साल 2021 की तमाम अच्छी-बुरी चीज़ों के बीच अब हम साल 2022 की दहलीज़ पर खड़े हैं। नया साल दस्तक देने को है और इन सबके बीच प्लेटफॉर्म के तौर पर ‘Youth Ki Awaaz’ के लिए जो बात सबसे अच्छी रही है, वो यह कि YKA कम्यूनिटी ने जमकर ज़रूरी मुद्दों पर अपनी आवाज़ बुलंद की।
उन्हीं बेझिझक आवाज़ों में से आज हम साल 2021 की 21 बेझिझक आवाज़ों के बारे में बात करने वाले हैं, जिन्होंने खामोश ना रहकर उन मसलों पर बात करना मुनासिब समझा, जिन पर अमुमन पब्लिक डोमेन में कम बात होती है। आइए नए साल के जश्न से पहले उन 21 YKA मेंबर्स की स्टोरीज़ को पढ़ते हैं और जानने की कोशिश करते हैं कि क्यों आवाज़ बुलंद करना ज़रूरी है।
1. पूरे देश में बच्चों के बीच ड्रग्स के सेवन का प्रचलन आज एक गंभीर मसला बन चुका है। दिनों दिन इसके सेवन करने वालों की संख्या में बहुत तेज़ी से बदलाव देखे जा रहे हैं।
अमन कुमार वर्मा की और स्टोरीज़ यहां पढ़ें।
2. लड़कियों को भीड़, बस, ट्रेन और अंधेरे की आड़ में छू लेना, उन्हें असहज कर देना बहुत आसान है फिर होली तो त्यौहार ही छूने, रंग लगाने का है।
सृष्टि तिवारी की और स्टोरीज़ यहां पढ़ें।
3. बाल संरक्षण आयोग की एक रिपोर्ट बताती है कि देश मे हर आठ मिनट में एक बच्ची का अपहरण होता है। हर साल 60 हजार से भी अधिक बच्चियों को देह व्यापार में धकेल दिया जाता है, जिनमें एक तिहाई के करीब कम उम्र की बच्चियां शामिल हैं।
रचना प्रियदर्शिनी की स्टोरीज़ यहां पढ़ें।
4. सिर्फ अपनी सत्ता बचाने के लिए इंदिरा गाँधी ने इमरजेंसी नहीं लगाई लेकिन उसके पीछे कई सारे हालात थे जो कि 1971 के बाद से ही देश पर असर डालने लगे थे।
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इमरजेंसी के लिए क्या इंदिरा गॉंधी के साथ ही विपक्ष भी ज़िम्मेदार था?
frank John Walter on February 10, 202125 जून 1975 को आज़ाद भारत का काला दिन माना जाता है, क्योंकि 44 वर्ष पूर्व इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने इमरजेंसी की घोषणा की थी। आज भी जब इमरजेंसी के उस दौर को याद किए जाने पर, यही समझा जाता है कि श्रीमती गाँधी ने अपनी सत्ता बचाये रखने के लिए […]
फ्रैंक जॉन वॉल्टर की स्टोरीज़ यहां पढ़ें।
5. बात यह मायने रखती है कि मैं किस शरीर और किस मानसिकता के ज़्यादा करीब हूं? मेरी योनि या मेरा लिंग इस बात की कभी पुष्टि नहीं कर सकता कि आप मुझे लड़के या लड़की के रूप में जानेंगे। वैसे, तो ये दोनों शब्द ही समाज के लिए अभिशापित हैं। क्या ऐसा हो सकता था, लोग इंसान को जानते उस लड़का या लड़की को नहीं।
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एक समलैंगिक युवा का अपने माता-पिता के लिए एक खुला पत्र
Imran Khan on June 21, 2021प्रिय माँ-पापा,दीदी और भैया से यह क्यों पूछा जाता रहा बचपन से कि कौन सी फ्रॉक लेनी है और कौन सी टीशर्ट? मुझे अपनी मर्ज़ी के कपड़े चुनने की आज़ादी आप लोगों ने मुझ से क्यों छीन रखी थी? अगर मेरा मन भी भाई की तरह जीन्स और टीशर्ट पहनने का था, तो मुझे फ्रॉक […]
इमरान खान की स्टोरीज़ यहां पढ़ें।
6. भारत में कोरोना काल में जब बच्चों की शिक्षा को ऑनलाइन पद्धति सो जोड़ा गया, उस वक्त लड़कियों के लिए अपनी पढ़ाई जारी रखना एक चुनौती बन गया, क्योंकि ‘The Mobile Gender Gap Report 2019’ के देश में केवल 35 प्रतिशत महिलाओं के पास ही इंटरनेट की सुविधा है, क्योंकि संचार का माध्यम महिलाओं के लिए सीमित है।
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“क्या हम वाकई लड़कियों को डिजिटली आज़ाद होने देना चाहते हैं?”
Saumya Jyotsna on August 15, 2021कनाडाई संचार सिद्धांतकार ‘Marshall McLuhan’ ने अपनी किताब Understanding Media: ‘The Extensions Of Man’ के पहले अध्याय में कहा था, ‘The Medium Is The Message’ अर्थात सूचना स्वयं एक संदेश है।सही सूचना अगर सही वक्त पर लोगों तक पहुंचती है, तब मौके उपलब्ध कराती है, जिससे समाज में क्रांति का उद्घोष होता है लेकिन ‘Medium’ […]
सौम्या ज्योत्स्ना की स्टोरीज़ यहां पढ़ें।
7. अगर हम 2010 से 2020 के मॉब लिंचिंग के आकंड़ों पर नज़र डालें, तो इसमें लगभग 33 लोगों की मौत हुई और 130 लोग बुरी तरह से घायल हुए हैं, जिसमें से 90% घटनाएं मुसलमानो के विरुद्ध हुई हैं और 10% दलितों के विरुद्ध और अब भी दिन-प्रतिदिन इन आंकड़ों में बढ़ोतरी जारी है।
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मॉब लिंचिंग, न्याय की लड़ाई और उसके पर्दे के पीछे का सच
Muzzammil Imam on June 29, 2021मॉब लिंचिंग वो टर्म है, जो हाल के समय में हमें आम तौर पर सुनने को मिल रहा है। अगर देखा जाए, तो सन 2015 में मोहम्मद अखलाक की भीड़ द्वारा बेरहमी से हत्या कर देने के बाद ये टर्म लोगो के बीच ज़्यादा आम हुआ है। लोग अपने आर्टिकल्स में, अपने इंटरव्यूज में इस टर्म […]
मुजम्मिल इमाम की स्टोरीज़ यहां पढ़ें।
8. शहरी क्षेत्रों से लालटेन पूरी तरह से नदारद हो चुकी है, क्योंकि अब इनवर्टर हर मध्यमवर्गीय व निम्न मध्यमवर्गीय घरों में सामान्य हो चुका है।
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“लालटेन, लालटेन जरा के धरब रानी तोहके पजरिया”, गाँव-गिरोह से लेकर नगरों तक में रात के अंधेरे का आसरा लालटेन की पहचान और इसका उपयोग अब शायद केवल भोजपुरी के अश्लील गानों तक ही सिमट कर रह गया है। एक समय लालटेन हर घर में बहुत ही सामान्य और ज़रूरी वस्तु थी, लेकिन अब धीरे-धीरे जैसे […]
अरुण कुमार जायसवाल की स्टोरीज़ यहां पढ़ें।
9. जाति के नाम पर और धर्म के नाम पर उम्मीदवार भी तय किए जाते हैं और इतना ही नहीं बल्कि एक जाति को दूसरे के प्रति भड़काकर, लड़ा कर अपना उल्लू सीधा किया जाता है। अब यह एक सच्चाई बन चुकी है, जिससे कोई भी विश्लेषक मुंह मोड़ कर अपना पीछा नहीं छुड़ा सकता है।
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भारत की राजनीति में मुसलमानों की घटती भागीदारी किस ओर इशारा कर रही है?
Paras Mohammad on December 18, 202117 करोड़ के करीब भारत में मुस्लिम जनसंख्या है। ये दुनिया के किसी भी देश में मुसलमानों की तीसरी सबसे ज़्यादा बड़ी आबादी है।पिछले 1400 सालों में हिंदुस्तान में मुसलमानों ने एक अमिट छाप छोड़ी है। खान-पान, शायरी, संगीत, मोहब्बत और इबादत का साझा इतिहास बनाया और जिया है।यूं तो हमारे देश को आज़ाद हुए 75 साल […]
पारस मोहम्मद की स्टोरीज़ यहां पढ़ें।
10. मुझे अब भी नहीं पता है कि अन्य लोगों के लिए समलैंगिक होने का मतलब यह था कि मैं सेक्स का भूखा हूं। गार्ड से लेकर मेरे सहकर्मियों तक ने मेरा बहुत मज़ाक उड़ाया, मुझ पर गन्दी-गन्दी टिप्पणियां करीं। मैं समलैंगिक होने के लिए खुद से नफरत करने लगा।
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“मेरे पास जीवित रहने के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं और यही मेरे जीवन की असल हकीकत है”
Love Matters India on June 18, 2021जो लोग खुद को सामान्य कहते हैं, उनकी पत्नी या पति के साथ-साथ बच्चे भी होते हैं लेकिन हम कहां जाएं? हमारे केवल कुछ दोस्त थे और वो भी चले गए। इमरान ने लव मैटर्स को बताया कि कैसे कोरोना वायरस महामारी ने उन्हें और एल.जी.बी.टी समुदाय के और लोगों को प्रभावित किया है।हमारे लिए […]
लव मैटर्स इंडिया की और स्टोरीज़ यहां पढ़ें।
11. बसंती, एक घरेलू कामगार हैं। वो सुबह दो घरों में काम करती हैं। शाम को वे अपनी एक समोसे की ठेली लगाती हैं। हमारी बातचीत के दौरान बसंती ने बताया कि मेरी छोटी सी ठेले की दुकान पर अक्सर कई पुरुष भीड़ लगाते हैं, वो शराब के नशे में मेरे साथ बदतमीज़ी भी करते हैं।
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दैनिक एवं घरेलू महिला कामगारों की सुरक्षा समाज में हाशिए पर है
Martha Farrell Foundation on June 16, 202124 घंटे का काम पकड़ा है मज़बूरी में, अभी 5 दिन ही हुए है पर डर सा लगता है। कुछ हुआ नहीं है अब तक, पर घर के लोगों का व्यवहार अजीब सा है मेरे लिए। जैसे मैं कोई इंसान नहीं हूं, मैं बस उनके घर में काम करने वाली नौकरानी हूं।दुर्गा देवी, 40 वर्षघरेलू […]
मराठा फरेल फाउंडेशन की और स्टोरीज़ यहां पढ़ें।
12. जब चुनाव आते हैं, तो चुनाव प्रत्याशी सबसे अधिक वोटों वाले समुदाय अर्थात दलितों एवं पिछड़ों के मध्य जाकर उनसे वोटों की अपील करते हैं, किंतु यह केवल दिखावे के तौर पर होता है। असल में चुनावों के वक्त दलित एवं पिछड़े वर्ग के लोग प्रत्याशियों से वोट के बदले कभी दारू, मुर्गा, तो कभी साड़ी, शॉल, चादर इत्यादि चीज़ें लेते हैं।
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हमारे देश भारत में एक परंपरा सी रही है कि किसकी मौत पर कितना शोर मचेगा? यह उसके सरनेम पर निर्भर रहेगा अर्थात देश के राजनीतिक दल, सामाजिक संगठन और देश का मीडिया किसके खिलाफ हुए अत्याचार पर देश में हल्ला काटेंगे ये उसकी जाति से निर्धारित होता है।अब सोचने वाला प्रश्न यह है कि अत्याचार […]
विनीत गौतम की और स्टोरीज़ यहां पढ़ें।
13. आर्थिक तंगी के कारण मैं अपनें 2 बच्चों को पढ़ा नहीं पाई। घर का किराया, खाना-पीना, 2 लड़कियों की पढ़ाई का खर्चा मैं ठेले से निकाल लेती थी लेकिन कोरोना ने यह रास्ता भी बंद कर दिया और जीना इतना मुश्किल हो गया कि अकेली बैठी रहती तो आंसू नहीं सूखते। ये गरीबी भगवान किसी को ना दिखाए।
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“पति के देहान्त के बाद किसी तरह ठेला लगाकर मैं अपना घर चलाती हूं”
Shipra Gupta on October 16, 2021अक्सर गरीबी उन्मूलन की बहुत सारी बातें होती हैं, सरकार भी मंचों के ज़रिये वादों के साथ बड़ी-बड़ी हुंकार भरती है और गरीबी दूर करने के लिए अलग-अलग योजनाएं लाती हैं। जैसे- मनरेगा, उज्ज्वला योजना, पीएम आवास योजना और पीएम किसान योजना आदि।आखिर इतनी योजनाओं के बाद भी हम गरीब देशों की गिनती में क्यों […]
शिप्रा गुप्ता की और स्टोरीज़ यहां पढ़ें।
14. शिक्षा जो किसी भी देश के विकास की प्रमुख आधार होती है। उसको इस महामारी ने व्यापक पैमाने पर तबाह कर दिया और इस आधार को तोड़ने में इस महामारी के साथ हमारे देश की सरकार की शिक्षा के प्रति उदासीनता ने भी अपनी प्रमुख भूमिका निभाई।
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अधर में है कोरोना महामारी के कारण देश के युवाओं का भविष्य
Krishna Kant Tripathi on October 6, 2021महामारियां मानव सभ्यता के लिए अभिशाप हैं। जो मानव सभ्यता को तहस-नहस कर देती हैं। दशकों बाद मानव सभ्यता ने एक ऐसी महामारी का सामना किया जिसने अपने सर्वोत्तम विकास का दंभ भर रही मानव जाति को नि:सहाय कर दिया और इंसान चहुंओर अपनी जान की भीख मांगने लगा।यूं तो इस महामारी ने पूरी दुनिया […]
कृष्णकांत त्रिपाठी की स्टोरीज़ यहां पढ़ें।
15. भारत के लोगों को महिलाओं के प्रति संवेदनशील होना पड़ेगा। अब समय आ गया है जब हम महिलाओं के साथ खड़े हों। महिला हो या पुरुष हम उनके स्वायत्तता और अधिकारों के लिए एक साथ लड़ें।
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1920 में पहली बार मिला महिलाओं को मताधिकार, लैंगिक भेदभाव का रहा है पुराना इतिहास
Priyaranjan Kumar on April 13, 2021आज दुनिया में कई तरह के भेदभाव मौजूद हैं। क्षेत्र, गरीबी, रंग, जाति, धर्म, लिंग इत्यादि के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव किया जाता है। हमें जिसका बहुत बुरा असर समाज में देखने को मिलता है। इस भेदभाव की वजह से लोगों को कई तरह के शोषण के शिकार हो जाते हैं। उनका विकास नहीं […]
प्रियरंजन कुमार की और स्टोरीज़ यहां पढ़ें।
16. विशेषकर ग्रामीण महिलाओं की उस सिस्टम तक पहुंच कितनी आसान है? हम महिलाओं की बात विशेष रूप से इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में देश की इस आधी आबादी के लिए अब भी बहुत सी सुविधाओं तक आसानी से पहुंच नहीं है।
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आज़ादी के 73 सालों बाद भी ग्रामीण भारत आधारभूत स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित है
Charkha Features on June 11, 2021भारत क्षेत्रफल के नज़रिए से दुनिया का सातवां सबसे बड़ा देश है। उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम के कोने-कोने तक यहां गाँव बसे हैं। इसलिए कहा जाता है कि “भारत की आत्मा गाँवों में बसती है।”अब जहां देश की आत्मा बसती है, तब तो और ज़रूरी हो जाता है कि हम वहां की मौजूदा […]
चरखा फीचर्स की और स्टोरीज़ यहां पढ़ें।
17. स्कूल चिल्ड्रन ऑनलाइन और ऑफलाइन सर्वे रिपोर्ट बताती है कि ग्रामीण अनुसूचित/जाति अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के केवल 4 प्रतिशत बच्चे नियमित रूप से ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं।
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गरीब दलित और आदिवासी बच्चों के लिए ऑनलाइन एजुकेशन के क्या मायने हैं?
Mohan Singh on September 30, 2021भारत में स्कूल, कॉलेज और तमाम शैक्षणिक संस्थान अपने-अपने सत्र पूरे कर पाते, इससे पहले कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन की वजह से उन्हें बंद कर दिया गया। सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी कि बच्चों की पढ़ाई को कैसे व्यवस्थित रखा जाए। इसके लिए केंद्र सरकार ने […]
मोहन सिंह की और स्टोरीज़ यहां पढ़ें।
18. अगर हम सिनेमा की बात करें और वहां हम LGBTQ से जुड़े विषयों पर बनी फिल्मों पर नज़र डालें, तो ऐसी फिल्मों की संख्या को उंगलियों में गिना जा सकता है।
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आइए जानते हैं उन 10 फिल्मों के बारे में जो समाज में समलैंगिकों के अधिकारों की कवायद करती हैं
Puran Joshi on June 21, 2021इतिहास हमेशा ही ताकतवर और सुविधा सम्पन्न लोगों की तरफदारी करता रहा है। इतिहास में पीछे मुड़कर देखें, तो दलित, औरतें, आदिवासी और समलैंगिक तबका हमेशा हमारे समाज में हाशिए पर रहा है। ना ही इतिहास के पन्नों में उनको जगह मिली और ना ही समाज में उनकी सशक्त स्थिति है।फिर ऐसा इतिहास किस काम का जो समावेशी […]
पुरण जोशी की और स्टोरीज़ यहां पढ़ें।
19. पंजाब के जगमोहन अंकल से जब भी लुधियाना में मिलता हूं, कहीं पर खड़े होकर हम चाय ही पी रहे होते हैं और अब तो बिट्टू भैया भी असलम, क्रिस्टोफर और हरदीप के साथ चाय की चुस्कियां लेते दिखते हैं।
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“मज़हबी दीवारों को बड़े आराम से तोड़ती है मेरी चाय की एक प्याली”
Ankit Sinha on December 25, 2021चाय की बात ज़हन में आते ही सबसे पहला ख्याल ट्रेन का आता है। याद है ना? ट्रेन में सफर के दौरान सुबह जैसे ही नींद खुलती है, तो ‘चाय चाय’, ‘ए गरम चाय’, ‘खराब चाय’ की आवाज़ें हमें सुकून दे जाती हैं। ट्रेन में अजनबियों से बातचीत के दौरान हमारा एक साथी, चाय भी […]
अंकित सिन्हा की और स्टोरीज़ यहां पढ़ें।
20. कक्षा 6 में आते ही हम सब बहनों की पढ़ाई बंद कर दी गई थी और मैं सभी को स्कूल जाते देखती थी। हम अपनी दादी से छिपकर स्कूल जाते थे। 10-15 दिन तक गए थे, जब हमारी दादी को पता चला, तो उन्होंने हमें बहुत डांटा और हमारे पिता से इसकी शिकायत कर दी। मेरे पिता मेरी माँ के साथ हिंसक हो गए थे, क्योंकि वह हमें बाहर जाने दे रही थीं।
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“मैंने एक लड़की होकर समाज के बनाए हुए चारदीवारी के बंधनों को तोड़ा है”
Feminist Approach To Technology on December 24, 2021शुभम ने हाल ही में हमारे साथ अपनी कार्यशाला और कोविड-19 के दौरान के FAT के सपोर्ट के अनुभवों को साझा किया है। इस बार शुभम हमारे साथ अपनी ज़िन्दगी के उन पहलुओं को लेकर हम से बात कर रही हैं, जब उन्होंने अपनी बहुत छोटी उम्र से अपनी पढ़ाई और ज़ल्द और जबरन शादी […]
फेमिनिस्ट अप्रोच टू टेक्नॉलोजी की और स्टोरीज़ यहां पढ़ें।
21. गाँव के मरीज़ उचित समय तक उस अस्पताल तक पहुंच भी नहीं पाते थे और अपने इलाज से पहले ही दम तोड़ देते थे। एक छोटी सी बीमारी के लिए भी लोगों को अनेकों मील चल कर जाना होता था
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21 सालों में कितना बदला छत्तीसगढ़, क्या है अब मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य की स्थिति?
Adivasi Lives Matter on December 21, 2021मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ 1 नवम्बर, सन 2000 को भारत का 26वां राज्य बना। बहुत सालों पहले गोंड़ राजाओं ने अलग-अलग स्थान पर अपने 36 गढ़/किले बनवाए थे, इसलिए इस राज्य का नाम छत्तीसगढ़ पड़ा।इस 21 नवम्बर को छत्तीसगढ़ ने अपना 21वां स्थापना वर्ष मनाया। इन 21 वर्षों में इस राज्य में अनेक बदलाव हुए हैं, […]
आदिवासी लाइव्स मैटर की और स्टोरीज़ यहां पढ़ें।