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पढ़ने-पढ़ाने की ज़िद ने तमन्ना को बनाया लड़कियों का रोल मॉडल

मध्यप्रदेश के हरदा ज़िला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव है नजरपुरा। इस गांव में अधिकतर पिछड़ी जाति के लोग निवास करते हैं। यहां की कुल आबादी 3 हजार, 940 है और लगभग 780 घर हैं।  इनकी आजीविका का एकमात्र स्रोत मेहनत मजदूरी है।

पूरे गाँव को शिक्षित करतीं तमन्ना

वहीं, कुछ लोगों के पास नाममात्र की ज़मीन है, जिस पर वे खेती करते हैं, बाकी तो सब खेतीहर मज़दूर ही हैं और इसी गांव के रहने वाले हैं कमल तंवर, जो गांव में सबसे अधिक पढ़े लिखे व्यक्ति हैं।

वर्तमान में वह एक सरकारी स्कूल में अतिथि शिक्षक हैं लेकिन कहते हैं ना कि परिवार में एक शिक्षित हो तो सभी में पढ़ने की ललक जाग जाती है। कमल तंवर की 17 वर्षीय बेटी तमन्ना तंवर अपने पिता के नक़्शे कदम पर चल पड़ी है।  तमन्ना ना सिर्फ खुद पढ़ना चाहती है, बल्कि पूरे गाँव के बच्चों को शिक्षित देखना चाहती है। 

कोविड-19 महामारी के दौरान जब स्कूल-कॉलेज बंद रहे और बच्चे पढ़ाई से दूर हो रहे थे, तब तमन्ना छटपटाने लगी यानि उसकी फिक्र थी कि कैसे इन बच्चों को पढ़ाई से जोड़ कर रखा जाए?

बच्चियों की पढ़ाई का बीड़ा उठाया

क्योंकि बहुत मुश्किल से तो यहां के बच्चे स्कूल जाने लगे थे। एकाएक कोरोना संक्रमण ने वह भी बंद करवा दिया।

स्कूलों के बंद रहने के कारण बच्चों पर शारीरिक और मानसिक दोनों तरह का असर हो रहा था। इस अंतराल में उनकी शिक्षा और सीखने की प्रवृत्ति दोनों प्रभावित हो रही थी। बच्चों के भविष्य पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ने लगा था।

इस क्षति की भरपाई और बच्चों को इस संकट से उबारने के लिए तमन्ना ने कुछ अलग करने का बीड़ा उठाया ताकि उसके समुदाय के कमज़ोर वर्ग के बच्चों का भविष्य खराब न हो।

संक्रमण के चलते कमज़ोर वर्ग के बच्चों में से 50 से 60 फीसदी तक बच्चे पढ़ाई से दूर हो चुके हैं। परिवार की कमज़ोर आर्थिक स्थिति के चलते उन्हें भी किसी न किसी काम में लगा दिया गया है और अब ऐसे बच्चों का फिर से स्कूल लौटना मुश्किल भरा काम हो गया है।

यहां तक कि स्कूल जाने वाली कई बच्चियों की शादी तक कर दी गई हैं, ऐसी बच्चियां शायद ही पढ़ाई की दुनिया में फिर लौट पाएं।

कोविड -19 के दौरान डिजिटल माध्यम से नियमित पढ़ाई की क्षतिपूर्ति करने के प्रयास तो हो रहे थे, लेकिन इस माध्यम की पहुंच भी सिर्फ 40 फीसदी छात्रों तक ही थी। वह भी शहरों की बाकी 60 फीसदी बच्चे पढ़ाई से वंचित ही रहे।

इसमें भी ग्रामीण और खासकर आदिवासी इलाकों के बच्चों की हालत और अधिक खराब है।

तमन्ना भी इसी उहापोह में जी रही थी, उसे लग रहा था कि कुछ ऐसा करना चाहिए, जिससे बच्चे पढ़ाई से दूर न हों! उसके इस सपनों की उड़ान को पंख मिले सिनर्जी संस्थान से,

उड़ान स्कॉलरशिप ने दी उड़ान

जब पिता ने अपनी बेटी की छटपटाहट देखकर उसे सलाह दी कि वह घर के एक कमरे को पुस्तकालय बनाकर बच्चों को पढ़ाई से जोड़े रख सकती है। यह एक ऐसी संस्था है, जो इस काम में उसकी आर्थिक मदद कर सकती है।

पिता ने बेटी को केवल बताया ही नहीं, बल्कि अगले ही दिन उसे उस संस्था के प्रबंधकों से मिलाया भी। बस फिर क्या था, उसे संस्था की ओर से  डेढ़ हज़ार महीने की उड़ान नाम से एक फेलोशिप मिल गई।

तमन्ना के लिए इतना ही काफी था, इन पैसों से उसने छोटी-छोटी कहानियों की किताब खरीदकर एक छोटा सा सामुदायिक पुस्तकालय अपने घर के एक कमरे बना डाला, जहां बच्चे आकर स्कूली पाठ्यक्रम के अलावा अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए दुनिया भर के मुद्दों पर चर्चा कर सकें।

पुस्तकालय में किशोरी लड़कियां अपनी रुचि और पसंद के अनुसार अलग-अलग किताबें पढ़ सकती हैं। हालांकि, शुरुआत में यह काम उसके लिए आसान नहीं था।

वह बहुत झिझकती थी और हमेशा उसका इस बात पर ध्यान रहता था कि कैसे बात करें और किस बारे में बात करें?

लेकिन समय के साथ-साथ वह अपनी योजना और संस्था के समर्थन से इस चुनौती पर विजय प्राप्त करती चली गई। आज वह उमंग पाठ्यक्रम के लिए किशोरियों के साथ सत्र लेती है जबकि वह स्वयं 12वीं की छात्रा है।

महिलाओं में भी जगाई पढ़ने की ललक

पुस्तकालय में किताबों की व्यवस्था के लिए अब वह बिना हिचकिचाहट लोगों से बातें करती है। लोगों से किताब डोनेट करने के लिए आग्रह करती है, जैसे ही वह अधिक प्रभावी ढंग से बातचीत करने लगी, उसे मदद मिलने लगी।

अब उसके पुस्तकालय में गाँव के बच्चों से लेकर किशोरियों, यहां तक बड़ी उम्र की महिलाएं भी आने लगी हैं, उनमें भी पढ़ाई की ललक बढ़ने लगी है। 

जब कोविड -19 की दूसरी लहर ने भारत को बुरी तरह प्रभावित किया। सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए लोगों में शारीरिक दूरी बनाए रखना ज़रूरी हो गया, तब इसका असर तमन्ना की पहल पर भी पड़ा लेकिन वह पीछे नहीं हटी, बल्कि 2-3 सप्ताह के अंतराल के बाद वह सभी की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए, इसे बनाए रखने के लिए एक नई सोच लेकर आईं।

कोविड 19 में भी अपना हौसला ज़ारी रखा

उसने 2 से 5 दिनों तक पढ़ने के लिए अपनी पुस्तकालय की किताबें घर-घर जाकर बांटने लगी। आज उसके पुस्तकालय में सैकड़ों पुस्तकें हैं। उसकी लाइब्रेरी धीरे-धीरे समृद्ध हो रही है और इसके साथ तमन्ना की उड़ान भी।

तमन्ना अब गाँव में युवाओं की प्रेरणास्रोत बन गई है। वह न सिर्फ पढ़ने-पढ़ाने में रुचि रखती है, बल्कि गाँव और पूरे ज़िले को स्वच्छ और हिंसा मुक्त करने की दिशा में भी काम कर रही है।

भेदभाव के खिलाफ उठा रही हैं आवाज़

वह किशोरियों के साथ होने वाली छेड़छाड़ का खुलकर विरोध करती है और इसके लिए किशोरियों को जागरूक भी कर रही है, उसके काम में उसके माता-पिता का साथ भी उसे मिलता है।  कॉलेज में पढ़ने वाला बड़ा भाई भी उसे सपोर्ट करता है।

तमन्ना गाँव के लोगों के साथ जागरूकता बैठकें आयोजित करती है. जिसमें वह सभी प्रकार के सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करती है, विशेषकर महिलाओं और किशोरियों से जुड़े मुद्दों पर!

वहीं, भेदभाव  को लेकर समझ उसमें विकसित हो चुकी है। कुल मिलाकर तमन्ना में अभूतपूर्व परिवर्तन स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है।

वह लड़कियों की शिक्षा और सशक्तिकरण और उत्पीड़न के खिलाफ आवाज़ उठा रही है। वह स्वयं अब बहुत पढ़ना चाहती है और अपने को निर्णायक भूमिका में देखना चाहती है, जिससे वह गाँव में परिवर्तन ला सके।

छोटी सी शुरुआत से बनीं रोल मॉडल

इस संबंध में सिनर्जी संस्थान की समन्वयक प्रियंका कहती हैं कि उड़ान फेलोशिप ग्रामीण, आदिवासी और वंचित समुदायों से संबंधित किशोर-किशोरियों के साथ 16 से 21 वर्ष की आयु के बीच वाली महिलाओं को दी जाती है।  इसका मकसद किशोरियों के भीतर की झिझक को खत्म करना है ताकि वह पंख फैलाकर उड़ान भर सकें।

वे आगे कहती हैं कि इससे उनमें आंतरिक परिवर्तन होते हुए भी देखा जाता है, यही किशोरियां आगे चलकर अपने गाँवों में सामाजिक परिवर्तन का नेतृत्व करती हैं, अपने समुदायों में कार्य परियोजना बनाती हैं और उसे लागू करवाती हैं।

ठीक ऐसा ही जज़्बा तमन्ना में देखने को मिलता है। उसमें सीखने का जुनून है।

वह गाँवों में हाशिए पर पड़े समाज को बदलने की इच्छा और क्षमता रखती है, उसकी क्षमता से ना केवल गाँव में बदलाव आएगा बल्कि अन्य किशोरियां भी इससे मार्गदर्शन प्राप्त कर शिक्षित होने का प्रयास करेंगी। 

शिक्षा बदलाव का कितना बड़ा माध्यम है, यह बात तमन्ना समझ चुकी है और यही वह अपने समुदाय को भी समझाना चाहती है। फिलहाल उसकी इस छोटी सी शुरुआत ने ही उसे अपने गाँव का रोल मॉडल बना दिया है।


यह आलेख भोपाल, मप्र से वरिष्ठ लेखिका रूबी सरकार ने चरखा फीचर के लिए लिखा है

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