11 जनवरी को जाने-माने बाल अधिकार कार्यकर्ता व नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी का जन्मदिवस है। उनका जन्मदिवस “सुरक्षित बचपन दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
आम जनमानस बाल मज़दूरों के कष्टों से वाकिफ नहीं है। कुछ बुद्धिजीवी तो यह भी मानते हैं कि कमज़ोर वर्ग के बच्चों को काम का अधिकार मिलने से उनके परिवारों की माली हालत अच्छी हो जाती है। आज भी कुछ लोग सोचते हैं कि बच्चों को काम पर लगाकर, उन्होंने उनके परिवारों पर एहसान किया है। अस्सी के दशक तक बाल मज़दूरी कोई मुद्दा ही नहीं था। ज़्यादातर लोग यही मानते थे कि बाल मज़दूरी अपराध नहीं है।
इसी दशक में कैलाश सत्यार्थी ने बाल मज़दूरी और दासता जैसी सामाजिक बुराई के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाई और उसके उन्मूलन के संकल्प के साथ सक्रिय हो गए। वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने कहा कि बाल मज़दूरी एक संगठित व जघन्य अपराध है, तब बाल मज़दूरी के खिलाफ कोई कानून भी नहीं था।
सत्यार्थी जब अपने साथियों के साथ बाल मज़दूरों को आज़ाद करवाने जाते, तो उन्हें मालिकों के भारी विरोध का सामना करना पड़ता था। इन अभियानों में उन पर हमले भी होते लेकिन जब सत्यार्थी इन हमलों तथा बच्चों पर काम के दौरान हुए अत्याचारों की रिपोर्ट लिखवाने पुलिस में जाते, तो पुलिस वाले बाल मज़दूरी के विरुद्ध कोई कानून ना होने का हवाला देकर रिपोर्ट तक नहीं लिखते थे। इस तरह से ये अपराधी आसानी से पुलिस से बच जाते थे।
जन प्रतिनिधियों को यह बात समझाने के लिए कि बाल मज़दूरी एक जघन्य अपराध है, सत्यार्थी को कई आंदोलन, कई यात्राएं और लंबी कानूनी लड़ाईयां भी लड़नी पड़ीं। इसके बाद धीरे-धीरे बाल मज़दूरी और दासता के खिलाफ हमारे समाज एवं आम जनमानस में जागरूकता पैदा हुई।
आम जनता का इन प्रयासों को सहयोग और समर्थन मिलने लगा। इसके परिणामस्वरूप भारत की विधायिकाओं ने बाल मज़दूरी के विरुद्ध कई कठोर कानून पारित किए जिनके कारण बच्चों का शोषण करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने में आसानी हुई।
सत्यार्थी के प्रयासों से ही संयुक्त राष्ट्र का कन्वेन्शन-182 पारित हुआ, जिस पर अब तक दुनिया के सभी देश हस्ताक्षर कर चुके हैं। यह कन्वेंशन संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों को बाल मज़दूरी और दासता को प्रतिबंधित करने वाले कानून बनाने के निर्देश देता है।
भारत में आज बच्चों के साथ यौन शोषण रोकने वाला पोक्सो एक्ट, किशोर न्याय अधिनियम-2015, किशोर अधिनियम-2000, शिक्षा का अधिकार अधिनियम आदि कुछ प्रमुख कानून हैं, तो इनमें सत्यार्थी का उल्लेखनीय और अविस्मरणीय योगदान है।
सत्यार्थी ने बाल मज़दूरों के दुःख-दर्द को करीब से देखा व समझा है। उस समय कम ही लोग जानते थे कि बाल मज़दूरों को अमानुषिक यातनाएं दी जातीं हैं, जब बाल मज़दूर अपना टार्गेट पूरा नहीं कर पाते तो मालिक उन पर तरह-तरह के अत्याचार करते हैं। उनके साथ मारपीट करना तथा भूखा रखना, तो आम बात थी। कई बार तो उनका यौन शोषण भी होता था।
सत्यार्थी अपने संगठन की मदद से अब तक एक लाख से अधिक बाल मज़दूरों को इस अमानवीय दासता से मुक्त करा चुके हैं। इन अभियानों में उन पर व उनके साथियों पर कई जानलेवा हमले भी हुए लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और वे अपने उद्देश्य को हासिल करने में लगे रहे। वे कहते हैं कि जब तक एक भी बच्चा बाल मज़दूरी कर रहा है, वे तब तक चैन से नहीं बैठेंगे जब तक उसे आज़ाद करवाकर उसका स्कूल में दाखिला ना करवा दिया जाए।
सत्यार्थी दिल्ली में मुक्ति आश्रम तथा राजस्थान में बाल आश्रम व बालिका आश्रमों का संचालन करते हैं। मुक्ति आश्रम में मुक्त बाल मज़दूरों को कानूनी प्रक्रिया पूरी होने तक रखा जाता हैं। कानूनी प्रक्रिया सम्पन्न होने पर उनको चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के आदेश पर उनके घर भेज दिया जाता है, जहां पर वे राज्य सरकार द्वारा संचालित योजनाओं का लाभ उठाते हैं।
इसी तरह से बाल आश्रम में मुक्त बाल मज़दूरों का निशुल्क दीर्घकालीन पुनर्वास किया जाता है। बालिका आश्रम में आसपास के गाँव की किशोरियां कढ़ाई, बुनाई, सिलाई आदि सीखती हैं। उनको आश्रम की गाड़ी सुबह लेकर आती है तथा प्रशिक्षण के बाद शाम को उनके घर तक सुरक्षित पहुंचाती है। सत्यार्थी का संगठन उन किशोरियों तथा बच्चों को कानूनी मदद भी उपलब्ध करवाता है, जिनके साथ व्याभिचार हुआ है।
सत्यार्थी के द्वारा मुक्त करवाए व पुनर्वासित किए गए अनेक पूर्व बाल मज़दूर आज कई क्षेत्रों में अपना नाम रोशन कर रहे हैं। इनमें वकील, इंजीनियर, सामाजिक कार्यकर्ता तथा व्यापारी भी हैं, जो बहुत ही कुशलता से अपना काम कर रहे हैं। वे साथ-ही-साथ वे बाल मज़दूरी के खात्मे के लिए सत्यार्थी के मिशन में भी प्रमुखता से अपना सहयोग करते हैं। इनमें बाल शांति पुरस्कार प्राप्त ओमप्रकाश गुर्जर, सुमन महतो, किंसु कुमार, अमरलाल बंजारा, शिवम, आदि प्रमुख हैं।
ओमप्रकाश गुर्जर
राजस्थान के अलवर ज़िले के रहने वाले हैं। उसको कैलाश सत्यार्थी ने बाल मज़दूरी से मुक्त करवाया था। वह खेतों में काम करते थे। इन्होंने जन्म पंजीकरण में बहुत अच्छा काम किया। उनके उत्कृष्ट काम के लिए 2006 में उन्हें इन्टरनेशनल चिल्ड्रेन पीस प्राइज़ से सम्मानित किया गया। वर्तमान में वह बाल मज़दूरी खत्म करने व सभी बच्चों के लिए शिक्षा की दिशा में काम कर रहे हैं।
सुमन महतो
बिहार के रहने वाले हैं। वह एक घरेलू बाल मज़दूर थे। उनको सत्यार्थी के संगठन ने मुक्त करवाया तथा उसका पुनर्वास बाल आश्रम में हुआ। आज सुमन एक जाने-माने योग प्रशिक्षक हैं।
किंसु कुमार
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर ज़िले के रहने वाले हैं। बचपन में वह मोटरकारों की सफाई किया करते थे। उनका पुनर्वास बाल आश्रम में हुआ व वहीं रहकर उसने इंजीनियरिंग में दाखिला लिया। उन्होंने अपना जीवन सत्यार्थी के मिशन को समर्पित कर दिया है। वर्तमान में वह बाल आश्रम के कोर्डिनेटर हैं।
अमरलाल बंजारा
घुमंतू बंजारा जाति में पैदा हुए थे। वह अपने पिता के साथ बाल मज़दूरी किया करते थे। उसे सत्यार्थी ने बाल मज़दूरी से मुक्त करवाया। अन्य बच्चों की तरह ही उसका भी पुनर्वास बाल आश्रम में हुआ। अमरलाल आज एक जाने-माने वकील हैं। वर्तमान में वह दिल्ली हाइकोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं तथा बच्चों को न्याय दिलाने हेतु उनके मुकदमे लड़ते हैं।
शिवम
मध्यप्रदेश के मंदसौर ज़िले के रहने वाले हैं। उनको सत्यार्थी के संगठन ने मुक्त करवाया था। उनका पुनर्वास बाल आश्रम में हुआ। उन्होंने वहीं रहकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। अब वह एक जाने-माने एक इंजीनियर हैं।
सत्यार्थी ने निश्चित तौर से ना केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के बच्चों को उनके अधिकार दिलाने के लिए भागीरथ प्रयत्न किए हैं। बच्चों का बचपन सुरक्षित करने, उन्हें उनकी ज़िन्दगी खुलकर जीने के अवसर दिलाने के लिए सत्यार्थी ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।
हर बच्चे को आज़ाद कराने के साथ थोड़ा-थोड़ा खुद को आज़ाद महसूस करने वाले कैलाश सत्यार्थी का जन्म दिवस 11 जनवरी को सुरक्षित बचपन दिवस के रूप में मनाया जाना ना केवल प्रासंगिक है बल्कि यह हज़ारों लोगों को बच्चों को उनका बचपन लौटाने को प्रेरित करने वाला एक सम्मानीय कार्य है।
नोट- (लेखक प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष हैं।)