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गरीब स्टूडेंट्स के भविष्य के साथ खिलवाड़ करता नीट का परसेंटाइल सिस्टम

गरीब स्टूडेंट्स के भविष्य के साथ खिलवाड़ करता नीट का परसेंटाइल सिस्टम

डॉक्टर बनने का सपना देखने वाले लाखों स्टूडेंट हर वर्ष नीट की परीक्षा देते हैं लेकिन कुछ ही स्टूडेंट ही हैं, जो अपने इस सपने तक पहुंच पाते हैं।

इस साल 16 लाख 14 हज़ार 777 स्टूडेंट्स ने एनईईटी यूजी 2021 का रजिस्ट्रेशन किया था, इनमें से 15 लाख 44 हज़ार 275 स्टूडेंट्स ही परीक्षा देने पहुंचे और इसमें कुल 87,0074 स्टूडेंट्स ही पास हुए।

नीट को वर्ष 2016 में पूरे भारत देश मे सामान्य मेडिकल परीक्षा के रुप मे लागू किया गया था। इस से पहले एआईपीएमटी की परीक्षा देश में स्थित सभी सरकारी मेडिकल कॉलेज की 15% सीट्स के लिए केंद्र के द्वारा आयोजित की जाती थी एवं बची 85% स्टेट सीट्स के लिए सभी राज्यों के द्वारा स्टेट पीएमटी का आयोजन किया जाता था। 

एआईपीएमटी के लिय क्वालीफाइंग अंक सामान्य वर्ग के लिए 50% और आरक्षित वर्ग के लिए 40% होते थे। इसके हिसाब से सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थी को 720 में से 360 अंक और आरक्षित वर्ग को 288 अंक हासिल करने होते थे। राज्य पीएमटी मे भी 50% सामान्य वर्ग के लिए एवं 40% आरक्षित वर्ग के लिए निर्धारित अंक थे।

नीट में यह नम्बरों का फेर बदल अब परसेंटाइल सिस्टम है। परसेंटाइल सिस्टम के कारण जितने स्टूडेंट्स परीक्षा में शामिल होते हैं, उनमें से 50% स्टूडेंट्स को पास कर दिया जाता है। वर्ष 2021 की नीट परीक्षा में सामान्य श्रेणी से 138 नंबर वाले और आरक्षित श्रेणी से 108 नंबर वाले अभ्यर्थी क्वालीफाई मान लिए गए हैं।

गरीब स्टूडेंट्स का हक छीनता परसेंटाइल सिस्टम

भारत के 541 मेडिकल कॉलेजों में कुल 82,926 एमबीबीएस सीटें हैं, जिसमें 278 शासकीय और 263 प्राइवेट कॉलेज शामिल हैं।  एमबीबीएस की करीब आधी सीटें प्राइवेट मेडिकल कॉलेज के अंतर्गत आती हैं जिनकी सालाना न्यूनतम फीस 15 से 25 लाख रुपये के बीच है। इस फीस में रहने और खाने का खर्चा अलग से जोड़ा जाए तो 5 वर्षो में यह आंकड़ा करीब 1 करोड़ रुपये तक हो जाता है।

यानि यदि आप आपके पास अच्छे अंक हैं लेकिन पैसे नहीं हैं, तो आप इन प्राइवेट कॉलेज में दाखिला नहीं ले सकते हैं। इसी कारण से कम अंक लाने वाले छात्र यदि उनके पास पैसे हैं, तो वह 108 अंक में भी भारत के किसी भी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में दाखिला ले सकते हैं।

720 में से 500 अंक लाने वाला छात्र पैसों की कमी के कारण अपना डॉक्टर बनने का सपना छोड़ देता है लेकिन पूंजीपतियों के बच्चे बड़े आराम से अपना यह सपना पूरा कर सकते हैं। यही कारण है, जो साल-दर-साल प्राइवेट मेडिकल कॉलेज अपनी मनमानी फीस बढ़ा रहे हैं।

प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की बढ़ती फीस पर सरकार ने अपनी आंखें मूंद रखी हैं। आज सामान्य परिवार का छात्र मेडिकल कॉलेज में पढ़ने का बस सपना देख सकता है और अच्छे अंक लाने के बाद भी स्वयं का डॉक्टर बनने का सपना पूरा करने के लिए उसके पास पैसे नहीं हैं। उस मेहनती छात्र की योग्यता को परसेंटाइल सिस्टम ने बर्बाद कर दिया है। 

अच्छी शिक्षा हर एक भारतीय का मूलभूत अधिकार है, चाहे वह अमीर हो गरीब हो, किसी भी जाति, धर्म से हो। कई देशों में शिक्षा को मुफ्त रखा गया है, यदि आपके अंदर प्रतिभा है तो आप उच्च-से-उच्चतम शिक्षा बिना पैसों के भी प्राप्त कर सकते हैं।

जर्मनी इसका एक सशक्त उदाहरण है लेकिन भारत में आज भी मेधावी छात्र पैसे ना होने के कारण अपनी प्रतिभा को मार देते हैं और सरकार के द्वारा लागू किया गया यह परसेंटाइल सिस्टम इसका जीता जागता उदाहरण है।

सरकार को इस पर ध्यान देना होगा, कुछ नए नियमों से यह बड़ी समस्या हल की जा सकती है। परसेंटाइल सिस्टम को हटा कर परसेंटेज में पुनः बदला जाए और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की बढ़ती हुई फीस पर लगाम लगाने के लिए देश स्तर पर फीस रेगुलेटरी कमेटी का गठन किया जाए, जो कि इन प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की बढ़ती हुई बेलगाम फीस पर लगाम लगा सके। 

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