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कुछ अनकहे जज़्बात

ये पेड़, ये पानी, ये हवा, ये धरती, लगता है जैसे आज सब हमे उनसे मिलवाना चाहते हो।  ये सरपट सरपट चलती गाड़ी जैसे कोई नई मंजिल दिखा रही हो।  ये बीतता वक्त जैसे नया समय बना रहा हो।  ये भीनी भीनी चांद की रोशनी जैसे नए सपने बुन रही हो।  

उनसे मिले तो लगा जैसे तहरी कस्ती को बहाव मिल गया हो। उनको देखा तो लगा जैसे आंखों को नजारा मिल गया हो।      उनसे दो शबद क्या सुने तो लगा जैसे सब मुमकिन हो गया हो। उनका ऐसे आना कोई तोहफे से कम नहीं था। दिल किया उनको अपने पास ही रोक लू। हाथ पकड़ कर सबके सामने इजहार कर दू।  आज लगा जैसे उनका यूंही खयाल रख लूं।

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