Site icon Youth Ki Awaaz

21 सालों में कितना बदला छत्तीसगढ़, क्या है अब मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य की स्थिति?

21 सालों में कितना बदला छत्तीसगढ़, क्या है अब मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य की स्थिति?

मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ 1 नवम्बर, सन 2000 को भारत का 26वां राज्य बना। बहुत सालों पहले गोंड़ राजाओं ने अलग-अलग स्थान पर अपने 36 गढ़/किले बनवाए थे, इसलिए इस राज्य का नाम छत्तीसगढ़ पड़ा।

इस 21 नवम्बर को छत्तीसगढ़ ने अपना 21वां स्थापना वर्ष मनाया। इन 21 वर्षों में इस राज्य में अनेक बदलाव हुए हैं, कुछ ज़्यादा अच्छे और कुछ कम अच्छे। मध्य प्रदेश से अलग होने से पहले छत्तीसगढ़ के आदिवासियों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता था और उन सब में मुख्य समस्या स्वास्थ्य की थी।

घने जंगलों के होने के कारण अनेक रोगियों का इलाज समय पर नहीं हो पाता था, परन्तु मध्य प्रदेश से अलग होने के बाद इस नए बने राज्य में स्वास्थ्य को लेकर बहुत सराहनीय कार्य हुए हैं और इससे अब लोगों को भी राहत पहुंचने लगी है।

बीते 21 वर्षों में स्वास्थ्य को लेकर राज्य में कई बड़े कदम उठाए गए हैं जिसके फलस्वरूप यहां मृत्यु दर में कमी आई है, यदि हम छत्तीसगढ़ के गठन से पहले की बात करें, तो उस समय अस्पताल केवल शहरों में ही हुआ करते थे। 

गाँव के मरीज़ उचित समय तक उस अस्पताल तक पहुंच भी नहीं पाते थे और अपने इलाज से पहले ही दम तोड़ देते थे। एक छोटी सी बीमारी के लिए भी लोगों को अनेकों मील चल कर जाना होता था, लेकिन अब हर गाँव में सरकार द्वारा एक उप-स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण करवाया गया है, इससे लोगों को अब इलाज कराने के लिए मीलों दूर नहीं जाना पड़ता। 

अब बड़ी बीमारियों के इलाज के लिए भी वहां के निवासियों को चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इलाज में होने वाले खर्च का ज़िम्मा अब राज्य सरकार ने उठाने का फैसला लिया है।

इस समस्या की जड़ को चिन्हित कर राज्य सरकार एवं यूनिसेफ द्वारा शिशु और मातृ स्वास्थ्य के क्षेत्र में लगातार कार्य किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य की ग्राम पंचायतों में कुपोषण को लेकर सरकार एवं यूनिसेफ द्वारा एक सर्वेक्षण कराया गया था, जिसमें आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा घर-घर जाकर सर्वे किया गया।

इस सर्वेक्षण में 340 ग्राम पंचायतों में कुपोषण की बहुत गंभीर समस्या देखने को मिली, ऐसे में यूनिसेफ द्वारा भी उन ग्राम पंचायतों में भी अच्छी खासी मदद पहुंचाई गई। कुपोषण को जड़ से खत्म करने के लिए पोषण पुनर्वास केंद्र, आदि योजना भी बनाई गई हैं और ये योजनाएं अब भी सुचारू रुप से कार्य कर रही हैं।

राज्य सरकार से लेकर स्वास्थ्य संगठन तक शिशु और महिलाओं की मृत्यु दर को कम करने के बहुत अधिक प्रयास किए जा रहे हैं और इसके लिए कई योजनाएं भी तैयार की जा रही हैं, जिससे मृत्यु दर में कमी लाई जा सके। महिलाओं की मृत्यु का एक प्रमुख कारण गर्भावस्था के समय सही तरीके से देखभाल नहीं किया जाना भी है।

 शरीर में होने वाले बदलावों, उचित समय से अस्पताल तक ना पहुंच पाना, प्रसव के बाद महिलाओं की अच्छे से देखभाल ना हो पाना आदि महिलाओं की मृत्यु के मुख्य कारण हैं। इस डर को कम करने के लिए एवं गर्भवती महिलाओं की पूरी तरह से देखभाल करने की सलाह आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, मितानिन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के द्वारा दी जाती है। 

गर्भवती महिलाओं, शिशुवती महिलाओं और शिशुओं को समय-समय पर गाँव के स्वास्थ्य केंद्र में इलाज के लिए बुलाया जाता है, गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चों को टीकाकरण के लिए मितानिन द्वारा घर-घर जाकर सूचना दी जाती है और गाँव में बच्चों के द्वारा रैली के माध्यम से टीकाकरण के प्रति आम जनमानस में जन जागरूकता की जाती है। 

गाँव में आम जनमानस में टीकाकरण के प्रति जागरूकता के लिए रैली निकालते बच्चे।

बच्चे का समय से पहले जन्म होना (35.9% बच्चे का जन्म समय से पहले हुआ है।) और वजन का कम होना नवजात शिशुओं की मृत्यु का एक प्रमुख कारण रहा है। निमोनिया जैसी गंभीर समस्या अधिकतर नवजात शिशुओं  में ही अधिक दिखाई देती है, जिसकी वजह से 16.9% शिशु की मृत्यु हुई है, जन्मजात 9.9 प्रतिशत, संचारी बीमारियां 7.9 प्रतिशत। 

1990 के दशक में नवजात शिशुओं की मृत्यु का प्रमुख कारण दस्त जैसी बीमारी को माना जाता था कि डिहाईड्रेशन के कारण बच्चों के शरीर में पानी की कमी हो जाने से उनकी मृत्यु हुई है लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य के अलग होने के बाद स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई ऐसी योजनाएं तैयार की गई हैं, जिनके तहत महिलाओं और शिशुओं को बीमारियों से बचाव हेतु कार्य किया जाता है।

श्रीमती शकुंतला देवी, जो एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं साथ ही वे मितानिन के पद पर कार्यरत हैं, उनका कहना है कि ‘छत्तीसगढ़ अलग होने से पहले हमारे गाँव में ना कोई डॉक्टर थे और ना आस-पास में कोई अस्पताल था, लेकिन कुछ दशकों में इतना विकास हुआ कि हमारे गाँव में ही एक उप स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण कराया गया और अब तो हर एक ग्राम पंचायत में एक उप स्वास्थ्य केंद्र है, जिसमें गाँव के लोग अपना इलाज करवाते हैं।

 महिलाओं और शिशुओं की मृत्यु काफी अधिक हुई है, पहले महिलाओं के प्रसव के लिए घर में ही सभी उपचार किए जाते थे जिससे कभी-कभी खून की कमी या प्रसव के दौरान संक्रमण हो जाने के कारण गर्भवती महिला की मृत्यु भी हो जाती थी। शिशु मृत्यु भी काफी अधिक हुई है। इसका मुख्य कारण निमोनिया और कई अन्य प्रकार के संक्रमण होते थे।’

गाँव के उप स्वास्थ्य केंद्र में पोलियो की ड्राप पीते बच्चे।

जब से हमारे ग्राम पंचायत बिंझरा में उप स्वास्थ्य केंद्र बना है, तब से छोटी सी बीमारी के इलाज के लिए भी उस स्वास्थ्य केंद्र में जाकर इलाज कराया जाता है। केंद्र के एनएम द्वारा टीवी रोग, हेपेटाइटिस, पोलियो, काली खांसी, डिप्थीरिया, टिटनेस, दस्त, रोग खसरा रूबेला दिमागी बुखार जैसी कई खतरनाक बीमारियों का टीकाकरण किया जाता है।

 हमारे द्वारा बच्चों को और महिलाओं को टीकाकरण के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जैसे ही बच्चों में दस्त जैसी समस्या आती है, हम उनके माता-पिता को ओआरएस का घोल बनाकर पिलाने की सलाह देते हैं, जिससे बच्चों में दस्त रुक जाता है।

पहले हमारे गाँव में टीकाकरण की कोई उचित व्यवस्था नहीं थी, अब सभी प्रकार के टीके हमारे ग्राम पंचायत के उप स्वास्थ्य केंद्र में लगाए जाते हैं, इस तरह से हमारे गाँव में स्वास्थ्य को लेकर काफी विकास हुआ है और लोगों के स्वास्थ्य में सुधार आया है तथा मृत्यु दर में कमी आई है।

अभी भी कई लोगों को अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं ना मिलने के कारण अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सरकार को इस तरह की समस्यायों का एक अविलम्ब समाधान निकालना चाहिए।

नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग शामिल है।

नोट- तुमलेश नेटी द्वारा लिखित यह लेख पहली बार आदिवासी लाइव्स मैटर पर प्रकाशित हुआ था।

Exit mobile version