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“माहवारी छूत की बीमारी नहीं, एक सामान्य महज शारीरिक प्रक्रिया है”

"माहवारी छूत की बीमारी नहीं, एक सामान्य महज शारीरिक प्रक्रिया है"

चांदनी परिहार,

गरुड़ (बागेश्वर)

उत्तराखंड।

हमारा देश भारत जहां 21वीं सदी में कदम रख चुका है। वहीं हमारे देश में विकास का स्तर काफी अच्छा है, चाहे वह शिक्षा का स्तर हो या महिलाओं में सामाजिक जागरुकता का आज हमारे देश में महिलाएं हर क्षेत्र और हर स्तर पर उन्नति कर रही हैं लेकिन आज भी कई ग्रामीण क्षेत्रों में यदि हम उत्तराखंड राज्य की बात करें तो, उत्तराखंड देवों की भूमि है लेकिन कई ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्वास बहुत मज़बूती से फैला हुआ है। उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्वास का स्तर इस कदर बढ़ चुका है कि वहां के स्थानीय निवासी बिना सोचे-समझे किसी भी बात पर विश्वास कर लेते हैं।

उत्तराखंड राज्य का ज़िला बागेश्वर, ब्लॉक गरुड़, यहां कई ऐसी जगह हैं, जहां महिलाओं के प्रति अंधविश्वासों ने एक विकराल रुप धारण कर लिया है। गरुड़ ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं से बात करने पर पता चला कि यहां गर्भवती महिला के गर्भ के 3 महीने पूर्ण होने पर उसे अशुभ माना जाता है, उन्हें गर्भावस्था के दौरान 3 महीने के पश्चात रसोई, मदिरों से दूर कर दिया जाता है। उनका मानना है कि यह सदियों पुरानी प्रथा है जिसके छुने से कई बीमारियां उत्पन्न होंगी और इस कारण उन्हें अलग कर दिया जाता है।

एक स्त्री को कितने कष्ट सहन करने होंगे, एक नारी बच्चे को जन्म देती है, उसके द्वारा बनाए गए खाने को अछूत  माना जाता है। एक भगवान के रुप में वह एक बच्चे को जन्म देती है, उसे उसी भगवान के मंदिर में जाने नहीं दिया जाता है। उनका मानना है कि उनकी भगवान के प्रति इतनी श्रद्धा है, जो कोख में एक बच्चा पल रहा है उसके जन्म तक उसे अशुभ मानेंगे और जन्म के वक्त 11 दिन तक एक ही जगह रखेगें जब तक उस बच्चे का नामकरण ना हो जाए, तब तक वह महिला भी अशुभ मानी जाएगी।

उसे प्रसव के दौरान एक अलग कमरा दिया जाता है, अलग खाना, यहां तक कि उसे किसी को छूने भी नहीं दिया जाता है। ऐसी कुरीतियों को हमारे समाज में सामाजिक प्रथाओं का का नाम दिया जाता है। इतनी पीड़ा में उसे अलग कर के बहुत बुरा व्यवहार किया जाता है।

गरुड़ क्षेत्र की किशोरियां जो अभी हाईस्कूल इंटर की पढ़ाई कर रही हैं, उनसे बात करने के बाद एक बड़ी समस्या सामने निकल कर आई कि उन्हें माहवारी के दौरान 5 दिन तक एक अलग जगह पर रखा जाता है और उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाता है। उनका खान-पान यहां तक कि उनके कपड़े तक अलग रख दिए जाते हैं जैसे उन्हें कोई भयानक छूत की बीमारी हो। बुजुर्ग महिलाओं से पता चलता है कि ऐसी सामाजिक रीतियां सदियों से चली आ रही हैं। 

किशोरियों और महिलाओं को जो पीरियड्स में जो खून बहता है, वह अशुद्ध होता है जिसके कारण उनको 5 दिन के लिए एक अलग कमरे में रखा जाता है पर किशोरियां इन चीज़ों से अनजान हैं। उन्हें उन दिनों कितना कष्ट सहन करना पड़ता है।

एक नारी जो बच्चे को पैदा करती है, क्या वह अछूत है? एक किशोरी जो सब चीज़ों से अनजान है, क्या उसे इस तरह से एकदम  अलग कर देना क्या सही है? इसी को अब नई पीढी भी सीखती आ रही हैं, जो की गलत है।

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