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“मज़हबी दीवारों को बड़े आराम से तोड़ती है मेरी चाय की एक प्याली”

चाय की बात ज़हन में आते ही सबसे पहला ख्याल ट्रेन का आता है। याद है ना? ट्रेन में सफर के दौरान सुबह जैसे ही नींद खुलती है, तो ‘चाय चाय’, ‘ए गरम चाय’, ‘खराब चाय’ की आवाज़ें हमें सुकून दे जाती हैं। ट्रेन में अजनबियों से बातचीत के दौरान हमारा एक साथी, चाय भी होता है, जिसकी चुस्कियां हमारी थकान को दूर करने के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को ठीक करने तक हमारा साथ देती हैं।

मेरे लिए चाय एक ऐसी चीज़ है, जो मज़हब के बीच की दीवारों को भी बड़े आराम से तोड़ देती है। तभी तो पड़ोस के सुल्तान मियां के घर में कभी-कभार हमारी चाय एक साथ हो जाती है। केरल का एक क्रिश्चन दोस्त, जो छुट्टियों में ही हमसे मिलने आता है मगर चाय की प्याली से ही हमारी बातचीत शुरू होती है।

पंजाब के जगमोहन अंकल से जब भी लुधियाना में मिलता हूं, कहीं पर खड़े होकर हम चाय ही पी रहे होते हैं और अब तो बिट्टू भैया भी असलम, क्रिस्टोफर और हरदीप के साथ चाय की चुस्कियां लेते दिखते हैं।

मज़हबी एकता से इतर, अगर हम बात करें तो चाय की एक प्याली जीवन की बड़ी से बड़ी मुश्किलों से लड़ने के लिए हमें ताकत देती है। मैं रोज़  शाम को शहर से 4 किलोमीटर दूर हाईवे पे ‘मंडल चाचा’ के यहां पिछले 10 वर्षों से जाकर चाय पीता हूं।

चाय की प्याली तो महज़ पांच रुपये की होती है मगर चाय के ज़रिये जो एक खूबसूरत सा रिश्ता हमारे बीच बन पाया है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है।

मैं पेशे से एक मैकेनिकल इंजीनियर हूं। काम का दबाव कई दफा हमारे मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है मगर दबाव और थकान के बीच जब भी मुझे चाय की एक प्याली मिल जाती है, तो जीवन का मुश्किल डगर भी आसान लगने लगता है।

मैं जीवन भर चाय पीते रहना चाहता हूं। हां, पड़ोस के खान मियां के साथ उनके घर पर बैठकर चाय पीते रहना चाहता हूं, ताकि मज़हबी नफरत फैलाने वालों तक यह पैगाम पहुंचे कि चाय तो चाय होती है, जिसके बीच सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने वाले लोगों के लिए कोई जगह नहीं है।

मैं केरल के उस क्रिश्चन दोस्त के साथ भी चाय पीते रहना चाहता हूं, ताकि आने वाली नस्लें किसी को इंट्रोड्यूज़ कराने से पहले ये ना पूछें कि आपका मज़हब क्या है, बल्कि ये कहा जाए कि आइए ना चाय पर मिलते हैं!

मैं पंजाब के जगमोहन अंकल के खेतों में जाकर उनके साथ चाय पीते रहना चाहता हूं, ताकि जब भी किसी सिख भाईयों के साथ चाय पर चर्चाएं हों, तो आपसी सौहार्द की बातें हों ना कि अतीत के दंगों पर गर्मजोशी की बहसों के बीच हम मिलें।

तो आइए, इस न्यू ईयर हम चाय की खूब चुस्कियां लें, आपसी सौहार्य को बढ़ाएं और अपने मानसिक स्वास्थ्य को बेटर करने के साथ-साथ पड़ोस में भी चाय के ज़रिये भाईचारे को कायम करें।

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