवाड़ी केन्द्रों तक होना आवश्यक है। महिला एवं बाल विकास विभाग को चाहिए की वो इन क्षेत्रों में होने वाले नवाचारों एवं अच्छे कार्यों को अपनाएं एवं नीतियों में बदलाव लाकर ICDS की कार्य प्रणाली को मजबूत बनाए। जब तक की नीतियों में बदलाव नहीं लाया जाता एवं कार्यकर्ता में नेतृत्व क्षमता का विकास नहीं किया जाता तब तक ICDS की योजनाओं को प्रभावी तरीके से लाभार्थियों तक नहीं पहुंचाया जा सकता है।

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