देश मे युवाओ की प्रगति ही तय करती है कि देश का भविष्य क्या होगा ? ऐसे में सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे युवा अपनी पूरी लगन और मेहनत करते है , और इस बात की उम्मीद करते है कि उनकी मेहनत उनके परिवार के लिये एक उज्ज्वल ज्योति कि तरह होगी परन्तु परीक्षा की लेटलतीफी ऐसी है मानो परीक्षा नही पंचवर्षीय योजना हो विभिन्न परीक्षा में धांधली, पेपर लीक, परीक्षा निरस्त आदि कष्टदायक चीजो से भी अभ्यर्थियों को ही गुजरना पड़ता है ऐसे में या तो उनकी उम्र ज्यादा हो जाती है या वो खुद से ही उम्मीद छोड़ देते है । इससे न ही केवल उस अभ्यार्थी बल्कि उसके परिवार पर भी बहुत बड़ा प्रभाव होता है , इतनी तेज बढ़ती दुनिया मे यदि किसी के पास नौकरी ही न हो तो वह कहा स्टैंड करता है ? कोरोना महामारी अभ्यर्थियों के लिये भी उतनी ही चुनोतीपूर्ण थी, जितनी किसी और व्यक्ति के लिए परंतु नई रिक्तियों कि अधिसूचना में न तो उम्र बड़ाई गयी न कोई सुनवाई की गई ,अभियार्थी द्वारा जब सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके दबाब बनाया जाता है तब परीक्षा की तिथि आती है तब ही रिजल्ट आता है यह कहा का न्याय है? क्या किसी भी चीज़ का उत्तरदायित्व न होना सही है ? आज अभियार्थी लाचार है वो अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे या आंदोलन आदि में ग्रस्त रहे । कोई नही चाहता कि पुलिस के डंडो का सामना करना पड़े या धूप में बैठा जाए परंतु परिस्थिति की मांग पता नही क्या क्या करवाने पर आतुर हो चुकी है । क्या वर्ष के प्रथम माह में सभी परीक्षा (राज्य और केंद्र) के कैलन्डर जारी नही किए जा सकते ? जिसमे पूरे वर्ष में कराई जाने वाली परीक्षा की तिथि और परीक्षा परिणाम तिथि घोषित हो क्यों एक बच्चा पूरे साल किसी तिथि का इंतजार करे कि किसी दिन कोई जांदू होगा और तिथि घोषित हो जाएगी। क्या ये व्यवस्था की अविकसित धारणा को नही दर्शाता?
एक अभ्यर्थी केवल व्यवस्था में सुधार चाहता है उम्र रहते नौकरी चाहता है सभी विद्यार्थी विनती करते है कृपया करके इस पर विचार करे और सबको एक साथ आकर आगे बढ़ने का मौका दे ।
आकाश सिंह तोमर