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“मैरिटल रेप कानून से विवाह और परिवार जैसी संस्था मज़बूत होगी”

वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में शामिल करने से विवाह जैसे संस्था खतरे में पड़ सकती है। विवाह और परिवार संस्था में महिलाओं ने जब भी सुधार के उम्मीद से अपने सवालों की खुदमुख्तारी की है, इस तरह की बाते होने लगती है।

फिर चाहे सयुक्त परिवार से व्यक्तिगत परिवार बनने दौर रहा हो या फिर महिलाओं को तलाक संबंधी अधिकार मिलने की बात हो या फिर पिता के संपत्ति में बेटी के अधिकार मिलने की बात हो। वैवाहिक दुष्कर्म के मामले में जिस तरह की बहसे चल रही है वह महिलाओं के हक में इसलिए है क्योंकि कम से कम इसपर बात हो रही है।

वैवाहिक दुष्कर्म पर अदालती फैसले

बता दें, पिछले दिनों कई गैर-सरकारी संगठनों ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की और वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध करार देने का अनुरोध किया। जिसपर उच्च न्यायालय के अनुसार वैवाहिक दुष्कर्म के मामले में प्रथम दृष्टया सजा मिलनी चाहिए और इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि  ”यह कहना ठींक नहीं है कि अगर किसी महिला के साथ उसका पति जबरन संबंध बनाता है तो वह महिला धारा-375(दुष्कर्म) सहारा नहीं ले सकती और उसे अन्य फौजदारी या दीवानी कानून का सहारा लेना पडे़गा, ठीक नहीं है ।“ न्यायालय के इस टिप्पणी ने एक साथ कई सवालों को खड़ा कर दिया है जिसपर बाते हो रही है।

इससे पहले छतीसगढ़ हाईकोर्ट ने मैरिटल रेप के मामलों में कहा है कि एक पति का अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाना बलात्कार नहीं है चाहे वो दबाव में या उसकी इच्छा के विरुद्ध संबंध बनाया गया हो। वही केरल हाई कोर्ट का यह मानना है कि पत्नी के शरीर पर पति का अधिकार है और उसकी इच्छा के विरुद्ध संबंध बनान मैरिटल रेप है।

वैवाहिक दुष्कर्म पर कई आशकाएं है

मैरिटल रेप को कानून अपराध न मानकर गुड रेप और बैड रेप पर बहसे सोसल मीडिया पर चल रही है। इन बहसों में कई आशंकाए भी है  मसलन, पहला, विवाह और परिवार जैसी संस्था खतरे में पड़ जाएगी। दूसरा, मैरिटल रेप को कानूनी अपराध बनाने पर बदले की भावना से पत्नियों द्दारा बड़े पैमाने पर दुरुपयोग होगा। तीसरा, साबित कैसे होगा कि पति-पत्नी के बीच जबरन सबंध बना है या सहमति से। चौथा, जब घरेलू हिंसा अधिनियम है जिसमें यौन हिंसा के खिलाफ प्रावधान है तो फिर मैरिटल रैप को कानूनी मान्यता क्यों देनी है?

गौरतलब है कि भारतीय कानून की नज़र में मैरिटल रेप कोई अपराध नहीं है। हमारे समाज में विवाह के पहले भी और विवाह के बाद भी औरत या तो वस्तु है या संपत्ति, जिसकी सहमति-असहमति के मायने कोई बात नहीं रखती है। भले ही ”पिंक“ फिल्म में वकील बने अमिताब बच्चन जब डायलांग बोलते है कि ”ना का मतलब ना होता है, उसे बोलने वाली लड़की कोई परिचित हो, फ्रेंड हो, गर्लफ्रेंड हो, या सेक्स वर्कर हो या आपकी बीबी ही क्यों न हो, ना का मतलब ना होता और जब कोई ये बोलता है तो तुम्हें रुकना है…“ तो पूरा थियेटर तालियों के गूंज उठता है। जाहिर है वैवाहिक दुष्कर्म को लेकर सर्वोच्च अदालतों में ही नहीं सोचने-समझने वाले लोगों के साथ-साथ आमलोगों के मन में भी कई शंका-आशंका, सहमति-असहमति मौजूद है।

सबसे पहली आशंका यही है कि विवाह और परिवार जैसी संस्था खतरे में पड़ जाएगी? जिस परिवार की शुरुआत ही बलात्कार जैसे शोषण से हो, वह आदर्श परिवार कैसे हो सकता है? देखा जाए तो दामत्य जीवन में वैवाहिक दुष्कर्म हिंसा के शुरुआत की पहली सीढ़ी है।

दामप्यं जीवन में  सबंध बनाने के लिए जीवनसाथी की सहमति  मजबूत परिवार की आधारशिला होगी न कि परिवार के टूटने की। जब विवाह और परिवार जैसी संस्था किसी भी महिला को सबसे अधिक सामाजिक सुरक्षा, भौतिक सुरक्षा और आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती है। साथ ही साथ अपने पति और बच्चों के साथ पारस्परिक प्रेम का विस्तार करती है, तो परिवार और विवाह जैसी संस्था कभी खतरे में पड़ ही नहीं सकती है। वैवाहिक दुष्कर्म के संबंध में कानून की चाह केवल महिलाओं का विवाह और परिवार जैसी संस्था में समानता के तरफ एक मील का पत्थर साबित होगा। महिलाओं का विश्वास और अधिक मजबूत होगा कि विवाह और परिवार जैसी संस्था में सहमति से बनाया गया संबंध उसकी यौनिकता का सम्मान ही नहीं करती है उसके प्रति जिम्मेदार भी है।

दूसरी आशंका है कि वैवाहिक दुष्कर्म को कानूनी अपराध बनाने पर बदले की भावना से पत्नियों द्दारा बड़े पैमाने पर दुरुपयोग होगा। यह आशंका पत्नीयों के प्रति इस पूर्वाग्रह से भरी हुई है कि पत्नियां बदले की भावना से कानून का दुरुपयोग करेगी। जब विवाह या परिवार पत्नीयों को सबसे अधिक सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा देने के साथ-साथ भावनात्मक प्रेम भी देता है तब वह अपना सबकुछ कैसे दांव पर लगा सकेगी?  वह अपना सम्मान, पति-बच्चे से बिछुड़ने के डर, दूसरी शादी न हो पाने के आशंका और अकेले जीवन निवार्ह के चुनौतियों से इतनी घिरी होगी। शायद ही वो झूठे मामले में अपने पति को फंसाने के बारे में सोच सकेगी। वैवाहिक दुष्कर्म जैसे कानून उसके भावनात्मक संबंध में समानता के विचार को जरूर स्थापित करने में कारगर साबित होगा। वह निश्चित होगी जीवनसाथी के साथ बनाये जाने वाले संबंध में उसकी सहमति का भी सम्मान होगा।

तीसरी आशंका है कि साबित कैसे होगा कि पति-पत्नी के बीच जबरन सबंध बना है या सहमति से। वैवाहिक दुष्कर्म  घर के चारदीवारी के भीतर घटित होने वाली घटना है, जिसका साक्षी कोई नहीं हो सकता। शारीरिक हिंसा के निशान मेडिकल परीक्षण में आसानी से साबित हो सकते है। जहां शारीरिक निशान या हिंसा नहीं हो वहां पति-पत्नी के संबंधो की कंसिस्टेंसी बहुत सारे तथ्य जाहिर कर सकते है। मर्दागनी या वर्चस्व दिखाने के चक्कर में किसी खास पोजीशन में सेक्स करने से मना करने पर जबरन सेक्स के निशान विभत्स रूप से शरीर और मन दोनों पर होते है। मैरिटल रेप में सत्यता और असत्यता सिद्ध करना कठिन जरूर है पर असंभव नहीं है।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि  progress of world women2019-20 की रिपोर्ट बताती है कि विश्व के 185 देशों में 77 देशों में वैवाहिक दुष्कर्म को लेकर कानून है। 108  देशों में 74  देशों में महिलाओं को अपने पति के खिलाफ शिकायत करने का अधिकार है। भारत समेत 34 देश है जहां वैवाहिक दुष्कर्म को लेकर कोई कानून नहीं है। यह सही है कि भारतीय कानून किसी दूसरे देश के कानून को कांपी नहीं कर सकता है। परंतु, अन्य देखों के कानून के आलोक में देश के विविधता,श्रेणीबद्धता और महिलाओं के सामाजिक-सास्कृतिक-आर्थिक दासता के आधार पर नई व्यवस्था विकसित तो कर ही सकता है।

चौथी आशंका है, जब घरेलू हिंसा अधिनियम है जिसमें यौन हिंसा के खिलाफ प्रावधान है तो फिर मैरिटल रैप को कानूनी मान्यता क्यों देनी है? घरेलू हिंसा अधिनियम पीड़िता के सुरक्षा और आर्थिक क्षतिपूर्ति तक ही सीमित है। इसका लाभ पत्नी तक पहुंच नहीं पाता है शिकायत दर्ज होने के बाद पत्नी की स्थिति परिवार में भी दयनीय हो जाती है। इस स्थिति में जब महिलाएं वैवाहिक दुष्कर्म पर शिकायत दर्ज करेगी तो परिवार में उनकी स्थिति अधिक चिंताजनक हो जाएगी।

वैवाहिक दुष्कर्म पर समय-समय पर न्यायालय में आ रही शिकायतें इस बात पर इशारा तो दे रही है कि अधिक दिनों तक शुतुरमुर्ग के तरह रेत में सर रखकर समस्या टाली नहीं जा सकती है। परंतु, वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध के सूची में डालने से पहले कई पहलुओं पर विचार करके के साथ पुरुषों और युवको को दामप्त्य जीवन में सहयोगी और संवेदनशील होने का पाठ सीखाना जरूरी है क्यंकि पूर्वाग्रह आधारित आशंकाए उनको विवाह और परिवार जैसी संस्था से दूरी बनाने को मजबूर करेगे।

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