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जानिए पैकेज्ड फूड से बच्चों के स्वास्थ्य पर कितना हानिकारक असर पड़ता है?

जानिए पैकेज्ड फूड से बच्चों के स्वास्थ्य पर कितना हानिकारक असर पड़ता है?

मैं तीन दिनों के प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र और धर्म नगरी वाराणसी में था। यहां मुझे एक सामाजिक कार्यक्रम में सम्मिलित होने का अवसर भी मिला।

यह कार्यक्रम भारत में बिकने वाले पैकेज्ड फूड (मसलन- चिप्स, कुरकुरे इत्यादि ) पर लेबलिंग को लेकर आयोजित किया गया था। इसके बारे में, जब मैंने पढ़ा तो मुझे कुछ ऐसी बातें और तथ्य पता चले, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए अतिआवश्यक हैं।

भारत में खाद्य और पेय उद्योग 34 मिलियन टन की बिक्री मात्रा के साथ दुनिया का सबसे बड़ा उद्योग है। अध्ययनों से पता चला है कि भारतीय घरों में शहरी और ग्रामीण दोनों में, 53% बच्चे नमकीन, पैकेज्ड फूड जैसे चिप्स और इंस्टेंट नूडल्स का सेवन करते हैं, 56% बच्चे चॉकलेट और आइसक्रीम जैसे मीठे पैकेज्ड फूड का सेवन करते हैं और 49% बच्चे चीनी-मीठे पैकेज्ड पेय का सेवन करते हैं।

यह आंकड़ा सप्ताह में औसतन दो बार से अधिक का है। विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि ‘किसी भी अन्य जोखिम कारकों की तुलना में दुनिया भर में अधिक मौतों के लिए अस्वास्थ्यकर आहार ज़िम्मेदार है और यह मोटापा, टाइप 2 मधुमेह और हृदय रोग का एक प्रमुख कारण भी है।’

विश्व स्वास्थ्य संगठन इस विषय पर काफी समय पहले कह चुका है कि ‘हर तरह के पैकेज्ड फूड पर उसमें उपस्थित खनिजों का सही विवरण पैकेट पर ही लिख देना चाहिए। इस में आगे यह भी जोड़ा है कि यह काम देश की सरकारों के तरफ से कानून बनाकर करवाया जाना चाहिए। यह उसी तरह है जैसे तम्बाकू उत्पादों के पैकटों पर अब वैधानिक चेतावनी लिखी जाने लगी है।’

वाराणसी में पैकेज्ड फूड पर हुई सेमिनार का दृश्य।

तथ्यों के बीच सिमटकर रह गए इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने और पैकेज्ड उत्पादों पर फ्रंट ऑफ पैकेट लेबलिंग (एफओपीएल) विनियमों पर तत्काल नीतिगत कार्रवाई के लिए पीपुल्स विजिलेंस कमेटी ऑन ह्यूमन राइट्स (पीवीसीएचआर) पीपुल्स इनिशिएटिव फॉर पार्टिसिपेटरी एक्शन ऑन फूड लेबलिंग (पीआईपीएएल) और कॉमन मैन ट्रस्ट के समर्थन से सावित्री बाई फुले महिला पंचायत और बुनकर दस्तकार अधिकार मंच और सेंटर फॉर हार्मोनी एंड पीस ने भारत में कुपोषण के दोहरे बोझ के मद्देनज़र पैकेज फूड लेबलिंग के माध्यम से बच्चों के पोषण अधिकारों पर एक सार्वजनिक संवाद का आयोजन वाराणसी के डायमंड होटल में किया गया था।

पूर्व आईएएस, बीजेपी के यूपी राज्य उपाध्यक्ष और एमएलसी श्री ए० के शर्मा जी इस कार्यक्रम में जूम के माध्यम से जुड़े, उन्होंने कहा, “अपने बच्चों के लिए एक स्वस्थ कल सुनिश्चित करने के लिए, भारत के लिए एक सुनहरा मौका है कि एक सरल, व्याख्यात्मक और अनिवार्य फ्रंट-ऑफ-पैक लेबल शामिल हो सकता है।

यह एक नीति निर्माण के लिए सही समय है, जो लोगों को स्वस्थ विकल्प बनाने और जीवन बचाने के लिए सशक्त बना सकता है। हम एफएसएसएआई को अपना समर्थन प्रदान करते हैं और विनियमक का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं, जो इस देश के लोगों के लिए अच्छा है।”

भारत में एक फ्रंट ऑफ पैकेट लेबलिंग (FOPL) विनियमन WHO के मानकों के आधार पर होना चाहिए इसके लिए हमारी संस्था ने माननीय प्रधानमंत्री को उनके जन्मदिन पर पत्र लिखकर एक मज़बूत FOPL के माध्यम से भारत के बच्चों के लिए एक स्वस्थ उपहार दिया जाए, इसकी पैरवी की है।

इस सन्दर्भ में प्रधानमंत्री कार्यालय ने स्वास्थ्य मंत्रालय को कार्यवाही के लिए पत्र प्रेषित कर दिया है। स्वास्थ्य मंत्रालय में भी इस पर कार्यवाही शुरू हो गई है। सावित्रीबाई फुले महिला की संयोजिका श्रुति नागवंशी और PVCHR की कार्यक्रम निदेशिका शिरीन शबाना खान द्वारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को शिकायत की गई इस याचिका को संज्ञान में लेते हुए माननीय आयोग ने स्वास्थ्य सचिव, भारत सरकार से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।

इस कार्यक्रम में बोलते हुए, कांग्रेस सेवा दल के राष्ट्रीय संगठक, लालजी देसाई ने कहा, “अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ और पेय अपेक्षाकृत सस्ते होते हैं और उनकी आसानी से उपलब्धता शहरी प्रवासी मज़दूर और उनके बच्चों के समय की बचत करती है।

 वहीं दूसरी तरफ ज़्यादा आमदनी होने के कारण नियमित आय वाला मज़दूर तेज़ी से अल्ट्रा प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों की तलाश और उपभोग करता है। आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लोगो के आहार विकल्पों को भी खाद्य उद्योग की चमक-धमक वाली व्यवसायिक रणनीति बड़ी भूमिका निभा रही है।

हम जनता के प्रतिनिधि के रूप में, यह सुनिश्चित कराने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं कि बाज़ार में उपलब्ध सभी खाद्य पदार्थों में विज्ञान द्वारा अनुशंसित हानिकारक अवयवों  की कमी हो।”

यूपी के पूर्व मंत्री और समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मनोज राय धूपचंडी ने कहा, “खाने के लिए तैयार या अल्ट्रा-प्रोसेस्ड भोजन तेज़ी से लोकल स्ट्रीट फूड (क्षेत्रीय प्रसिद्ध भोजन) की जगह ले रहे हैं, जिसकी ज़्यादा खपत होने के कारण इसका बच्चों के स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ रहा है।

नमक, चीनी और संतृप्त वसा के लिए कड़ाई से विनियमित थ्रेसहोल्ड के साथ एक एफओपीएल को अपनाने से सबसे गरीब और सबसे कमज़ोर लोगों के स्वास्थ्य में सुधार होगा।”

वाराणसी में पैकेज्ड फूड पर हुई सेमिनार का दृश्य।

चिली, ब्राजील, मैक्सिको और अर्जेंटीना जैसे अन्य देशों के एफओपीएल अनुभव को साझा करते हुए, ग्लोबल हेल्थ एडवोकेसी इन्क्यूबेटर (जीएचएआई) की क्षेत्रीय निदेशक वंदना शाह ने कहा, “चेतावनी लेबल अब तक का सबसे प्रभावी एफओपीएल लेबलिंग सिस्टम है।

वे उपभोक्ताओं को अस्वास्थ्यकर उत्पादों को त्वरित और सरल तरीके से पहचानने में मदद करते हैं और उन्हें खरीदने के लिए हतोत्साहित करते हैं उदाहरण के लिए चिली में, ‘हाई इन’ ब्लैक अष्टकोणीय आकार के चेतावनी लेबल के परिणामस्वरूप शर्करा पेय की खरीद में तेज़ गिरावट आई है।”

विश्व स्तर पर, मोटापा सभी आय समूहों के देशों को प्रभावित कर रहा है और प्रमाण बताते हैं कि निम्न सामाजिक आर्थिक स्थिति के लोग अस्वास्थ्यकर भोजन का सेवन करते हैं। भारत के पास कुपोषण की दोधारी तलवार से लड़ने के लिए डब्ल्यूएचओ द्वारा अनिवार्य कटऑफ के साथ एक प्रभावी एफओपीएल को अपनाकर वैश्विक नेता बनने का अवसर है।

भारत में आहार संबंधी गैर संचारी रोग (डीआर-एनसीडी) बढ़ रहे हैं, जिससे लाखों बच्चों को खतरा हो रहा है। दुनिया में कुपोषित बच्चों की सबसे बड़ी संख्या वाला देश भारत लगभग 1.5 करोड़ मोटे बच्चों और 45 मिलियन अविकसित बच्चों का घर है।

बिजनेस स्टैंडर्ड के प्रधान संवाददाता सिद्धार्थ कलहंश ने कहा, “भारत तेज़ी से दुनिया की मधुमेह कैपिटल के रूप में उभर रहा है।  मोटापा बढ़ रहा है। संपूर्ण खाद्य प्रणाली को अब लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए कार्य करना चाहिए।

चीनी और नमक मिलाने से भोजन अधिक स्वादिष्ट बनता है। नतीजतन, हम इन हानिकारक अवयवों के अप्राकृतिक स्तरों का उपभोग कर रहे हैं अनुशंसित थ्रेसहोल्ड। वर्णनात्मक चेतावनी लेबल, जो स्पष्ट रूप से इंगित करते हैं कि खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों में बड़ी मात्रा में नमक, चीनी और वसा है या नहीं, उपभोक्ताओं को स्वस्थ, त्वरित और सूचित विकल्प बनाते हैं।”

आशुतोष सिन्हा, एमएलसी और खाद्य और दवाओं पर राज्य स्तरीय सतर्कता समिति के सदस्य ने अपने संबोधन में कहा कि ‘उपभोक्ताओं के लिए पोषक तत्वों की पहचान करना और उनका चयन करना कठिन हो जाता है। पोषण संबंधी जानकारी को लेबल के पीछे या किनारे पर रखने से उपभोक्ताओं को स्वस्थ भोजन के विकल्प बनाने के लिए आवश्यक पोषण संबंधी जानकारी की समझ कम हो जाती है। इसलिए खाद्य उत्पाद में मौजूद पोषक तत्वों के बारे में फ्रंट पैकेट पर सीधे, आसान, सरल और स्पष्ट तरीके से लिखा होना चाहिए।’

समाजवादी पार्टी की वरिष्ट नेत्री श्रीमती शालिनी यादव ने कहा कि ‘बतौर माँ मैं कह सकती हूं कि बच्चा जब तक माँ के गोद में होता है और माँ के हाथ से खाता है, तब तक वह माँ के नियंत्रण में पौष्टिक आहार लेता है लेकिन जैसे ही वह अपने हाथ से खाने लगता है वह बाज़ार के नियंत्रण में आ जाता है, जिससे उनके स्वास्थ्य पर भारी नुकसान होता दिखाई पड़ रहा है।’

पूर्व मिसेज इंडिया इंटरनेशनल और सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती रौशनी कुशल जायसवाल ने कहा कि ‘बच्चों में पैकेट फूड की मांग इस कदर है कि वे घर में बने पौष्टिक भोजन को दरकिनार करके पैकेट फूड से अपनी भूख़ को शांत कर रहे हैं, जिससे उनके शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए संपूर्ण पौष्टिक तत्व प्राप्त नहीं होते हैं।’

वहीं कुछ पोषक तत्व असंतुलित मात्रा में या ज़रूरत से अधिक होने के कारण वे कम उम्र में कई गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी की सचिव श्रीमती सरिता सिंह ने कहा कि ‘हमारे रसोई में बने शुद्ध पौष्टिक खाद्य पदार्थ धीरे-धीरे बच्चों की थाली से गायब होते जा रहे हैं और उनकी जगह पैकेट फूड ले रहे हैं। बच्चा तब तक ज़िद करता है, जब तक उसे पा ना जाए, जबकि उन भोजन से प्राप्त होने वाले पौष्टिक तत्वों की भरपाई के लिए हम डॉक्टर की सलाह एवं फार्मा कम्पनी के प्रचार पर सप्लीमेंट लेते हैं।’

बहुजन समाज पार्टी की वरिष्ठ नेत्री अधिवक्ता सुश्री सुधा चौरसिया ने कहा कि ‘पैकेट फूड के खाद्य बाज़ार ने महिलाओं की पोषण स्थिति एवं स्वास्थ्य को गम्भीर नुकसान पहुंचाया है। महिलाएं हीमोग्लोबिन की कमी से जूझ रही होती हैं। घर एवं दफ्तर के दोहरे काम के बोझों एवं पुरुषो का रसोई में हाथ ना बटाने के कारण पैकेट फूड, उन्हें आकर्षित कर रहा है।’

वाराणसी में पैकेज्ड फूड पर हुई सेमिनार का दृश्य।

जनसभा को ऐतिहासिक बताते हुए डॉ लेनिन रघुवंशी, संस्थापक और सीईओ, पीपुल्स विजिलेंस कमेटी ऑन ह्यूमन राइट्स (पीवीसीएचआर) ने कहा, “पीपल नीति निर्माताओं, पोषण लीडर और उद्योग को याद दिलाने का प्रयास है कि बच्चों के लिए अच्छा पोषण बाल अधिकारों के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के अनुसार, एक मौलिक अधिकार है।”

यह सुनिश्चित करने का समय है कि बच्चों को अपना अधिकार दिया जाता है। पीपल देश भर में नीति निर्माताओं के ध्यान में लाने और उद्योग को इस अवसर पर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए देश भर में परामर्श की एक श्रृंखला आयोजित करेगा। भारत का एफओपीएल विनियमन कई वर्षों से पाइपलाइन में है। हाल के महीनों में, FSSAI ने घोषणा की है कि ज़ल्द ही एक नया नियमन तैयार होगा।

सावित्री बाई फुले महिला पंचायत की संयोजिका श्रीमती श्रुति नागवंशी ने संवाद में उपस्थित सभी राजनैतिक दल, स्वास्थ्य, पोषण विशेषज्ञों और मानवाधिकार और बाल अधिकार कार्यकर्ताओं को धन्यवाद दिया कि आप सभी लोग एफओपीएल विनियमन के माध्यम से भारतीय बच्चों के पोषण अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए एक साथ आए हैं।

जिससे हमारे बच्चों को कुपोषण के दोहरे बोझ के प्रतिकूल प्रभावों से बचाया जा सके। सार्वजनिक संवाद, समाज के कमज़ोर और हाशिए के वर्ग के मौलिक अधिकारों को साकार करने में हमें मदद मिलेगी। यह सभी हितधारकों, विशेष रूप से राजनीतिक दलों को अनिवार्य पोषक तत्व मानकों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए संवेदनशील बनाएगा, जिससे बच्चों के पोषण अधिकारों की सुरक्षा के लिए खाद्य लेबलिंग विनियमन है, जो अक्सर दोहरे बोझ का सामना करते हैं।

इस कार्यक्रम का संचालन मानवाधिकार जननिगरानी समिति के संयोजक डॉ. लेनिन रघुवंशी ने किया और स्वागत कॉमन मैन ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी श्री चन्द्र मिश्रा जी ने किया। इस कार्यक्रम में श्रीमती आराधना मिश्रा ‘मोना’ विधायक और कॉंग्रेस विधानदल मण्डल नेता, श्री ओ० पी० राजभर राष्ट्रीय अध्यक्ष भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी और कबीर मठ मुलगादी के पीठाधीश्वर संत विवेक दास ने अपना शुभकामना सन्देश दिया। इस कार्यक्रम में वहां के स्थानीय विधायक और सुहेलदेव समाज पार्टी के नेतागण और साथ ही वंचित समाज का एक अच्छा खासा वर्ग उपस्थित रहा।

(आशीष सिंह एक समाजशास्त्री और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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