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लड़कियों की विवाह की उम्र अब 18 से 21 होगी, केबिनेट से प्रस्ताव पास

लड़कियों की विवाह की उम्र अब 18 से 21 होगी, केबिनेट से प्रस्ताव पास

इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट 1872, पारसी मैरिज एंड डिवोर्स एक्ट 1936, स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 और हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 सभी के अनुसार, शादी करने के लिए लड़के की उम्र 21 वर्ष और लड़की की 18 वर्ष होनी चाहिए।

इसमें धर्म के हिसाब से कोई बदलाव या छूट नहीं दी गई है। फिलहाल बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 लागू है, जिसके मुताबिक विवाह की वैधानिक उम्र से कम उम्र की शादी को बाल विवाह माना जाएगा। ऐसा करने और करवाने वालों के लिए 2 साल की जेल और एक लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। 

लड़कियों की शादी की उम्र पर लंबे समय से तर्क-वितर्क रहे हैं

भारत में लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर काफी लंबे समय से बात-चीत होती रही है। बाल विवाह जैसी प्रथा पर रोक के लिए आज़ादी के पहले भी कई बार लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर बदलाव किया गया है।

दरअसल, आज़ादी के पहले लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर अलग-अलग न्यूनतम आयु तय की गई थीं, लेकिन कोई ठोस कानून ना होने से 1927 में शिक्षाविद्, न्यायाधीश, राजनेता और समाज सुधारक हरविलास  शारदा ने बाल विवाह रोकथाम के लिए एक विधेयक पेश किया।

इस विधेयक में शादी के लिए लड़कों की उम्र 18 और लड़कियों के लिए 14 साल करने का प्रस्ताव था। 1929 में यह कानून बना जिसे शारदा एक्ट के नाम से जाना जाता है। 1978 में इस कानून में संशोधन हुआ और लड़कों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 और लड़कियों के लिए 18 साल कर दी गई और 2006 में बाल विवाह रोकथाम कानून लाया गया।

शादी के लिए सही उम्र क्या है?

यदि हम पारंपरिक हिसाब से देखें, तो भारत में 20 से 25 साल की उम्र को शादी के लिए सही समझा जाता है। वर्तमान युग की बदलती सोच के मद्देनज़र कुछ लोग 25 से 30 की उम्र को शादी के लिए सही बताने लगे हैं लेकिन 28 साल के अशोक का कहना है कि ‘अब शादी के लिए उम्र का पैमाना कुछ और हो गया है। 

वे कहते हैं कि लोग सोचते हैं कि 32 से 35 साल के बीच हम शादी कर लेंगे। दरअसल, 20 से 30 साल की उम्र तक, तो आदमी अपने करियर को सेट करने में ही व्यस्त रहता है, तब शादी के लिए सोच पाना बहुत मुश्किल होता है।’

सुनीता पचौरी एक कॉलेज लेक्चरर हैं और उन्होंने अपनी शादी 34 से 35 साल की उम्र में की है। अब उनकी एक बेटी है और खुशहाल छोटा सा परिवार है लेकिन वे मानती हैं कि देर से शादी करने में कभी-कभी आपको वह नहीं मिल पाता, जो शायद आपने सोचा है।

वे कहती हैं, “कई बार अच्छे विकल्प मिल जाते हैं, तो कई बार ठीक-ठाक विकल्प मिलना भी मुश्किल हो जाता है। मेरे कई दोस्त हैं महिला भी और पुरुष भी, जिन्हें अब सही मैच नहीं मिल पा रहा है।”

हालांकि, नई सोच की दरकार के चलते नई पीढ़ी कुछ भी सोचे लेकिन भारत इस मामले में थोड़ा अलग है। वहां वक्त से शादी ना हो, तो लोग बातें बनाने लग जाते हैं। अब ऐसे में माँ-बाप चाहे कितने भी नई सोच के और व्यावहारिक हों, उन्हें आखिरकार रहना तो समाज में ही पड़ता है। 

नेहा कहती हैं, “जब भी आप ऑफिस से घर जाते हैं, तो आपको लगता है कि कहीं आज फिर शादी को लेकर नई टेंशन ना खड़ी हो। इससे घर की शांति भंग होती है और साथ ही आपके माता-पिता की सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है। उन्हें चिंता रहती है कि बच्चों की शादी नहीं हो रही है। समाज में गाहे-बगाहे उन्हें लोगों की बातें सुनने को मिलती हैं। इस तरह शादी के लिए भावनात्मक रूप से काफी दबाव होता है।

खासकर लड़कियों के लिए करियर और शादी का सवाल और भी अहम हो जाता है। शानदार करियर बनाने की तमन्ना हर किसी की हो सकती है लेकिन परिवार को पारंपरिक रूप से एक महिला की ही ज़िम्मेदारी समझा जाता रहा है। वैसे भी भारतीय परिवेश में कामकाजी महिलाओं की जवाबदेही ज़्यादा हो जाती है। पुरुष प्रधान समाज की अपनी मानसिकता है, तो वहीं महिलाओं को लेकर बुनियादी सामाजिक रूढ़िवादी सोच भी एक अहम मुद्दा है।

सुनीता कहती हैं, “अगर कोई टीचर सुबह आठ बजे घर से निकलती है और घर 2 बजे की बजाय चार बजे पहुंचे,  तो पहला सवाल उसके चरित्र पर ही उठता है, ऐसे में हो सकता है कि उसे दफ्तर में कुछ अतिरिक्त काम रहा हो लेकिन उससे सवाल-जवाब उसी तरह किए जाते हैं जैसे वो कोई अपराधी हो।”

विवाह के परिणाम

शादी के इतने नुकसान हैं कि उन पर एक महाग्रंथ प्रकाशित किया जा सकता है। आइए निम्न कुछ बिंदुओं में देखें कि शादी आपके जीवन में कितने बदलाव लाती है। इन बिंदुओं में शादी के उंगलियों पर गिने वाले चंद फायदों की तरफ पूर्णतया अपनी आंखें मूंद ली गई हैं।

सोर्स :आजतक, जर्मन रेडियो, विकिपीडिया

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