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भारत केन्द्रित पाकिस्तान कि राष्ट्रिय सुरक्षा निति के मायने

पाकिस्तान ने इस वर्ष अपनी पहली राष्ट्रिय सुरक्षा निति 2022-2026 कि घोषणा कि है जिसके केंद्र में भारत हैं| यह न केवल भारत कि मिडिया में चर्चा का विषय है बल्कि अंतराष्ट्रीय मिडिया का ध्यान भी खिंच रहा है| भारत और पाकिस्तान के संबंधों पर विशेषज्ञों का मानना है कि यह निति किसी भी और देश कि तुलना में भारत को अधिक केंद में रखते हुए बनाई गई हैं| इसकी साफ झलक हमें इसके दस्तावेज में बार-बार भारत और कश्मीर का जिक्र आने से ही मिल जाता है| द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, किसी भी दूसरे देश की तुलना में भारत का कम से कम 16 बार और दिप्रिंट के अनुसार कश्मीर का 113 बार उल्लेख किया गया है| इसमें कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर विवाद का एक न्यायसंगत और शांतिपूर्ण समाधान भारत और पाकिस्तान के द्विपक्षीय संबंधों के मूल में था| 

हालाँकि इस दस्तावेज के आने से पहले भी पाकिस्तान कि नीतियां भारत को केंद्र में रख कर बनाई हुई दिखती आ रही थी, जिसे सालों बाद राष्ट्रिय सुरक्षा निति के रूप में आधिकारिक रूप में स्वीकार किया है| 

बाहरी सुरक्षा पर इसमें कहा गया है कि भारत के परमाणु सयंत्रों का विस्तार इस क्षेत्र में सामरिक संतुलन को बिगाड़ता है| हालाँकि वह कश्मीर पर बातचीत कि वकालत करते हुए कहता है कि लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवादों के प्रबंधन के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है जो सुरक्षा के लिए खतरा बने हुए हैं जहाँ वह क्षेत्रीय शांति की तलाश करेगा। पाकिस्तान भारत कि आन्तरिक रूप से होने वाली राजनीती को भी अपने सुरक्षा नीतियों में गिनते हुए लिखता है कि भारत ‘हिंदुत्ववादी राजनीति’ पाकिस्तान के साथ दुश्मनी को अपनी धुरी बनाएगा, जो भविष्य में युद्ध का रूप भी ले सकता है|

पाकिस्तान अपनी निति में अफगानिस्तान, चीन, भारत, ईरान अहम देशो कि सूचि में मानता है, इसके बाद अन्य हैं और अमेरिका का नाम भी इनमें रखा गया है| ऐसा पहली बार है जब पाकिस्तान अमेरिका से अपनी दूरी को भी दिखा रहा है|

पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति 2022-2026 के अन्य मुख्य बिंदु: पाकिस्तान ने अर्थव्यवस्था को राष्ट्रीय सुरक्षा का जिस तरह मुख्य आधार बताया गया है विशेषज्ञों के अनुसार वह तारीफ के योग्य है| यह सेना से ध्यान हटाकर नागरिक-केंद्रित ढांचे की ओर स्थानांतरित करना चाहता है और इसका उद्देश्य आर्थिक सुरक्षा को इसके मूल में रखना है जिस हिसाब से वहां अर्थवयवस्था के हालात हैं जिसमें सुधर के लिए वह 11 वी बार IMF का रुख कर रहा है;

इसमें सभी नागरिकों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा की गारंटी के लिए देश के सभी हिस्सों में सरकार का अधिकार सुनिश्चित करना, आतंकवाद, हिंसक उप-राष्ट्रवाद, उग्रवाद, संप्रदायवाद और संगठित अपराध का मुकाबला करने को प्राथमिकता देने सहित यह सुनिश्चित करने कि बात भी करता है जहाँ पाकिस्तान कि बौद्धिक गतिविधि, व्यवसायों, निवेशकों और पर्यटकों और मेहमानों के लिए एक सुरक्षित गंतव्य बना रहे; इसके अलावा, रक्षा उत्पादन का स्वदेशीकरण, नेटवर्क केंद्रित क्षमता में वृद्धि, युद्धक्षेत्र जागरूकता, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमताओं और अन्य बल गुणकों को प्राथमिकता दी जाएगी इसमें कहा गया है कि अंतरिक्ष और साइबर डोमेन के साथ-साथ भूमि, वायु और समुद्री सीमाओं की सुरक्षा सर्वोपरि है;

दूसरी ओर वह हिन्द महासागर में बढ़ते गतिरोध कि ओर भी इशारा कर रहा है जिसमें कहा गया है कि हिंद महासागर तेजी से प्रतिस्पर्धा का स्थान बनता जा रहा है| जिसपर ध्यान देने कि जरूरत है| इसके अलावा बहुत से लोगों के लिए ये बात हास्यपद है कि आतंवाद को पोषित करने वाला देश अपनी निति में लिखता है कि देश में आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले समूहों के प्रति उसकी कोई सहिष्णुता नहीं है;

भारत के लिए इसके मायने: जानकारों के अनुसार हमारी सरकार को इस दस्तावेज़ का अध्ययन करना चाहिए और देखना चाहिए कि क्या हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति इससे प्रभावित होती है। लेकिन हमारा दुर्भाग्य यह है कि हमारे पास पहले से अपनी एक राष्ट्रीय सुरक्षा नीति होनी चाहिए जो फिलहाल हमारे पास नहीं है;

2009 में भारतीय सेना द्वारा एक दस्तावेज में निहित किया गया है जिसका शीर्षक है ‘रक्षा मंत्री के निर्देश’। जबकि विशेषज्ञों के अनुसार भारत के पास राष्ट्रीय सुरक्षा नीति होना जरुरी है उसने अभाव के चलते यह निर्देश नाकाफी हैं; सरकार ने 2018 में रक्षा योजना समिति बनाई थी। इस समिति का काम राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा प्राथमिकताएं, विदेश नीति की अनिवार्यता, ऑपरेशन से जुड़े निर्देश और संबंधित आवश्यकताओं, प्रासंगिक रणनीतिक और सुरक्षा से संबंधित सिद्धांतों, रक्षा अधिग्रहण और बुनियादी ढांचे की विकास योजनाओं, राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति, रणनीतिक रक्षा समीक्षा और सिद्धांतों पर नजर रखने आदि था, जिसमें आज विस्तार कि जरूरत है;

पाकिस्तान कि सुरक्षा निति कम पन्नो में काफी व्यापकता कि दर्शाती है जिसमें वह सम्पूर्ण विकास को लेकर चलता दिख रहा है| जैसे वह आतंरिक सुरक्षा के साथ में अंतरिक्ष और साइबर डोमेन के साथ-साथ भूमि, वायु और समुद्री सीमाओं (हिन्द महासागर) की सुरक्षा भी बात करता है| यह सब भारत से किसी न किसी रूप में जुड़ें भी है| जिसपर भारत को भी मजबूती से कार्य करने कि सलाह समय – समय पर रक्षा विशेषग्य देते रहे है;

पाकिस्तान जिस तरह भारत कि आंतरिक ‘हिंदुत्ववादी राजनीति’ को इतने बड़े दस्तावेज में लिखता है, उससे ये अंदाज़ा लगाना भी आसान है कि वह अपने देश के भीतर इस बात का राजनैतिक फायदा लेने से पीछे नहीं हटेगा| जिसपर भारत के नीतिकारों को सतर्क रहने कि जरूरत है;

पाकिस्तान अपनी सुरक्षा नीतियों को अर्थवयवस्था से जोड़कर भी देख रहा है जिसे उसके बदलते रूप में देखा जा सकता है| कोरोना महामारी के पहले से ही भारत कि भी यही कोशिश रही है कि हम खुद को आर्थिक रूप से सक्षम बनाये, इसे अपने नागरिकों कि आर्थिक सुरक्षा भी मजबूत होती है, जिस पर देश को लगातार काम करने कि जरूरत है;  

अपनी नीतियों में पाकिस्तान जैसे भारत के साथ सहयोग कि बात करने के बाद भी उसकी सेना द्वारा भारत के साथ व्यापार फिर से शुरू करने के लिए तैयार नहीं है, ये विरोधाभास का संकेत जरूर देता है| बावजूद इसके अगर इस क्षेत्र में फिर से कोई कार्य हो तो भारत को इसमें आगे बढ़ना चाहिए| यह दोनों देशो के बिच चीन के प्रभाव को कम करने में मदद करेगा; आज हम चीन के साथ सीमा विवाद होने के बावजूद व्यापार में सबसे बड़े साझेदारों में से एक है तब यही हम पाकिस्तान के साथ क्यूँ नहीं कर सकते, इसपर दोनों देशों को जरुर सोचने और आगे बढ़ने कि जरूरत है|

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