बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समर्थक उनको सुशासन बाबू कहते नहीं थकते। उनका मानना है कि सुशासन बाबू के राज में बिहार में सबकुछ अच्छा चल रहा है। इसलिए तो वो नारा लगाते फिरते हैं कि बिहार में बहार हो नीतीशे कुमार हो। लेकिन जो सच्चाई है उसे देख कर तो मन में यही आयेगा कि अगर ये सुशासन है तो गुंडाराज किसे कहेंगे। जी हां, सुशासन बाबू के राज को गुंडाराज कहना कहीं से गलत नहीं होगा। क्योंकि बिहार में पंचायत चुनाव खत्म हुए अभी महीना भर में नहीं हुआ हैं लेकिन 6 नवनिर्वाचित मुखिया की खुलेआम हत्या हो चुकी है। अपराधी बेखौफ आते हैं और दिनदहाड़े गोली मारकर चलते बनते हैं। मानों पुलिस का इनकों कोई डर ही नहीं है, यहां सिर्फ गुंडाराज हो।
ऐसा इसलिए है क्योंकि बिहार में इन दिनों अपराधियों का बोलबाला। वो जब जहां चाहते हैं बेखौफ आते हैं और हत्या करके चलते बनते हैं। फिर चाहे आप साधारण आदमी हो या कोई जनप्रतिनिधि और अफसर गुंडे के आगे सभी नतमस्तक हैं।
चुनाव जीत कर बने हैं मुखिया तो मार दी जाएगी गोली!
इसलिए अगर आप जनता के समर्थन से नेताजी बन गए हैं , लेकिन गुंडों कि आंखों की किरकिरी हैं तो आपको गोली मार दी जाएगी या फिर गला रेतकर बीच सड़क पर मार दिया जाएगा। बिहार में पंचायत चुनाव खत्म होने के बाद फिलहाल यही दौर चल रहा है। क्योंकि अब तक छह नवनिर्वाचित मुखिया की हत्या हो चुकी है। बताया जा रहा है कि ये सभी हत्याएं वर्चस्व को लेकर हुआ है।
पंचायत चुनाव समाप्त होने के महीने भर के अंदर 6 नवनिर्वाचित मुखिया की हुई हत्या।
अब हम आपको बताते हैं ये हत्याएं कब और कैसे हुई। इसके बाद आप भी निर्णय ले सकते हैं कि बिहार में अभी सुशासन हैं या गुंडाराज। मुखियाओं की हत्या के इस खूनी खेल की शुरुआत भोजपुर जिले में 15 नवंबर 2021 से हुई है। जिसके बाद मानों सिलसिला चल पड़ा हो। पटना में दो, जमुई में एक, मुंगेर में एक और गोपालगंज में भी एक मुखिया की हत्या की गई। सभी हत्याओं के पीछे गांव में वर्चस्व और विरोधी का हार नहीं मान पाना है। पहली हत्या 15 नवंबर 2021 को भोजपुर जिले के चरपोखरी प्रखंड की बाबूबांध पंचायत के नवनिर्वाचित मुखिया संजय सिंह की हुई थी। संजय सिंह बुलेट पर सवार होकर चरपोखरी थाना क्षेत्र के ठेंगवा गांव जा रहे थे। इसी बीच एंबुलेंस से आए हथियारबंद बदमाशों ने उन्हें दिनदहाड़े गोली मारी थी। संजय सिंह अपनी पंचायत से दूसरी बार मुखिया पद पर जीत चुके थे। वो अपने निकटतम प्रतिद्वंदी अनिल कुमार सिंह को 74 वोट से हराकर दोबारा मुखिया बने थे।
दूसरी हत्या 3 दिसंबर 2021 को जमुई के अलीगंज प्रखंड की दरखा पंचायत के मुखिया जयप्रकाश प्रसाद उर्फ प्रकाश महतो की हुई। कहा जाता है कि प्रकाश महतो शारदा होटल से बाल कटवाने के लिए सैलून की तरफ बढ़ रहे थे तभी बाइक सवार 3 हमलावरों ने मुखिया को चार गोली मार दी, जिससे उनकी मौत हो गई।
तिसरी घटना 11 दिसंबर 2021 की है. पटना के पंडारक पूर्वी से जीते मुखिया प्रियरंजन कुमार उर्फ गोरेलाल बाढ़ से एक शादी समारोह से घर लौट रहे थे। तभी बाइक सवार दो बदमाशों ने मुखिया, ASI और एक अन्य युवक को गोली मार दी। जिसके बाद मुखिया और ASI इलाज के दौरान मौत हो गई। जबकि 14 दिसंबर 2021 को भी पटना फुलवारीशरीफ प्रखंड के रामपुर फरीदपुर पंचायत के मुखिया नीरज कुमार अपने घर के नजदीक बैठे थे। तभी 3 हमलावर उनके नजदीक पहुंचे और उन्हें गोलियों से भून डाला था।
5 वीं हत्या 23 दिसंबर 2021 को हुई। जब मुंगेर जिले के धरहरा प्रखंड की अजीमगंज पंचायत के नवनिर्वाचित मुखिया परमानंद टुड्डू की नक्सलियों ने घर से खींचकर सड़क पर गला काट कर हत्या कर दी। बताया जाता है कि 2016 में योगेंद्र कोड़ा मुखिया का चुनाव जीतकर 5 साल मुखिया रहा। 2021 में भी योगेंद्र कोड़ा चुनाव लड़ा। लेकिन, परमानंद कोड़ा से वह चुनाव हार गया। चुनाव में हुई हार का बदला लेने के लिए उन्होंने नक्सलियों के साथ मिलकर इस हत्याकांड को अंजाम दिया। 18 जनवरी 2022 को भी गोपालगंज में एक मुखिया की गोली मारकर हत्या कर दी गई। बताया जा रहा है कि गोपालगंज के थावे थाना क्षेत्र की धवतनी पंचायत में चुनावी रंजिश में मुखिया सुखल मुसहर की बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी।
जब जनप्रतिनिधि ही सुरक्षित नहीं तो आम जनता का क्या होगा ?
यह आंकड़े तो पंचायत चुनाव खत्म होने के महज एक महीने के अंदर के हैं। आगे हत्याओं का यह आंकड़ा कितना आगे जाता है। यह देखने वाली बात है। लेकिन इन सबसे एक बात तो साफ है कि बिहार में जब एक जनप्रतिनिधि तक सुरक्षित नहीं हैं तो आम जनता की जान का क्या भरोसा। अगर इसे ही सुशासन कहते हैं तो जनता तो कस से कम ऐसी राज नहीं ही चाहेगी.