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तेज़ी से बढ़ता वायु प्रदूषण, घुटती सांसों के लिए ज़िम्मेदार कौन?

तेज़ी से बढ़ता वायु प्रदूषण, घुटती सांसों के लिए ज़िम्मेदार कौन?

पिछले कुछ सालों में वायु प्रदूषण मानव जाति के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बनकर सामने आया है। आधुनिकीकरण की अंधी दौड़ में तेज़ी से बढ़ती पेट्रोल व डीज़ल चलित वाहनों की संख्या, निर्माण स्थलों से उठने वाली धूल के अति सूक्ष्म कण, कारखानों की चिमनियों से निकलने वाले धुएं, ठोस कचरे एवं खेत में फसलों के अवशेष जलाने, पराली, पटाखे, फैक्ट्रियां व अन्य कई कारणों से वैश्विक आबोहवा बिगड़ती जा रही है, जिसकी वजह से, लोगों का सांस लेना भी अब दूभर होता जा रहा है।

विषैली गैसें व प्रदूषक तत्व बनते जा रहे हैं स्वास्थ्य के लिए खतरा

हवा में ओजोन, सल्फर डाई ऑक्साइड (एसओ – 2), कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ), अमोनिया (एन एच – 3), नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड (एनओ – 2), धूल कण (पीएम – 10) के साथ-साथ अति सूक्ष्म कण (पीएम – 2.5) से भी बेहद छोटे-छोटे कण होते हैं, जिन्हें सिर्फ माइक्रोस्कोप की मदद से देखा जा सकता है।

हमारे सांस लेने के दौरान ये कण आसानी से हमारे फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं, जो बेहद नुकसानदायक होते हैं। ये आगे चलकर फेफड़ों और हृदय से जुड़ी बीमारियों के कारण बनते हैं और ज़हरीले धुएं की वजह से दमा, एलर्जी, आंखों की बीमारियों के होने का खतरा बना रहता है।

विशेषज्ञों के अनुसार, ओद्योगिक नगरी में उत्सर्जित होने वाली कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन एवं ऑर्गेनिक जैसी विषैली गैसों और प्रदूषण का प्रभाव मानव जीवन पर बुरी तरह से पड़ रहा है, जिसके कारण लगभग 65% लोग गम्भीर बीमारियों से परेशान हैं।

यदि सरकारी या गैर सरकारी अस्पतालों में प्रतिदिन आने वाले मरीज़ों के आंकड़ों को देखें, तो प्रत्येक तीन में से एक व्यक्ति, आंखों में जलन, फेफड़ों का कैंसर, श्वास, एलर्जी, चर्म रोग, टीबी रोग, हृदय से संबंधित रोग, एम्फाइसिम जैसी खतरनाक बीमारियों से ग्रसित नज़र आता है।

सर्वाधिक प्रदूषण वाले शहर

वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट – 2020 के अनुसार, चीन के शिनजियांग सहित दुनिया के 30 में से 22 सबसे प्रदूषित शहर भारत के हैं, जिसमें प्रमुख रूप से भारत की राजधानी दिल्ली सहित उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, बुलंदशहर, बिसरख जलालपुर, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, कानपुर, लखनऊ, मेरठ, आगरा, बिहार का मुजफ्फरपुर, राजस्थान का भिवाड़ी, हरियाणा के फरीदाबाद, जींद, गुरुग्राम, यमुना नगर, रोहतक, धारुहेड़ा शामिल हैं।

विषैली गैसें और धुंए का दुष्प्रभाव

हमारे वायुमंडल में मौजूद विषैली गैसों और धुंए का दुष्प्रभाव सिर्फ स्थानीय लोगों पर ही नहीं बल्कि पशु-पक्षियों व वनस्पतियों पर भी पड़ रहा है।

दुनिया के प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ मिलकर आईआईटी मुंबई के जानकारों द्वारा किए गए एक शोध के मुताबिक, भारत की राजधानी दिल्ली में हर वर्ष लगभग 14,800 लोगों की मौत का मुख्य कारण वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियां हैं।

वायु प्रदूषण पर नज़र रखने वाले एयर क्वॉलिटी लाइफ इंडेक्स (एक्याएलआई) और शिकागो विश्वविद्यालय स्थित एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट द्वारा किए गए गहन अध्ययन के अनुसार, वायु प्रदूषण के चलते उत्तर भारत में सामान्य इंसान की ज़िंदगी औसतन 7.5 साल कम हो रही है।

जो वर्ष 1998 में लगभग 3.7 साल थी। इस शोध के मुताबिक वर्ष 1998 और 2006 के बीच उत्तर भारत में प्रदूषण के स्तर में लगभग 72% की बढ़ोत्तरी हुई है।

औद्योगिक नगरी में वायु प्रदूषण

कांच की चूड़ियों के लिए विश्व विख्यात सुहाग नगरी में कभी 300 से भी अधिक कारखाने व भट्टियां संचालित हुआ करती थीं लेकिन नियमों की अनदेखी के चलते प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता ही चला गया। ताज ट्रपेजियम जोन (टीटीजेड) में आने के बाद मानकों को पूरा ना कर पाने की स्थिति में ज़्यादातर कारखाने व भट्टियां बंद हो गए हैं।

वर्ष 2018 में ग्रीन पीस इण्डिया द्वारा किए गए एयरपोकेलिप्स सर्वे में देश के 10 सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहरों में फिरोजाबाद का नौंवा और उत्तर प्रदेश में छठवां स्थान था। वायु प्रदूषण को रोकने के लिए सुहागनगरी में कई वर्षों से कोयला और लकड़ी के ईंधन जलाने पर भी रोक लगी हुई है।

231 शहरों में कराए गए एक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार, हवा में पीएम 10 का स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पाया गया था, जो कि खतरनाक स्थिति कहलाती है।

टीटीजेड अथॉरिटी के निर्देश पर ज़िला प्रशासन द्वारा वर्ष 2019 में नागपुर की संस्था नेशनल इन्वायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) द्वारा औद्योगिक प्रदूषण वाले कारकों के वास्तविक कारणों की जांच कराई गई।

नीरी ने कई महीने तक ज़िले में वाहनों के आंकड़ों से लेकर इकाइयों का ब्योरा जुटाया, जिसमें कांच उद्योगों की 20 और अन्य कारणों की 80 प्रतिशत भागीदारी मानी गई थी। टीम ने सभी इकाइयों से लोकेशन, इकाइयों में कितनी चिमनी हैं, क्या आइटम बनता है, कितनी क्षमता है। कारखानों के गेट पर खड़े होकर गूगल मैप के लिए लोकेशन आदि ट्रैस भी की।

नीरी द्वारा किए गए सर्वे में वायु प्रदूषण के मुख्य कारणों में सड़कों पर दौड़ने वाले 15 साल पुराने व डीजल से संचालित वाहन, ढाबों, हलवाई व चाय की दुकानों पर प्रयोग होने वाली भटठी, कूड़ा-करकट जलाने, धूल उड़ने, निर्माण कार्यों व अन्य को बताया गया।

जानिए, क्या होता है वायु गुणवत्ता की स्थिति का मानक?

0 – 50 अच्छी
51 – 190 संतोषजनक
101 – 200 मध्यम
201 – 300 खराब
301 – 400 बहुत खराब
401 – 500 खतरनाक

क्या कहते हैं विशेषज्ञ ?

चर्म एवं एलर्जी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर इमरान के अनुसार, लम्बे समय तक वायु प्रदूषण के प्रभाव से मनुष्य का तंत्रिका तंत्र, मस्तिष्क, गुर्दे, यकृत आदि अंग खराब हो सकते हैं। कार्बनडाई ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, मीथेन, क्लोरो फ्लोरो कार्बनस इत्यादि हानिकारक गैसों की वजह से मनुष्य विभिन्न प्रकार के चर्म रोगों और एलर्जी से ग्रसित रहता है।

ज़िला क्षयरोग केंद्र फिरोजाबाद के पी.पी.एम.समन्वयक मनीष कुमार के अनुसार, औद्योगिक नगर की फैक्ट्रियों में कांच की चूड़ियां, ग्लास, बर्तन आदि सामान तैयार करते समय उड़ने वाले धूल के अत्यधिक सूक्ष्म कण हवा में घुलकर हमारी श्वास के साथ हमारे फेफड़ों तक अंदर चले जाते हैं, जो व्यक्ति के फेफड़ों को बुरी तरह से जख्मी कर देते हैं जिसकी वजह से खांसी उत्पन्न हो जाती है।

यदि किसी भी व्यक्ति को दो सप्ताह से अधिक समय तक खांसी रहती है, तो उसे अविलम्ब नज़दीकी क्षय रोग विशेषज्ञ से संपर्क कर टीबी रोग की जांच अवश्य करा लेनी चाहिए। सभी सरकारी अस्पतालों में यह जांच निःशुल्क की जाती है और सरकार की महत्वाकांक्षी योजना “निक्षय पोषण” के अंतर्गत समस्त चिन्हित एवं उपचारित क्षयरोगियों (टी बी रोगियों) को पौष्टिक आहार के लिए डीबीटी के माध्यम से इलाज के दौरान प्रतिमाह 500 रुपये भी सीधे लाभार्थी के खाते में दिए जाते हैं।


नोट: लेखक प्रवीण कुमार शर्मा, पर्यावरण प्रेमी और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। प्रवीण की यह स्टोरी YKA क्लाइमेट फेलोशिप के तहत प्रकाशित की गई है।

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