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आज़ादी के 75 वर्षों बाद भी ग्रामीण भारत पीने के पानी से वंचित है, ज़िम्मेदार कौन?

आज़ादी के 75 वर्षों बाद भी ग्रामीण भारत पीने के पानी से वंचित है, ज़िम्मेदार कौन?

वर्ष 2024 तक देश के 19 करोड़ घरों तक पीने का साफ पानी पहुंचाने का केंद्र सरकार का लक्ष्य हर उस भारतीय के लिए उम्मीद की एक किरण है, जो आज भी पीने के साफ पानी से वंचित है। यह योजना विशेषकर उन ग्रामीण महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं होगी, जिनका आधा जीवन केवल पानी लाने में ही बीत जाता है। 

भले ही शहरों में नलों के माध्यम से घर-घर तक पीने का साफ पानी उपलब्ध हो, परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी यह सुविधा किसी ख्वाब से कम नहीं है। विशेषकर उत्तराखंड के लमचूला जैसे सुदूर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए, तो हर घर नल योजना किसी वरदान से कम नहीं होगी, जहां आज भी लोगों को पानी के लिए संघर्ष करना पड़ता है। किसानों का खेतों में सिंचाई का मुद्दा हो या घर के किसी अन्य कार्य में पानी की ज़रूरत हो, इसकी किल्लत हमेशा बरकरार रहती है।

पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के बागेश्वर ज़िला से करीब 20 किमी दूर गरूड़ ब्लॉक स्थित लमचूला गाँव ना केवल सामाजिक और आर्थिक रूप से बल्कि शैक्षणिक रूप से भी पिछड़ा हुआ है। लगभग सात सौ की आबादी वाले इस गाँव की अधिकतर आबादी अति पिछड़ी और अनुसूचित जाति से संबंध रखती है।

प्रकृति की गोद में बसे इस गाँव की आबादी मवेशी पालन और खेती पर निर्भर है। इस गाँव में बुनियादी सुविधाओं का काफी अभाव है ना तो यहां पक्की सड़कें हैं और ना ही 24 घंटे बिजली की व्यवस्था, बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी गाँव से बहुत दूर है लेकिन दैनिक जीवन में इस गाँव के लोग जिस कठिनाइयों का सबसे अधिक सामना कर रहे हैं, वह है पीने का साफ पानी।

 इसकी कमी ने लमचूला के लोगों के जीवन को सबसे अधिक प्रभावित किया है जिसके कारण ना वह मवेशियों के लिए पीने के पानी का उचित प्रबंध कर पाते हैं और ना ही अपने दैनिक जीवन में उनकी पूर्ति हो पाती है। विशेषकर महिलाओं और किशोरियों का जीवन पीने के साफ पानी को जमा करने के लिए ही गुज़र जाता है।

इस संबंध में गाँव की एक 28 वर्षीय महिला नीतू देवी का कहना है कि गाँव में पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं होने के कारण उन्हें प्रतिदिन पांच किमी दूर नलधूरा नदी जाकर पानी लाना पड़ता है, जिससे समय की हानि के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

इस कार्य में सबसे अधिक कठिनाई वर्षा और अत्यधिक ठंड के दिनों में होती है जब कच्ची पगडंडियों के कारण फिसलने का खतरा बना रहता है। उन्होंने बताया कि गाँव में पाइपलाइन तो बिछी हुई है लेकिन वह अक्सर बरसात के दिनों में टूट जाती है जिसे ठीक कराने में काफी लंबा समय बीत जाता है और जब तक ठीक होकर वह काम के लायक होती है, तब तक फिर से बारिश का मौसम आ जाता है।

वहीं बुज़ुर्ग मोतिमा देवी पानी की समस्या को गंभीर बताते हुए कहती हैं कि गाँव में पाइपलाइन बिछे होने का क्या लाभ, जब हमें दूर जाकर जलधाराओं से पानी भरना होता है? महिलाएं अपने छोटे-छोटे बच्चों को घर में छोड़कर पानी लाने के लिए जाने पर मज़बूर हैं, जबकि पानी दैनिक जीवन का सबसे अभिन्न अंग है, केवल इंसान ही नहीं बल्कि मवेशियों के लिए भी पानी की व्यवस्था करनी होती है। बरसात में जमा किए पानी का उपयोग मवेशियों के लिए उपलब्ध तो हो जाता है लेकिन घर के सदस्यों के लिए साफ पानी ही चाहिए।

पानी की कमी का सीधा प्रभाव लड़कियों की शिक्षा पर भी पड़ रहा है। जल संग्रहण के लिए घर की महिलाओं के साथ-साथ उन्हें भी प्रतिदिन पांच किमी जाना पड़ता है, जिससे उनकी पढ़ाई अधूरी रह जाती है। इसके कारण कुछ लड़कियों का स्कूल भी छूट जाता है। गाँव की किशोरियां गीता और कविता के अनुसार, गाँव में पानी की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण हमें बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

हमें घर का सारा काम करना पड़ता है, क्योंकि महिलाओं का अधिकतर समय पानी जमा करने में ही गुज़र जाता है जिसके कारण उन्हें पढ़ाई का पर्याप्त समय नहीं मिल पाता है। वह कहती हैं कि कई बार माहवारी के समय असहनीय दर्द में उन्हें भी पानी लाने जाना पड़ता है जिसकी वजह से काफी कष्ट होता है और उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।  

पानी की कमी से वह स्वयं की साफ-सफाई पर भी ध्यान नहीं दे पाती हैं। इन किशोरियों का कहना है कि स्कूल में भी उन्हें पानी की कमी का बहुत अधिक सामना करना पड़ता है। कई बार स्कूल के शौचालय में पानी नहीं होने के कारण किशोरियां स्कूल जाने से घबराती हैं। यही कारण हैं कि अधिकांश पहाड़ी क्षेत्रों के स्कूलों में लड़कियों का ड्राप आउट देखने को मिलता है लेकिन इस समस्या की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता है या इसे मामूली बात समझी जाती है। 

इस पानी की गंभीर समस्या का ज़ल्द हल निकालने की बात करते हुए लमचूला पंचायत के सदस्य बलवंत राम कहते हैं कि पंचायत इस समस्या की गंभीरता को समझता है, इसलिए हम संबंधित विभाग के निरंतर संपर्क में हैं।  पंचायत इसकी पूरी कोशिश कर रहा है और सब कुछ ठीक होने में अभी भी 6 से 8 माह का समय लग सकता है।

बहरहाल, सरकार का हर घर जल योजना अर्थात जल जीवन मिशन का उद्देश्य 2024 तक देश के सभी घरों में पीने का साफ पानी पहुंचाना है। इस योजना का मुख्य फोकस ग्रामीण क्षेत्र हैं, जहां पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं होता है और इसके लिए उन्हें मीलों पैदल चल कर पानी लाना पड़ता है। 

इस योजना के तहत इंफ्रास्ट्रचर को भी मज़बूत करना है जिससे जल संरक्षण को भी बढ़ावा दिया जा सके, ताकि भविष्य में पानी की कमी को भी दूर किया जा सके। हमें उम्मीद की जानी चाहिए कि इस योजना के आने से लमचूला के लोगों की पानी की एक गंभीर समस्या हल हो जाएगी जिससे किशोरियों को भी अपनी शिक्षा प्राप्त करने में आने वाली भी रुकावटें दूर हो जाएंगी।

नोट- यह आलेख उत्तराखंड के बागेश्वर ज़िला स्थित गरूड़ ब्लॉक के सुदूर और बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित अति पिछड़ा गांव लमचूला की रहने वाली कुमारी माहेश्वरी ने लिखा है। वर्तमान में माहेश्वरी 11वीं की छात्रा हैं और प्रतिदिन (Covid काल से पूर्व स्कूल खुले रहने के दौरान) 2 घंटे दुर्गम पहाड़ी रास्तों को तय कर 12 किमी दूर शिक्षा ग्रहण करने जाती है।  

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